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महबूबा मुफ्ती का फिर जागा पाक‍िस्‍तान प्रेम, कहा- कश्‍मीर के समधान के लिए पड़ोसी मुल्‍क से बातचीत जरूरी

Updated Feb 13, 2022 | 17:16 IST

जम्‍मू कश्‍मीर की पूर्व मुख्‍यमंत्री व पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने एक बार फिर पाकिस्‍तान को लेकर अपना प्रेम जाहिर किया है। उन्‍होंने कहा कि कश्‍मीर एक राजनीतिक मसला और भारत को इस पर अपने हमसाया पाक‍िस्‍तान से बात करनी चाह‍िए।

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महबूबा मुफ्ती का फिर जागा PAK प्रेम, हिजाब पर कही ये बात

श्रीनगर : जम्‍मू कश्‍मीर की पूर्व मुख्‍यमंत्री व पीपुल्‍स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की नेता महबूबा मुफ्ती का पाकिस्‍तान प्रेम एक बार फिर सामने आया है। भारत जहां जम्‍मू कश्‍मीर को अपना अभिन्‍न हिस्‍सा और आंतरिक मामला बताता है, वहीं महबूबा मुफ्ती ने एकर बार फिर इच्‍छा जताई है कि भारत को कश्‍मीर मसले के समाधान के लिए अपने 'हमसाया' पाकिस्‍तान से बात करनी चाहिए।

PDP नेता महबूबा मुफ्ती रविवार को संवाददाताओं से बात कर रही थीं, जब उन्‍होंने कहा कि भारत को जम्मू कश्‍मीर के मसले के समाधान के लिए पाकिस्‍तान से बात करनी चाहिए। उन्‍होंने कहा, जब तक जम्‍मू कश्‍मीर को राजनीतिक मसला समझकर इसके समाधान की दिशा में कदम नहीं बढ़ाए जाते, यह मसला नहीं सुलझेगा। इस दौरान उन्‍होंने बीजेपी पर भी हमला बोला और कहा कि यह एक राजनीतिक मसला है, लेकिन बीजेपी इसे सामुदायिक मसला बनाना चाहती है।

पाकिस्‍तान से बातचीत पर जोर

उन्‍होंने कहा, जम्‍मू कश्‍मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के धारा 370 को खत्‍म कर दिया गया, लेकिन इस मसले का समाधान अब तक नहीं हो पाया है, बल्कि यह और पेचीदा हो गया है, क्‍योंकि यह एक राजनीतिक मसला है। भारत को इस पर आज नहीं तो कल अपने 'हमसाया' पाकिस्‍तान से बात करनी ही होगी। तभी इसका समाधान निकल सकेगा और यहां खून खराबे का दौर थमेगा।

यह कोई पहली बार नहीं है, जब महबूबा मुफ्ती ने कश्‍मीर मसले के समाधान के लिए पाकिस्‍तान से बात करने की वकालत की है। महबूबा मुफ्ती ही नहीं, कश्‍मीर की कई अन्‍य पार्टियां और इनके नेता भी इस मसले पर समान रुख जाहिर कर चुकी हैं, जिनमें नेशनल कॉन्‍फ्रेंस के नेता व जम्‍मू कश्‍मीर के पूर्व मुख्‍यमंत्री फारूक अब्‍दुल्‍ला भी शामिल हैं।

वहीं, महबूबा मुफ्ती ने रविवार को संवाददाताओं से बातचीत के दौरान हिजाब व‍िवाद पर भी बात की और इसके लिए बीजेपी को आड़े हाथों लिया। उन्‍होंने कहा कि भारत की वैश्विक पहचान कभी लोकतांत्रिक मूल्‍यों और धर्मनिरपेक्षता को लेकर थी, लेकिन अब इसे एक-एक करके खत्‍म किया जा रहा है। 
 

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