लखीमपुर: लखीमपुर हिंसा मामले में योगी सरकार की अब तक की जांच प्रगति पर सुप्रीम कोर्ट ने अंसतुष्टि जाहिर की है। कोर्ट ने आज सुनवाई के दौरान इस बात के संकेत दिए हैं कि इस मामले की जांच की निगरानी की जिम्मेदारी पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज को सौंप सकती है। कोर्ट ने इस पर उत्तर प्रदेश सरकार से अपना रुख साफ करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि हम यूपी सरकार द्वारा गठित जांच आयोग भरोसा नहीं कर पा रहे हैं।
तीनों मामलों की जांच अलग अलग हो
दीपावली के बाद आज पहली सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कि SIT की जांच से ऐसा लगता है कि वो इस घटना की तीन अलग-अलग एफआईआर में हो रही जांच को आपस मे मिला दे रही हो। 3 अक्टूबर को लखीमपुर में हुई हिंसा के मामले में तीन मामले दर्ज हुए हैं। इन तीन में से पहली एफआईआर प्रदर्शनकारी किसानों को गाड़ियों से कुचले जाने को लेकर है। दूसरी एफआईआर कुचलने वाली घटना के बाद की है जब वहां मौजूद लोगों ने लिंचिंग की. और तीसरा मुकदमा पत्रकार रमन कश्यप की मौत को लेकर दर्ज हुआ था।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के वकील से सवाल पूछा कि ऐसा लगता है कि एफआईआर 220 की जांच के दौरान जिन गवाहों के बयान दर्ज किए गए उस से पहली एफआईआर के मुख्य आरोपी को फायदा होता दिख रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने इच्छा जताई कि तीनों एफआईआर में अलग अलग जांच हो यानी कि तीनों जांच में साक्ष्य और गवाहों के बयान अलग-अलग दर्ज हों. जांच में ओवरलैपिंग न हो ताकि किसी एक मामले के गवाहों के बयान और सबूतों से दूसरी एफआईआर में नामित आरोपियों को फायदा न हो।
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि हम चाहते है कि जांच की निगरानी पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज रंजीत सिंह या राकेश कुमार को सौंप दिया जाए। इस पर यूपी सरकार के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि कोर्ट के सुझाव पर वो सरकार से निर्देश लेकर जवाब देंगे।
पिटाई से नहीं गाड़ी के कुचलने से गयी पत्रकार की जान
सुनवाई के दौरान हरीश साल्वे साल्वे की ओर से ये भी साफ किया गया कि कि स्थानीय पत्रकार रमन कश्यप की मौत गाड़ी से कुचले जाने से हुई है ना कि प्रदर्शनकारियों की ओर से की गई पिटाई से। साल्वे ने कोर्ट को जानकारी देते हुए कहा कि पहले ये माना जा रहा था कि रमन कश्यप आशीष मिश्रा के साथ ही थे, लेकिन बाद में पता लगा कि उनकी मौत प्रदर्शनकारी किसानों के साथ ही हुई थी जब वो सब गाड़ियों द्वारा कुचले गए थे। इस पर कोर्ट ने भी कहा कि शुरू में हमें भी ऐसे संकेत दिए गए कि पत्रकार की मौत लिंचिंग में हुई।
सुप्रीम कोर्ट- एक ही आरोपी का फ़ोन अब तक क्यों हुआ ज़ब्त?
सुनवाई के दौरान यूपी सरकार से ये भी पूछा कि इस मामले में अब तक सिर्फ गृह राज्य मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा का ही फोन क्यों ज़ब्त किया गया, जबकि इस घटना में कई आरोपी हैं?
हरीश साल्वे ने इस पर सुप्रीम कोर्ट को जवाब दिया कि कुछ आरोपियों ने ये कहा कि उनके पास मोबाइल फोन ही नहीं है। ऐसे में उनके कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) को खंगाला जा रहा है ताकि घटना के समय उनकी लोकेशन क्या थी ये पता लग सके। इस जवाब पर सवाल खड़े करते हुए कोर्ट ने टिप्पणी कि आपने स्टेट्स रिपोर्ट में तो इसका कहीं ज़िक्र नहीं किया है कि आरोपियों ने मोबाइल फोन फेंक दिए है और कॉल डिटेल रिकॉर्ड खंगाला जा रहा है।
अब इस मामले में अगली सुनवाई शुक्रवार को होनी है तब तक यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में ये जानकारी देनी है कि जांच की निगरानी का जिम्मा रिटायर्ड जज को सौंपने को लेकर उसका क्या मत है?