- महाराष्ट्र में एनसीपी- कांग्रेस और शिवसेना के बीच कुछ मुद्दों के लेकर जारी है तनातनी
- उद्धव ठाकरे ने भीमा-कोरेगांव मामले को एनआईए को सौंप दिया है जिससे लेकर नाराज हैं शरद पवार
- वहीं एनपीआर लागू करने को भी उद्धव सरकार ने मंजूरी दी, कांग्रेस-एनसीपी कर चुकी हैं विरोध
मुंबई: महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार में खींचतान की खबरें सामने आ रही हैं। सरकार में शामिल कांग्रेस और एनसीपी से सीधे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने मोर्चा ले लिया है। दरअसल तनातनी उस समय शुरू हुई जब पिछले महीने महाराष्ट्र सरकार ने भीमा कोरेगांव हिंसा की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंपे जाने का विरोध किया था लेकिन अब खुद सीएम ठाकरे ने इसे मंजूरी दे दी है। सरकार के इस फैसले से एनसीपी सुप्रीमो पवार नाराज बताए जा रहे हैं।
भीमा कोरेगांव पर गृह मंत्री के फैसले को उद्धव ने पलटा
दरअसल कुछ दिन पहले आरोप लगाया था कि भीमाा-कोरेगांव हिंसा मामले में केंद्र ने भंडाफोड़ होने की वजह से इसकी जांच एनआईए को सौंप दी थी। पवार ने एल्गार परिषद मामले में जांच के लिए एक एसआईटी गठित करने की मांग की थी। इस मामले को लेकर खुद उद्धव ठाकरे ने समीक्षा बैठक भी बुलाई थी। तब राज्य के गृहमंत्री और एनसीपी नेता अनिल देशमुख ने इसे लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाने तक की बात कही थी। लेकिन अब सरकार ने गृह मंत्रालय के फैसले को नजरअंदाज करते हुए इसकी जांच एनआईए को सौंपने की मंजूरी दे दी है।
एनपीए को भी दिया समर्थन
उद्धव सरकार ने एक दूसरा बड़ा फैसला लिया है। कांग्रेस और एनसीपी के विरोध के बावजूद उन्होंने राज्य में एनपीआर लागू करने को मंजूरी दे दी है। उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में 1 मई से नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) लागू करना चाहते हैं जो कि 15 जून तक चलेगा। शिवसेना सांसद अनिल देसाई ने उद्धव साहब के बयान का हवाला देते हुए कहा था कि उन्होंने साफ-साफ कहा है कि एनपीआर अगर जनगणना जैसा ही है, तो कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए।वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस और एनसीपी लगातार एनपीआर का विरोध कर रही हैं। इससे पहले गृह मंत्री अनिल देशमुख ने एनपीआर के विरोधियों के प्रतिनिधियों से मुलाकात के दौरान कहा था कि सरकार कानून विशेषज्ञों से विचार-विमर्श कर रही है।
पांच साल कैसे चलेगी सरकार
उद्धव के इन फैसलों से सबके मन में यही सवाल उठ रहा है कि कैसे महाविकास अघाड़ी की सरकार अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा करेगी। राजनीतिक जानकारों की मानें तो इन फैसलों से सरकार को फिलहाल कोई खतरा नहीं होगा। वहीं अपने इस कदम के जरिए उद्धव ठाकरे साबित करने की कोशिश कर सकते हैं कि राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दे पर वह किसी भी तरह का समझौता नहीं कर सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ मनसे प्रमुख राज ठाकरे अब हिंदुत्व को लेकर आक्रामक हो रहे हैं।