नई दिल्ली: भारत के अगर लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों की बात करें तो निस्संदेह लाल बहादुर शास्त्री और चाचा नेहरु का नाम जेहन में आता है लेकिन अगर सादगी और कार्यशैली की बात करें को लाल बहादुर शास्त्री का नाम सबसे उपर आता है। उनके काम करने का तरीका ऐसा था कि लोग आज भी उनकी मिसाल देते हैं।
ऐसे हर दिल अजीज लाल बहादुर शास्त्री जो देश के दूसरे प्रधानमंत्री भी रहे हैं राष्ट्र उनको आज 11 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि पर याद कर रहा है। उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि अर्पित की है।
लाल बहादुर शास्त्री जी के जन्मदिवस पर 2 अक्टूबर को शास्त्री जयंती व उनके देहावसान वाले दिन 11 जनवरी को लालबहादुर शास्त्री स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है।
साफ सुथरी छवि के शास्त्रीजी बने थे भारत के दूसरे प्रधानमंत्री
जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधान मन्त्री का पद भार ग्रहण किया।
2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय में जन्मे शास्त्रीजी भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा।
इससे पहले भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया।
1951 में, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वह अखिल भारत काँग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये। उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया।
1965 के भारत पाक युद्ध में दिया था राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व
उनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।
ताशकन्द में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।