- मोल्डो में चीन के साथ हुई 9वें दौर की बातचीत
- भारत ने स्पष्ट किया तनाव कम करने के लिये चीन अपनी सेना हटाए
- 9वें दौर की कोर कमांडर स्तर की बातचीत में कुछ खास नतीजा नहीं आया सामने
नई दिल्ली। मोल्डो में भारत और चीन के बीच करीब 15 घंटे की मैराथन बैठक हुई। लेकिन नतीजा कुछ खास नहीं रहा। कोर कमांडर की बातचीत में भारत ने साफ कर दिया कि लद्दाख में जिन इलाकों में तनाव की स्थिति बनी हुई उसे कम करने की जिम्मेदारी चीन की है। चीन को उन इलाकों से पूरी तरह पीछे हटना ही होगा जिसकी वजह से दोनों देशों की सेनाएं आमने सामने हैं। बता दें कि ढाई महीने के के बाद भारत और चीन की सेनाओं के बीच रविवार को कोर कमांडर स्तर की नौवें दौर की बातचीत हुई थी।
बातचीत के 15 घंटे
बताया जा रहा है कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की तरफ मोल्डो इलाके में बातचीत का दौर सुबह 11 बजे से रात 2.30 बजे तक करीब 15 घंटे चला। बातचीत के में भारत ने इस बात पर बल दिया कि टकराव वाले इलाकों में डिसइंगेजमेंट और डी-एस्केलेशन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी चीन पर है। इससे पहले 6 नवंबर को आठवें दौर की बातचीत में दोनों पक्षों ने टकराव वाले खास स्थानों से सैनिकों को पीछे हटाने पर विस्तार से चर्चा की थी। भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व लेह स्थित 14 वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन कर रहे हैं।
कई दौर की बातचीत, नतीजा कुछ भी नहीं
कोर कमांडर स्तर की सातवें दौर की बातचीत 12 अक्टूबर को हुई थी, जिसमें चीन ने पेगोंग झील के दक्षिणी तट के आसपास सामरिक महत्व के अत्यधिक ऊंचे स्थानों से भारतीय सैनिकों को हटने पर दबाव बनाया था। यह बात अलग है कि भारत ने टकराव वाले सभी स्थानों से सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया एक ही समय पर शुरू करने की बात कही थी।
क्या कहते हैं जानकार
अब सवाल यह है कि जब चीन की तरफ से 9 दौर की बातचीत में किसी तरह का समाधान नहीं आया है तो आगे का रास्ता क्या होगा। इस सवाल के जवाब में जानकारों की राय बंटी हुई है। एक पक्ष का मानना है कि देर सबेर ही चीन को उन इलाकों से पीछे हटना ही होगा जिसकी वजह से भारत के साथ तनाव है। मौजूदा समय में चीन को चुनौती देने के लिए भारत पूरी तरह से तैयार है। ऐसे में चीन के लिए यह बेहतर नहीं होगा कि वो तनाव को लंबे समय तक कायम रखे। इसके साथ ही दूसरा मत यह है कि यह विवाद एक तरह से स्थाई प्रकृति का हो चुका है। चीन की जमीन को लेकर भूख कम नहीं होने वाली है। ऐसे में तनाव का स्तर बरकरार रहेगा।