- प्रचंड बहुमत के साथ तीसरी बार टीएमसी पश्चिम बंगाल में सत्ता आई
- नंदीग्राम सीट से अपने सिपहसालार रहे शुभेंदु अधिकारी से ममता बनर्जी हार गईं
- 5 मई को सीएम पद की शपथ ली संवैधानिक बाध्यता के आधार पर 6 महीने के भीतर चुनाव जीतना जरूरी है
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने प्रचंड जीत हासिल की। लेकिन नंदीग्राम में वो अपने सिपहसालार रहे शुभेंदु अधिकारी से चुनाव हार गई। टीएमसी की तरफ से चुनावी प्रक्रिया में धांधली का आरोप लगाया और मामला कलकत्ता हाईकोर्ट पहुंच गया। टीएमसी को सुनवाई करने वाले जज पर भी ऐतराज था। टीएमसी की तरफ से जज को बदलने की अर्जी लगाई गई लेकिन कामयाबी नहीं मिली। 12 अगस्त को हाईकोर्ट ने नंदीग्राम मामले को 15 नवंबर तक के लिए टाल दिया और तारीख का टलना ही ममता के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है।
पांच मई को ममता बनर्जी ने तीसरी बार सीएम पद की शपथ ली, हालांकि वो विधानसभा की सदस्य नहीं हैं और राज्य में विधानपरिषद नहीं है। ऐसे में उन्हें 6 महीने के भीतर सदन का निर्वाचित सदस्य होना जरूरी है। अगर पांच मई से 6 महीने के कार्यकाल को देखें तो ममता बनर्जी का निर्वाचन 5 नवंबर से पहले जरूरी है। लेकिन मुश्किल यह है कि क्या कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए निर्वाचन आयोग चुनाव कराने का फैसला लेगा।
अगर पांच नवंबर से पहले चुनाव आयोग चुनाव का फैसला लेता है तो ममता बनर्जी कहां से किस्मत आजमां सकती हैं। इस सवाल के जवाब में जानकार कहते हैं कि भवानीपुर उनकी पारंपरिक सीट रही है ऐसे में स्वाभाविक तौर पर वो वहां से उम्मीदवार हो सकती हैं। इस संबंध में भवानीपुर से मौजूदा विधायक का कहना है कि सीट तो दीदी की ही रही है, जब कभी पार्टी उनसे इस्तीफे की बात कहेगी वो निर्देश का पालन करेंगे।