30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने दिल्ली के बिरला भवन में तीन गोलियां मारकर महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी। गोडसे हिंदू राष्ट्रवाद का समर्थक था, महाराष्ट्र के पुणे से था। उसका मानना था कि गांधी ने हिंदुस्तान के विभाजन के दौरान भारत और पाकिस्तान के मुसलमानों की राजनीतिक मांगों का समर्थन किया। वो गांधी को मुस्लिम समर्थक मानता था। वो मानता था कि गांधी ने हिंदुओं के अत्याचार पर आंखें मूंद ली थीं। उसने नारायण आप्टे और छह अन्य लोगों के साथ गांधी हत्या की साजिश रची थी।
गांधी की हत्या के लिए एक साल तक चले मुकदमे के बाद गोडसे को 8 नवंबर, 1949 को मौत की सजा सुनाई गई थी। गोडसे को 15 नवंबर 1949 को अंबाला सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी। गोडसे 22 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के साथ-साथ हिंदू महासभा का सदस्य बना। अपने विचारों को प्रचारित करने के लिए उसने अक्सर अखबारों में लेख लिखे।
1940 के दशक की शुरुआत में गोडसे ने अपना 'हिंदू राष्ट्र दल' संगठन बना लिया। हालांकि वो RSS और हिंदू महासभा का सदस्य रहा। बताया जाता है कि 1946 में गोडसे ने भारत के विभाजन के मुद्दे पर आरएसएस छोड़ दिया। हालांकि उसके परिवार का दावा है कि उन्होंने कभी आरएसएस नहीं छोड़ा।
गोडसे ने गांधी की हत्या क्यों की इसके पीछे उसके खुद के तर्क थे। उसका मानना था कि गांधी का मुसलमानों के प्रति नरम रुख था। बंटवारे के लिए गांधी को जिम्मेदार मानता था। वो मानता था कि गांधी ने भारत सरकार पर पाकिस्तान को उसके हिस्से के 55 करोड़ रुपए देने का दबाव बनाया।
हाल के कुछ सालों में एक बार फिर गोडसे का जिक्र जोर-शोर से होने लगा है। कई बार बीजेपी के कुछ नेता या उसकी समान विचारधारा के कुछ संगठन गोडसे के पक्ष में बयान देते नजर आते हैं। बीजेपी सांसदी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने लोकसभा चुनाव 2019 से पहले गोडसे को देशभक्त बताया, जिससे बीजेपी ने खुद को अलग कर लिया। बाद में प्रज्ञा ठाकुर ने माफी भी मांगी। बाद एक बार फिर उन्होंने गोडसे के समर्थन में बयान दिया। कई लोग गोडसे को आजाद भारत का पहला आतंकवादी भी कहते हैं।