- कारगिल युद्ध और इसमें भारत को पाकिस्तान के खिलाफ मिली फतह को 22 साल हो गए हैं
- पाकिस्तान ने यूं तो फुलप्रूफ तैयारी की थी, पर भारतीय शूरवीरों ने उसके इरादों को चकनाचूर कर दिया
- भारतीय सेना की जीत सुनिश्चित करने में भारतीय वायु सेना और बोफोर्स तोपों की भी अहम भूमिका रही
Kargil vijay diwas 2021: कारगिल की जंग और पाकिस्तान के खिलाफ भारत को मिली एक और फतह को 22 साल हो गए हैं। वह मई 1999 में गर्मियों का वक्त था, जब भारतीय सेना को कारगिल में पाकिस्तानी सैनिकों की घुसपैठ का पता चला था। तब पाकिस्तान की सेना की कमान जनरल परवेज मुशर्रफ के हाथों में थी और अब तक यह भी स्पष्ट हो चुका है कि कारगिल में घुसपैठ का तानाबाना पाक सेना प्रमुख ने ही बुना था। लेकिन भारत के वीर सपूतों के हौसले पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर भारी पड़े और भारत ने लगभग हारी हुई बाजी जीत ली।
चरवाहे से चला था घुसपैठ का पता
भारतीय सेना को कारगिल में घुसपैठ का पता चरवाहे से लगा था, जो अपने मवेशियों चराने के लिए उधर गया हुआ था। उन्होंने इसकी सूचना नीचे आकर भारतीय सैनिकों को दी। पाकिस्तानी सैनिकों को भी इसकी भनक लग चुकी थी कि चरवाहों ने उन्हें देख लिया है, लेकिन वे यह सोचकर निश्चिंत हो गए कि वे सादी वर्दी में हैं और चरवाहों के लिए उन्हें पहचान पाना संभव नहीं। हालांकि खतरे को भांपकर एक बार उनके मन में आया कि उन्हें बंदी बना लिया जाए, लेकिन बर्फ से ढके पहाड़ में बनाए बंकरों में रशद की कमी एक बड़ी समस्या थी, जिसकी वजह से उन्होंने ऐसा नहीं किया।
चरवाहे ने जब नीचे उतरकर भारतीय सेना को ऊपर संदिग्ध गतिविधियों के बारे में सूचना दी तो सैनिकों को एक बार के लिए यकीन नहीं हुआ, क्योंकि वे पहले वहां का मुआयना कर आ चुके थे, जिसमें उन्हें कुछ भी संदिग्ध नहीं लगा। उन्हें खुफिया सूत्रों से भी ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली थी। लेकिन चरवाहे की बात को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता था और ऐसे में सैनिकों की एक टीम उसे साथ लेकर पहाड़ में ऊपर उस स्थान पर पहुंची, जहां से दूरबीन की मदद से उन संदिग्ध लोगों और उनकी गतिविधियों को देखा जा सकता था, जिसके बारे में चरवाहे ने जिक्र किया था।
फुलप्रूफ थी पाकिस्तान की तैयारी
सैनिकों ने वहां जो कुछ भी देखा, वह उनका होश उड़ा देने के लिए काफी था। सैकड़ों पाकिस्तानी घुसपैठिए बर्फ से ढकी पहाड़ की आड़ में छिपे थे और उन्होंने वहां अपने बंकर तक बना लिए थे। पहाड़ों में ऊंचाई पर उनकी तैनाती भारतीय सेना के लिए सबसे बड़ी मुश्किल थी। पाकिस्तानी सैनिकों ने सर्दियों के दिन में खाली पड़े बहुत बड़े इलाके पर कब्जा कर लिया था। उनका मकसद सियाचिन ग्लेशियर की लाइफलाइन NH 1 D पर कब्जा कर लेना था। वे उन पहाड़ों तक पहुंचना चाहते थे, जहां से लद्दाख की ओर जाने वाली रसद रोक सकें और भारत मजबूर होकर सियाचिन छोड़ दे।
भारतीय सैनिकों को कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठियों की बढ़त का एहसास था। यह एक मुश्किल ऑपरेशन था, क्योंकि पाकिस्तानी सैनिक पहाड़ियों में ऊपर थे, जबकि भारतीय जवान नीचे। एक अन्य परेशानी ऊपर ऑक्सीजन की कमी को लेकर भी थी, लेकिन भारत के शूरवीरों के हौसले बुलंद थे, जिनकी बदौलत वे इस जंग में एक बार फिर पाकिस्तान को मात देने में कामयाब रहे। कारगिल की पहाड़ियों में यूं तो 3 मई से ही भारतीय और पाकिस्तानी सैनिकों के बीच झड़पें शुरू हो गई थीं और तब सेना को भी इसका अंदाजा नहीं था कि पाकिस्तान ने कैसी फुलप्रूफ तैयारी कर रखी है।
...और भारत ने पाई एक और फतह
भारतीय सेना की रणनीतियों में बदलाव करीब एक महीने बाद आया, जब आठवीं डिवीजन ने मोर्चा संभाला। कारगिल की लड़ाई में भारत के लिए निर्णायक मोड़ तब आया, जब सैनिकों ने तोलोलिंग पर जीत दर्ज की। इस लड़ाई में आगे चलकर सेना को भारतीय वायु सेना का भी साथ मिला। बोफोर्स तोप ने भी जंग-ए-मैदान का रुख किया, जिसने पूरी बाजी ही पलट दी।
भारतीय वायु सेना और बोफोर्स तोपों की मदद से पाकिस्तानी ठिकानों को निशाना बनाया गया, जिसके बाद पाकिस्तान का संभल पाना मुश्किल हो गया और अंतत: 26 जुलाई की तारीख भी आई, जब भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान के खिलाफ जीत की वही इबारत लिखी, जो इससे पहले 1965 और 1971 के युद्ध में भी देखने को मिली थी।