चेन्नई : मद्रास उच्च न्यायालय ने युवा दंपतियों को चेतावनी देते हुए कहा है कि पति एवं पत्नी को इस बात का अहसास करना चाहिए कि 'अहंकार' एवं 'असहिष्णुता' जूते की तरह हैं जिन्हें घर में कदम रखने से पहले बाहर ही छोड़ देना चाहिए, अन्यथा उनके बच्चों को दयनीय जिंदगी से जूझना पड़ेगा।
न्यायमूर्ति एस वैद्यनाथन ने युवाओं को यह भी याद दिलाया कि विवाह कोई अनुबंध नहीं बल्कि पवित्र बंधन है। उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 में सह-जीवन (लिव-इन-रिलेशनशिप) को मंजूरी देने से पवित्र बंधन का कोई अर्थ नहीं रह गया है।
अदालत ने कहा कि झूठी शिकायत दर्ज कराने को लेकर पत्नी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए पति के पास घरेलू हिंसा अधिनियम जैसा कोई प्रावधान नहीं है। न्यायालय ने याचिकाकर्ता डॉ. पी शशिकुमार की याचिका को मंजूर करते हुए यह टिप्पणी की।
क्या है मामला?
याचिकाकर्ता ने पशुपालन एवं पशुविज्ञान निदेशक द्वारा उन्हें सेवा से हटाने के 18 फरवरी, 2020 के आदेश को चुनौती दी थी और उन्हें सभी लाभों के साथ पद पर बहाल करने का अनुरोध किया था। शशिकुमार के अनुसार उन्हें इस आधार पर सेवा से हटा दिया गया कि वह घरेलू मुद्दे में संलिप्त थे और उनके विरूद्ध उनकी पूर्व पत्नी ने शिकायत दर्ज कराई थी।
पूर्व पत्नी ने सलेम में न्यायिक मजिस्ट्रेट सह अतिरिक्त महिला अदालत में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत याचिकाकर्ता के विरूद्ध तलाक कार्यवाही शुरू की थी। याचिकाकर्ता ने भी सलेम में प्रथम अतिरिक्त उप न्यायाधीश के सामने ऐसी ही याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता की तलाक के लिए याचिका पारिवारिक अदालत ने स्वीकार कर ली और वह अंतिम हो गया था।
याचिकाकर्ता ने इसके लिए पत्नी की क्रूरता एवं अपनी इच्छा से उसे छोड़ देने का आधार बनाया था। जब पारिवारिक अदालत के फैसले की प्रतीक्षा की जा रही थी, तब उसी दौरान पत्नी ने याचिकाकर्ता के विरूद्ध शिकायत की और उसके आधार पर उन्हें सेवा से हटा दिया गया।
न्यायमूर्ति वैद्यनाथन ने कहा कि पारिवारिक अदालत के पिछले साल 19 फरवरी के आदेश से पारिवारिक मुद्दे का तो पहले ही निस्तारण हो गया है , अब याचिकाकर्ता के विरूद्ध विभाग द्वारा दंडात्मक कार्रवाई का प्रश्न नहीं उठता, जब पत्नी की क्रूरता एवं स्वेच्छा से पति को छोड़ देने की बात स्पष्ट रूप से सामने हो।
भाषा राजकुमार नरेश उमा दिलीप