- हिंदू पक्ष शिवलिंग का कार्बन डेटिंग टेस्ट करने की मांग कर सकता है।
- मुस्लिम पक्ष के पास इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट जाने का विकल्प है।
- SC ने मामला वाराणसी की जिला अदालत को भेज दिया था और कहा कि अदालत तय करे कि मामले आगे सुनवाई के लायक है या नहीं।
Gyanvapi Case: वाराणसी की जिला अदालत ने ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी विवाद को सुनवाई के लायक मान लिया है। और उसने कहा है कि इस मामले वह आगे सुनवाई जारी रखेगा। कोर्ट ने इस केस को नहीं सुनने के लिए, मुस्लिम पक्ष की दलीलों को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने यह भी माना है कि यह केस 1991 के उपासना स्थान कानून के तहत नहीं आता है। अब वाराणसी जिला अदालत 22 सितंबर को इस मामले में अगली सुनवाई करेगी। फैसले के बाद ऐसी संभावना है कि हिंदू पक्ष ASI के द्वारा सर्वे करने और शिवलिंग का कार्बन डेटिंग टेस्ट करने की मांग कर सकता है।
क्या है मामला
पांच हिंदू महिलाओं द्वारा अगस्त 2021 में दायर की गई याचिका में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मौजूद हिंदू देवी-देवताओं की पूजा की अनुमति मांगी थी। याचिका में मांग की गई थी कि मां श्रृंगार गौरी, गणेश जी, हनुमान जी समेत परिसर में मौजूद अन्य देवताओं की रोजाना पूजा की इजाजत मिले। अभी साल में एक बार ही पूजा की अनुमति है। इन पांच याचिकाकर्ताओं में दिल्ली की रहने वाली राखी सिंह, और बनारस की सीता साहू, मंजू व्यास, लक्ष्मी देवी और रेखा पाठक शामिल हैं।
राखी सिंह :दिल्ली की रहने वाली राखी सिंह इस मामले की अगुवाई कर रहीं हैं। इस पूरे मामले को 'राखी सिंह और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार' नाम दिया गया है।
मंजू व्यास: ज्ञानवापी मामले में याचिकाकर्ता मंजू व्यास वाराणसी की रहने वाली हैं। और सोमवार को फैसला आने के बाद वह खुशी से नाचती हुईं नजर आई। उन्होंने कहा कि भारत आज खुश है, मेरे हिंदू भाइयों और बहनों को जश्न मनाने के लिए दीप जलाना चाहिए।
लक्ष्मी देवी: लक्ष्मी भी वाराणसी की रहने वाली हैं। उनके पति डॉक्टर सोहन लाल आर्य ने भी 1996 में ज्ञानवापी को लेकर अदालत में एक मामला दर्ज कराया था।
सीता साहू और रेखा पाठक: दोनों याचिकाकर्ताएं वाराणसी की रहने वाली हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार पांचों महिलाओं की मुलाकात वाराणसी में हीं काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा के दौरान हुई थी। और वहीं से उनकी दोस्ती भी परवान चढ़ी।
कोर्ट के फैसले के बाद क्या
न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार सोमवार को फैसले के पहले हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा था 'अगर फैसला उनके पक्ष में आता है तो वह ASI सर्वे की मांग करेंगे। साथ ही शिवलिंग की कार्बन डेटिंग टेस्ट कराने को कहेंगे।' इसके अलावा मुस्लिम पक्ष इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट भी जा सकता है। मुस्लिम पक्ष 1991 के उपासना स्थान कानून के आधार पर केस की सुनवाई नहीं करने की मांग कर रहा था।
अब तक क्या हुआ
ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर पहली बार 1991 में अदालत में याचिका दाखिल की गई थी। उस वक्त वाराणसी के साधु-संतों ने सिविल कोर्ट में याचिका दाखिल करके वहां पूजा करने की मांग की और जमीन हिंदुओं को देने की माँग की गई थी। उनकी इस मांग का मस्जिद की प्रबंधन समिति ने इसका विरोध किया और दावा किया कि ये उपासना स्थल कानून का उल्लंघन है। लेकिन उस समय से यह मामला ठंडे बस्ते मे रहा।
इसके बाद दिसंबर 2019 में अयोध्या फैसले के बाद वाराणसी सिविल कोर्ट में नई याचिका दाखिल की गई। जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कराने की मांग की गई। फिर 2020 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सिविल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाई और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
अप्रैल 2021 में वाराणसी सिविल कोर्ट ने मस्जिद के सर्वे की अनुमति दी। इसके बाद अगस्त पांच महिलाओं ने मस्जिद परिसर में मां शृंगार गौरी और दूसरे देवी-देवताओं का दर्शन और पूजा की मांग की।
इसके करीब एक साल बाद अप्रैल 2022 में अप्रैल में सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करने और उसकी वीडियोग्राफी के आदेश दिए। इस फैसले के खिलाफ मई 2022 में मस्जिद इंतजामिया ने ज्ञानवापी मस्जिद की वीडियोग्राफी मामला लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने शिवलिंग की सुरक्षा के लिए वुजूखाने को सील करने का आदेश दिया, साथ ही मस्जिद में नमाज जारी रखने की अनुमति भी दी। और अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मामला वाराणसी की जिला अदालत को भेज दिया और कहा कि अदालत यह तय करे कि मामले आगे सुनवाई के लायक है या नहीं। अब उसी के आधार पर वाराणसी कोर्ट ने सुनवाई का फैसला दिया है।