नई दिल्ली। 2 अक्टूबर को देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी( Mahatma Gandhi) की 150वीं जयंती(150th birth anniversary) मना रहा होगा। 1869 में पोरबंदर में एक ऐसे शख्स का जन्म हुआ जिसने कामयाबी और विचारों का वो मिसाल कायम की जिसकी दुनिया कायल हो गई। उनके विचार किसी देश की भौगोलिक सीमा तक नहीं बंध कर रह गए बल्कि पूरी दुनिया उनके विचारों में समाहित हो गई। उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और सिद्धांतों से ये साबित कर दिया कि शक्तिशाली सत्ता को भी सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर चलकर पराजित किया जा सकता है। भारत की आजादी को उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
भारत की आजादी की लड़ाई के दौरान उन्होंने विचारों की ऐसी श्रृंखला को जन्म दिया जिसकी वजह से कभी सूरज अस्त न होने वाले साम्राज्य का सूरज अस्त हो गया। इंग्लैंड के पीएम रहे विंस्टन चर्चिल ने तो यहां तक कह दिया कि अधनंगे फकीर ने ब्रिटिश साम्राज्य की चूलें हिला दी। यहां पर हम गांधी जी के पांच विचारों पर नजर डालेंगे जो किसी भी काल परिस्थित में प्रासंगिक हैं।
पूरा विश्व परिवार है
भारतीय संस्कृति में पूरी धरती को परिवार कहा जाता है। इस संबंध में गांधी जी की पत्नी से एक रिपोर्टर ने पूछा था कि आप के कितने बच्चे हैं, उस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि चार बच्चे हैं। लेकिन इसके साथ ही जोड़ा कि उनके पति के लिए 400 मिलियन लोग परिवार हैं। दरअसल जिस वक्त यह सवाल किया गया था उस समय भारत की जनसंख्या 400 मिलियन थी।
कामगारों का सम्मान
एक बार लाला लाजपत राय और महात्मा गांधी एक मुखर राष्ट्रवादी के घर पर ठहरे हुए थे। लाला लाजपत राय ने नहाने के बाद अपने गंदे कपड़े को बाथरूम में छोड़ दिया और नए कपड़े पहनकर बाहर आए। अगले दिन उनके गंदे कपड़े साफ सुथरे और तह करके उनकी बेड पर रखे हुए हैं। लाला लाजपत राय ने उस राष्ट्रवादी शख्स से कहा कि अगर उनके सभी गंदे कपड़े धूल जाएं तो अच्छा रहेगा। उनकी इस मांग पर उस शख्स ने हामी भरी। जब वो वहां से निकलने लगे तो कहा कि वो टिप देना चाहते हैं इस सवाल के जवाब में जब उन्हें पता चला कि कपड़ा धोने और सुखाने वाला शख्स कोई और नहीं बल्कि गांधी जी खुद थे तो वो शर्मिंदा हुए।
हम शासन के लिए नहीं बल्कि सेवा के लिए हैं
एक बार की बात है कि स्वामी सत्यदेव नाम एक संन्यासी साबरमती आश्रम में रुके हुए थे। उन्होंने गांधी जी से कहा कि वो वहीं काम करना पसंद करेंगे जो आप करते हैं। इस सवाल के जवाब में गांधी जी ने कहा कि वो उनका स्वागत करते हैं। लेकिन उसके लिए भगवा कपड़े उतारने होंगे और जिस तरह से दूसरे लोग रहते हैं वैसे रहना होगा। स्वामी जी को ये बात पसंद नहीं आई और कहा कि वो संन्यासी हैं। लेकिन गांधी जी ने कहा कि संन्यास विचार की एक अवस्था है, ड्रेस से उसका लेनादेना नहीं है। इसके साथ ये भी कहा कि अगर आप भगवा वस्त्र धारण करेंगे तो दूसरे लोग आप को काम नहीं करने देंगे और वो आपकी सेवा में लग जाएंगे। इस वजह से जो हमारी अपनी मर्यादा और अनुशासन है प्रभावित होगी।
निडर थे गांधी जी
गांधी जी कहा करते थे उन्हें भय नहीं है और यही वजह है कि वो बिना हथियारों के रहते हैं और यही अहिंसा है। एक बार जब पश्चिमोत्तर राज्य के दौरे पर थे वो संगीनों के साए में लंबे लंबे पठानों के बीच में थे। गांधी जी ने पूछा क्या आप लोग भयभीत हैं आप लोगों को बंदूक रखने की क्या जरूरत है। इस सवाल के जवाब में भीड़ में सन्नाटा छा गया। और कोई भी इस सवाल का जवाब देने का साहस नहीं जुटा पाया।
दूसरों के लिए दयालू होना
1940 से 1941 के दौरान व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान उन्होंने अपने आंदोलन को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया। इसके पीछे तर्क दिया कि ब्रिटिश अधिकारी और कर्मचारी अपने क्रिसमस की छुट्टियों का आनंद ले सकेंगे क्यों उन्हें गिरफ्तार करने के लिए नहीं आना होगा।