- पूरे देश में प्रवासी मजदूरों की संख्या करीब 40 लाख
- प्रवासी मजदूरों के लिए चलाई जा रही हैं श्रमिक स्पेशल ट्रेन
- सरकारी इंतजामों के बाद भी पैदल ही सड़कों पर निकल रहे हैं श्रमिक
नई दिल्ली। देश एक तरफ कोरोना संक्रमण का सामना कर रहा है तो दूसरी तरफ तमाम ऐसी चुनौतियां हैं जिनसे सरकारें दो चार हो रही हैं, इनमें से ही एक है प्रवासी मजदूरों का मामला। एक तरफ प्रवासी मजदूरों के लिए स्पेशल ट्रेनें चलाई गई हैं तो दूसरी तरफ देश के अलग अलग हिस्सों से ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं जो व्यवस्था पर सवाल भी उठाती है, सवाल यह है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है।
दर्द की दरिया में प्रवासी मजदूर
पंजाब में यूपी के रहने वाले मजदूरों ने अपने दर्द को कुछ इस तरह व्यक्त किया। एक मजदूर का कहना है कि हमने घर जाने के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था। सबकुछ सही होने के बावजूद हमें बस से स्टेशन ले जाया गया और फिर वहां से वापिस कर दिया। हमें आश्वासन दिया गया कि कल दोबारा हमें ले जाया जाएगा पर अभी तक कोई मैसेज नहीं आया है।
पंजाब हो राजस्थान या कोई और राज्य..
दरअसल यह तस्वीर या कहानी पंजाब की नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र और राजस्थान से भी मामले सामने आए। रविवार को यूपी-एमपी और यूपी-राजस्थान की सीमा पर मजदूरों को रोक दिया गया। इन राज्यों के अधिकारियों में बहस इस बात पर हो गई कि इस तरह से मजदूरों के भेजने या आने के संबंध में किसी तरह का निर्देश नहीं है। अगर इसके कानूनी पक्ष को अगर एक किनारे रख दिया जाए तो मजदूरों को अनेकों मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
जब जैसा जो मिला निकल लिए
बिहार के मुजफ्फरपुर में प्रवासी मजदूरों का कहना है कि जहां उन्हें रखा गया है वहां किसी तरह की व्यवस्था नहीं है। तो कुछ ऐसा ही हाल यूपी के कानपुर में दिखाई दिया जब मजदूरों का झुंड साइकिल से बिहार के खगड़िया के लिए निकला। जब मजदूरों से जानने की कोशिश हुई कि सरकार की तरफ से तो इंतजाम किए जा रहे हैं तो आखिर वो इस तरह क्यों जा रहे हैं।