- मुफ्ती मुहम्मद सईद यूपी के मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़कर देश के गृह मंत्री बन चुके हैं।
- गुलाम नबी आजाद महाराष्ट्र के वासिम से लोक सभा सांसद रह चुके हैं।
- राज्य में अब विधानसभा में सीटों की संख्या 83 से बढ़ाकर 90 कर दी गई है।
Jammu And Kashmir New Voter list: जम्मू-कश्मीर में नए वोटर को लेकर घमासान मचा हुआ है। राज्य के राजनीतिक दल इसको लेकर केंद्र सरकार पर सीधा निशाना साध रहे हैं। कोई कह रहा है कि मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में आखिरी कील ठोक दी है, तो कई कह रहा है कि सरकार के ताजा से फैसले से जम्मू-कश्मीर की पहचान ही खत्म हो जाएगी। अब सवाल उठता है कि मोदी सरकार ने ऐसा क्या फैसला किया है, जिससे नेशनल कांफ्रेंस से लेकर पीडीपी के नेता बेचैन और परेशान हैं।
असल में जम्मू-कश्मीर में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए नई वोटर लिस्ट बनाने का काम शुरू हो रहा है। इसके तहत अब सरकार ने फैसला किया है कि राज्य में अब वह सभी लोग अपना वोट डाल सकेंगे, जो जम्मू और कश्मीर में बाहर से आकर बस गए हैं और उनके पास डोमिसाइल सर्टिफिकेट (निवास प्रमाण पत्र) नहीं है। अभी तक विधानसभा, पंचायत चुनावों में केवल राज्य के मूल निवासियों को ही वोटिंग का अधिकार था। अनुच्छेद 370 और 35ए के तहत जम्मू और कश्मीर का विशेषाधिकार खत्म होने के बाद राज्य में देश के दूसरे राज्यों के तरह कानून लागू हो गए हैं। विरोध करने वाले पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती शायह यह भूल गई हैं कि एक तरफ वह अपने राज्य में दूसरे राज्यों से आकर बसे लोगों के वोटिंग अधिकार का विरोध कर रही हैं। लेकिन उनके ही पिता मुफ्ती मुहम्मद सईद यूपी के मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़कर देश के गृह मंत्री तक बन चुके हैं।
जुड़ेंगे 25 लाख वोटर
राज्य के चुनाव आयोग के अनुसार, नए बदलावों के बाद इस साल राज्य में 25 लाख नए वोटर जुड़ने की उम्मीद है। इसमें छात्र, मजदूर,सरकारी कर्मचारी शामिल आदि होंगे। वोटर लिस्ट में उन लोगों का नाम शामिल किया जाएगा, जिनकी उम्र एक अक्टूबर 2022 तक 18 साल हो चुकी है। 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद वोटर लिस्ट में नए नाम जोड़ने की कवायद पहली बार की जा रही है। और यह काम 25 नवंबर तक पूरा हो जाएगा। इस समय जम्मू और कश्मीर में 76 लाख वोटर हैं। अगर 25 लाख वोटर और जुड़ते हैं तो राज्य में एक करोड़ के करीब वोटर हो जाएंगे।
मुफ्ती मोहम्मद सईद ने 1989 में यूपी से लड़ा था चुनाव
पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद ने 1989 में जनता दल के टिकट पर यूपी से चुनाव लड़ा था। और वह मुजफ्फरनगर सीट से लोक सभा सांसद चुने गए थे। और उसके बाद वह तत्तकालीन वी.पी.सिंह सरकार में गृह मंत्री बने थे। और वह देश के पहले मुस्लिम गृह मंत्री थे। उन चुनावों में सईद मुफ्ती मोहम्मद सई को तीन लाख 35 हजार से ज्यादा मत मिले थे और वह 1.50 लाख से ज्यादा मतों से चुनाव जीते थे। उनकी इस जीत के बाद ही वी.पी.सिंह ने उन्हें गृह मंत्री बनाया था।
इसी तरह कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद भी महाराष्ट्र के वासिम से लोक सभा सांसद रह चुके हैं। वह पहली बार साल 1980 में वहां से सांसद बने थे।इन उदाहरणों से साफ है कि जम्मू-कश्मीर के जो पार्टी बाहरी वोटर का जिक्र कर रही है। उनके नेता खुद जम्मू कश्मीर से बार निकलकर चुनाव लड़ चुके हैं और जनता ने भी उन्हें भारी मतों से जिताया है।
अब्दुल्ला ने बुलाई 5 सितंबर को बैठक
सोमवार को नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के घर जम्मू-कश्मीर के सभी राजनीतिक दलों की इस मुद्दे पर बैठक हुई। जिसके फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि 'वे कह रहे हैं कि नए मतदाता 25 लाख होंगे। यह 50 लाख, 60 लाख या एक करोड़ भी हो सकता है। इस पर कोई स्पष्टता नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर जम्मू-कश्मीर में गैर-स्थानीय लोगों को मतदान का अधिकार दे दिया गया, तो राज्य की पहचान खो जाएगी। इसलिए, हमने इसका मिलकर विरोध करने का फैसला किया है। इसके पहले महबूबा मुफ्ती गुरुवार को कह चुकी हैं कि जम्मू-कश्मीर में बाहरी लोगों को बसाने की कोशिश की जा रही है। सरकार चुनावी लोकतंत्र के ताबूत में अंतिम कील ठोक रही है।
किस बात का है डर
परिसीमन आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्य में अब विधानसभा में सीटों की संख्या 83 से बढ़ाकर 90 कर दी गई है। इनमें में 43 सीटें जम्मू में होंगी, जबकि 47 सीटें कश्मीर में होंगी। अभी तक 36 सीटें जम्मू में थी और कश्मीर में 46 सीटें थी। इन 90 सीटों में से 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित करने का भी प्रावधान किया गया है। जबकि 7 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित करने का प्रस्ताव है। इसके साथ ही जम्मू और कश्मीर की नई विधानसभा में लद्दाख का प्रतिनिधित्व नहीं होगा। क्योंकि वह अब केंद्र शासित प्रदेश बन चुका है।
2014 के विधानसभा चुनाव के परिणाम को देखा जाय तो पीडीपी को 28 सीटें, भाजपा को 25 सीटें, नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें मिलीं थी। इसमें भाजपा को केवल जम्मू क्षेत्र से जीत मिली थी, जहां हिंदुओं का प्रभाव है। वहीं उसे कश्मीर घाटी में एक भी सीट नहीं मिली थी। इसी तरह पीडीपी को केवल कश्मीर घाटी से सीटें मिली थी। भाजपा ने जम्मू की 37 में से 25 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। वहीं पीडीपी 46 में से 28 सीटें मिली थीं। इसी तरह के 2008 में भी जम्मू और कश्मीर का विभाजन दिखा था। अब जब नए वोटर जुड़ जाएंगे, तो साफ है कि राजनीतिक समीकरण बिगड़ेगा। जिसका सीधा असर स्थानीय राजनीतिक दलों पर हो सकता है।