- मां अन्नपूर्णा की मूर्ति 1913 में बनारस के एक मंदिर से चोरी हो गई थी।
- संस्कृति मंत्रालय के अनुसार 1976 से 2014 के बीच में केवल 11 कलाकृतियां और मूर्तियां भारत वापस लाई जा सकी थी।
- जबकि 2014 के बाद से अब तक करीब 198 कलाकृतियां और मूर्तियां वापस लाई गईं हैं।
नई दिल्ली: करीब 108 साल पहले बनारस से चोरी हुई मां अन्नपूर्णा की मूर्ति को दोबारा स्थापित कर दिया गया है। कनाडा से वापस लाई गई मां अन्नपूर्णा की मूर्ति को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 7 साल के कार्यकाल में करीब 198 ऐसी प्राचीन धरोहरों को वापस लाया जा चुका है। जो चोरी होकर या किसी दूसरी वजह से विदेश पहुंच गईं थीं। ऐसे में अब यह उम्मीद लगाई जा रही है कि सरकार एक दिन ब्रिटेन के म्यूजियम में रखे कोहिनूर को लाने भी सफल होगी।
क्या है मां अन्नपूर्णा की मूर्ति का इतिहास
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल नवंबर 2020 में मन की बात कार्यक्रम में बताया था कि करीब 100 साल पहले भारत से चुराई गई देवी अन्नपूर्णा की एक प्राचीन मूर्ति को कनाडा से वापस लाया जा रहा है। मां अन्नपूर्णा को भोजन की देवी माना जाता है।
बलुआ पत्थर से बनी मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा 18वीं सदी की बताई जाती है। उनकी प्रतिमा कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ रेजिना स्थित मैकेंजी आर्ट गैलरी के कलेक्शन का हिस्सा थी। जो कि साल 1913 में वाराणसी के गंगा किनारे स्थित एक मंदिर से चोरी कर ली गई थी।
200 से ज्यादा धरोहरें स्वदेश आईं
5 अगस्त 2021 को केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी.कृष्ण रेड्डी ने राज्य सभा में लिखित बयान दिया था। जिसके अनुसार उस वक्त तक भारत में साल 1976 से कुल 54 ऐतिहासिक कलाकृतियां और मूर्तियां भारत वापस लाई गईं थी। इसमें से 41 धरोहरे साल 2014 से 2021 के दौरान लाई गईं। उनके अनुसार करीब 75 फीसदी धरोहरे मोदी सरकार के 7 साल के कार्यकाल में भारत वापस लाई गईं।
इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब सितंबर 2021 में अमेरिका यात्रा पर गए थे। तो उस दौरान उन्हें 157 कलाकृतियां और मूर्तियां भेंट की गईं। जो कि भारत से वहां पहुंची थीं। प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा 25 सितंबर को दी गई जानकारी के अनुसार 157 कलाकृतियों की सूची में 10वीं सदी की बलुआ पत्थर से बनी रेवंत की डेढ़ मीटर लम्बी नक्काशीदार पट्टिका से लेकर, 12वीं सदी की कांसे की 8.5 सेंटीमीटर उंची नटराज की उत्कृष्ट मूर्ति शामिल हैं। अधिकांश वस्तुएं 11वीं सदी से लेकर 14वीं सदी के काल की हैं। इसके साथ 2000 ईसा पूर्व की तांबा निर्मित मानववंशीय वस्तु या दूसरी सदी के टेराकोटा निर्मित फूलदान जैसे ऐतिहासिक पुरावशेष भी शामिल हैं। करीब 45 पुरावशेष ईसा पूर्व काल के हैं।
157 कलाकृतियाों में से 71 जहां सांस्कृतिक धरोहरे हैं, वहीं हिंदू धर्म से जुड़ी 60 , बौद्ध धर्म से जुड़ी 16 और जैन धर्म से जुड़ी 9 मूर्तियां शामिल हैं। इन कलाकृतियों की निर्माण सामग्री में धातु, पत्थर और टेराकोटा का इस्तेमाल किया गया हैं।
कोहिनूर का अब भी इंतजार
जिस तरह से पिछले 7 साल में भारतीय धरोहरें वापस आई हैं। उससे मोदी सरकार से यह उम्मीद बन गई है कि वह भारत के कोहिनूर हीरों को वापस भारत ला सकती हैं। हालांकि इसके लिए, बहुत कुछ ब्रिटेन सरकार के रवैये पर निर्भर करेगा। कोहिनूर हीरा को लेकर ब्रिटिश सरकार अपने कानून हवाला देती रही है। जिसके अनुसार वह अपने नेशनल म्यूजियम किसी धरोहर को नहीं सौंप सकती है। ऐसे में इस बात का ही इंतजार है कि मोदी सरकार किस तरह ब्रिटिश सरकार को तैयार करती है।