- गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुइजिन्हो फलेरियो, 10 कांग्रेस साथियों के साथ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए।
- 16 अगस्त को असम से कांग्रेस पार्टी की वरिष्ठ नेता सुष्मिता देव ने कांग्रेस का साथ छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया था।
- त्रिपुरा में भी तृणमूल ने कांग्रेस को झटका दिया है। कांग्रेस के कई प्रमुख नेता पार्टी छोड़ चुके हैं।
नई दिल्ली: वैसे तो भवानीपुर में आज हो रहा मतदान, महज एक उप चुनाव है। जहां से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी विधान सभा की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ रही है। लेकिन इस उप चुनाव के बड़े राजनीतिक मायने हैं। क्योंकि अगर ममता बनर्जी,चुनाव जीतती हैं, तो वह सीधे तौर पर दिल्ली की कुर्सी का दावा ठोकेंगी। लेकिन इसके लिए लगता है कि ममता, राहुल गांधी को साइडलाइन करना चाहती है। क्योंकि मई में जीत के बाद से उनके निशाने पर भाजपा से ज्यादा कांग्रेस आ गई है। वह लगातार कांग्रेस के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर रही हैं। और पार्टी के मुख पत्र जागो बंग्ला ने तो यहां तक लिख दिया है " तृणमूल कांग्रेस ही असली कांग्रेस है। और बंगाल में अधिकांश लोगों का मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर तृणमूल कांग्रेस ही कांग्रेस का विकल्प बनेगी।"
तृणमूल कांग्रेस का क्या इरादा है इसका संकेत बुधवार को गोवा के कांग्रेस नेताओं को तृणमूल कांग्रेस में शामिल करते हुए भी मिल गया है।पार्टी के नेता और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने कहा "अगर कांग्रेस भाजपा के खिलाफ चुप रहना चुनती है, तो हमसे चुप बैठने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। हम बीजेपी को हराना चाहते हैं। पिछले सात सालों में भाजपा को तृणमूल कांग्रेस हरा रही है। इसस दौरान कांग्रेस को भाजपा ने हराया है।" साफ है कि ममता बनर्जी अब राष्ट्रीय स्तर पर अपना विस्तार करना चाहती है। और इसके लिए वह सबसे पहले कांग्रेस के असंतुष्ट लोगों को अपने पाले में ले रही है।
जहां मौका मिल रहा है वहां कांग्रेस को तोड़ रही है तृणमूल
बीते बुधवार को गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुइजिन्हो फलेरियो, 10 कांग्रेस साथियों के साथ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। गोवा में पांच राज्यों के साथ विधान सभा चुनाव होने वाले हैं। तृणमूल में शामिल होने से पहले फलेरियो ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से टक्कर लेने के लिए देश को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी जैसी नेता की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि उनका लक्ष्य कांग्रेस परिवार को एकजुट करना है।फिलहाल कांग्रेस परिवार टीएमसी कांग्रेस, वाइआरएस कांग्रेस, एनसीपी आदि में बंटा हुआ है।
इसके पहले 16 अगस्त को असम से कांग्रेस पार्टी की वरिष्ठ नेता सुष्मिता देव ने पार्टी से 30 साल पुराना नाता तोड़ लिया था और वह तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गईं थी। बाद में तृणमूल कांग्रेस ने उन्हें राज्य सभा की सदस्यता दिला दी है। ममता बनर्जी ने इसके अलावा त्रिपुरा में भी कांग्रेस को झटका दिया है। कांग्रेस के कई प्रमुख नेता तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। इसके तहत पूर्व मंत्री प्रकाश चंद्र दास, सुबल भौमिक, प्रणब देब, मोहम्मद इदरिस मियां, प्रेमतोष देबनाथ, बिकास दास, तपन दत्ता ममता के साथ हो गए हैं ।
तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद सौगत रॉय टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से सुष्मिता देव के पार्टी में शामिल होने पर कह चुके हैं "देखिए पार्टी ने यह तय किया है कि हम दूसरे राज्यों में विस्तार करेंगे, वहीं हम कर रहे हैं। त्रिपुरा हो या सुष्मिता देव का आना उसी कवायद का हिस्सा है। जहां तक राष्ट्रीय स्तर पर एक जुट होने की बात है तो हमारा प्रयास है कि सब लोग एक जुट हो। यह लंबी स्टोरी है, अभी समय है। हमारी कोशिश है कि विपक्षी दल एक जुट होकर भाजपा को टक्कर दे सकें।"
हालांकि कांग्रेस छोड़कर जा रहे लोगों पर पार्टी के वरिष्ठ नेता और जी-23 के नेता कपिल सिब्बल ने प्रेंस कांफ्रेंस कर, बुधवार को कहा कि 'लोग हमें छोड़ रहे हैं। सुष्मिता जी चली गईं, फेलेरियो, सिंधिया, जितिन प्रसाद चले गए। केरल से सुधीरन चले गए, अब सवाल यह उठता है कि लोग क्यों जा रहे हैं, इसका जवाब मिलना चाहिए। जाहिर है कपिल सिब्बल कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं। पार्टी के एक अन्य नेता कहते हैं देखिए चिंता की बात है, इस पर मिल बैठकर बात करना चाहिए, जो हो रहा है वह पार्टी के लिए अच्छा नहीं है।
मुखपत्र से क्या है संदेश
तृणमूल आगे क्या सोच रही है, यह उसके मुखपत्र जागो बंगला के 25 सितंबर के संपादकीय से भी समझ में आता है। संपादकीय में लिखा गया है कि बंगाल में अधिकांश लोगों का मानना है कि कांग्रेस की विरासत का झंडा अब टीएमसी के हाथ में है। और वहीं असली कांग्रेस है। जो कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को चुनौती दे सकती है। जो अभी भी कांग्रेस के साथ हैं, उनका टीएमसी में स्वागत है। हम कांग्रेस के बिना गठबंधन की बात नहीं कर रहे हैं। लेकिन अगर कांग्रेस बार-बार विफल होती है, और उसका लोकसभा में बीजेपी को फायदा होता है। तो ऐसा दोबारा नहीं होने दिया जा सकता। जाहिर है ममता बनर्जी अब नरेंद्र मोदी के मुकाबले विपक्ष का चेहरा बनना चाहती है।
शरद पवार भी रेस में
ममता बनर्जी की तरह एनसीपी प्रमुख शरद पवार भी विपक्ष की अगुआई करना चाहते हैं। कई बार एनसीपी नेताओं की तरफ से इस बात के संकेत दिए गए हैं कि सोनिया गांधी की अस्वस्थता को देखते हुए शरद पवार को यूपीए का प्रमुख बनाया जाना चाहिए। ऐसे में साफ है कि शरद पवार इतनी आसानी से ममता के लिए रास्ता साफ नहीं करने वाले हैं। इसके अलावा यह भी समझना होगा कि अभी देश में 200 से ज्यादा ऐसी सीटें हैं, जहां पर भाजपा की सीधी टक्कर कांग्रेस से हैं। ऐसें में उसके नेतृत्व के बिना कोई गठबंधन करना इतना आसान नहीं होगा।