- 18 जुलाई को राष्ट्रपति पद के लिए होना है चुनाव
- एनडीए की तरफ से द्रोपदी मुर्मू और विपक्ष की तरफ से यशवंत सिन्हा चुनावी मैदान में
- 21 जुलाई को घोषित होंगे नतीजे
भारत में 18 जुलाई को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने जा रहे हैं और इतिहास में यह दूसरा मौका होगा जब केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर की विधानसभा शीर्ष संवैधानिक पद के चुनाव का हिस्सा नहीं होगी। राज्यों की विधानसभाओं के भंग होने के कारण उनके राष्ट्रपति चुनाव का हिस्सा नहीं होने के कई उदाहरण हैं। पहली बार ऐसा उदाहरण 1974 में सामने आया जब गुजरात विधानसभा राष्ट्रपति चुनाव का हिस्सा नहीं बन सकी।
1992 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में शिरकत नहीं कर सकी
वर्ष 1992 के राष्ट्रपति चुनाव में जम्मू कश्मीर और नगालैंड की विधानसभाएं भंग होने के कारण राष्ट्रपति चुनाव का हिस्सा नहीं बन सकी थीं। उस चुनाव में शंकर दयाल शर्मा राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे। उस चुनाव में जम्मू कश्मीर का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाया था क्योंकि वहां आतंकवाद के कारण 1991 के लोकसभा चुनाव भी नहीं हो पाए थे।हालांकि, इस बार 18 जुलाई को हो रहे राष्ट्रपति चुनाव में केंद्रशासित प्रदेश के पांच लोकसभा सदस्य फारूक अब्दुल्ला, हसनैन मसूदी, अकबर लोन, जुगल किशोर शर्मा और जितेंद्र सिंह मतदान करने के पात्र हैं।वर्ष 1982 के राष्ट्रपति चुनाव में असम के विधायक मतदान नहीं कर सके क्योंकि विधानसभा भंग हो गई थी। उस चुनाव में ज्ञानी जैल सिंह राष्ट्रपति चुने गए थे।
जम्मू कश्मीर के लिए विधानसभा का प्रावधान
उसके बाद असम, नगालैंड और जम्मू कश्मीर की विधानसभाएं भी भंग होने के कारण विभिन्न चुनावों में भाग नहीं ले सकीं।इस बार जम्मू कश्मीर विधानसभा राष्ट्रपति चुनाव का हिस्सा नहीं बन सकेगी। 2019 में तत्कालीन राज्य को विभाजित कर दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख की स्थापना की गई थी एवं जम्मू कश्मीर में विधानसभा का अभी गठन नहीं हुआ है। जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के लिए विधानसभा का प्रावधान है, लेकिन विभिन्न वजहों से अभी तक चुनाव नहीं हो पाया है।
1974 में गुजरात विधानसभा भी चुनाव का हिस्सा नहीं बन सकी
गुजरात 1974 में नवनिर्माण आंदोलन के केंद्र में था जिसके कारण चिमनभाई पटेल नीत राज्य सरकार को भंग कर दिया गया था।
राष्ट्रपति चुनाव स्थगित करने की मांगों की पृष्ठभूमि के बीच उच्चतम न्यायालय से राय देने को कहा गया था ताकि किसी भी विवाद को खत्म किया जा सके।उच्चतम अदालत ने कहा था कि राष्ट्रपति चुनाव इस तरह से पूरा कर किया जाना चाहिए जिससे नवनिर्वाचित राष्ट्रपति निवर्तमान राष्ट्रपति के कार्यकाल की समाप्ति पर कार्यभार संभाल सकें और इस प्रकार चुनाव आयोजित किए जाने चाहिए, भले ही गुजरात विधानसभा गठित नहीं है।