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Indian Army Day: जानें क्या है 15 जनवरी का सेना दिवस से कनेक्शन

Updated Jan 15, 2020 | 07:57 IST

Indian Army Day 2020:वैसे तो भारत की तारीखी इतिहास में हर दिन महत्वपूर्ण हैं। लेकिन 15 जनवरी का दिन इसलिए खास है क्योंकि दुनिया की पेशेवर सेनाओं में से एक भारतीय फौज इसे सेना दिवस के तौर पर मनाती है।

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हर वर्ष 15 जनवरी को मनाया जाता है सेना दिवस
मुख्य बातें
  • हर वर्ष 15 जनवरी को मनाया जाता है सेना दिवस
  • जनरल फ्रांसिस बुचर से फील्ड मार्शल के एम करियप्पा से ली भारतीय सेना की कमान
  • सेना दिवस के मौके पर भारतीय शूरवीरों की शहादत को किया जाता है याद

नई दिल्ली।  15 जनवरी को ही सेना दिवस क्यों मनाया जाता है, इसके बारे में लोगों को कम जानकारी है। भारतीय फौज को दुनिया की पेशेवर सेनाओं में एक माना जाता है। देश की सीमाओं, देश के बाहर और आंतरिक सुरक्षा में सेना ने अपनी काबिलियत दिखलाई है। भारतीय फौज के बारे में कहा जाता है कि इसमें जो सैनिक भर्ती होते हैं वो देशप्रेम के जज्बे से ओतप्रोत होते हैं और उसी जज्बे को बनाए रखने के लिए एक खास दिन को सेना के लिए समर्पित कर दिया गया जिसे सेना दिवस के तौर पर भी जाना जाता है। 

15 जनवरी 1949 को फील्ड मार्शल केएम करियप्पा ने जनरल फ्रांसिस बुचर से भारतीय सेना की कमान संभाली थी। बुचर भारत के अंतिम ब्रिटिश कमांडर इन चीफ थे। बुचर के बाद केएम करियप्पा भारतीय फौज के पहले कमांडर इन चीफ बने थे। करियप्पा पहले ऐसे  अधिकारी थे जिन्हें फील्ड मार्शल की रैंक से नवाजा गया। इस दिन सेना के साथ पूरा देश थल सेना के अदम्य साहस, वीरता, शौर्य और जवानों की शहादत को याद करता है।  


1776 में कोलकाता में भारतीय सेना का गठन

1776 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय फौज का गठन कोलकाता में किया था। भारतीय सेना चीन और अमेरिका के साथ दुनिया की तीन सबसे बड़ी फौज में शामिल है।  2013 में 'ऑपरेशन राहत' दुनिया का सबसे बड़ा नागरिक बचाव अभियान था जिसे उत्तराखंड में केदारनाथ हादसे के दौरान चलाया गया था। 15 जनवरी के दिन परेडों, सैन्य प्रदर्शनियों और दूसरे आधिकारिक कार्यक्रमों के साथ नई दिल्ली व सभी सेना मुख्यालयों में मनाया जाता है। आर्मी के जवानों के दस्ते और अलग-अलग रेजिमेंट की परेड होती है। इस दिन उन सभी बहादुर सेनानियों को सलामी भी दी जाती है। 

कौन थे केएम करियप्पा 
कर्नाटक के कुर्ग जिले में 1899 में करियप्पा ने ब्रिटिश इंडियन आर्मी से अपने करियर की शुरुआत की। करियप्पा ने 1947-48 के भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी सीमा पर सेना की अगुवाई की थी।  भारत-पाक आजादी के समय उन्हें दोनों देशों की सेनाओं के बंटवारे की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। 1953 में करियप्पा सेना से रिटायर हो गए थे। उत्कृष्ट सेवा के लिए करियप्पा को फील्ड मार्शल का पद दिया गया। यह भारतीय फौज में सर्वोच्च पद माना जाता है। भारतीय फौज के इतिहास में अभी तक यह रैंक सिर्फ दो अधिकारियों को दिया गया है। देश के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ हैं।

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