- कोरोना वायरस/लॉकडाउन से पैदा हुए हालात का सबसे अधिक खामियाजा प्रवासी मजदूरों को भुगतना पड़ रहा है
- काम-धंधे बंद हो जाने के कारण वे अपने घरों की ओर पलायन करने लगे हैं और साधन के अभाव में पैदल ही निकल पड़े हैं
- सड़कों पर रोज धूप, तपिश, तमाम मुश्किलें झेलते पैदल ही अपने घरों की ओर निकल पड़े प्रवासियों की बड़ी संख्या नजर आ रही है
भोपाल : कोरोना वायरस के कारण देशभर में जो हालात पैदा हुए हैं, उसका सबसे अधिक खामियाजा प्रवासी मजदूरों को भुगतना पड़ रहा है, जो काम धंधे बंद हो जाने के कारण अपने घरों की ओर पलायन करने लगे हैं। उनकी जेबें खाली हैं और कोई जमा-पूंजी भी नहीं है, जिसकी बदौलत वे एक अनजान शहर में रह सकें। फिर कोरोना का खौफ अलग कहर ढा रहा है। ऐसे में उनके पास अपने गांव घर लौट जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया है, जहां से उन्होंने काम की तलाश में शहरों की ओर रुख किया था।
कुछ दिनों पहले ही हैदबाद पहुंचे थे
ऐसे प्रवासी मजदूरों की संख्या सैकड़ों-हजारों में है, जो लॉकडाउन के बाद पैदल ही अपने घर की ओर निकल पड़े हैं। कुछ यही स्थिति मध्य प्रदेश से हैदराबाद में काम की तलाश में गए रामू गोरमारे के साथ भी पेश आई, जो 25 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा से कुछ दिनों पहले ही वहां गए थे। लॉकडाउन के ऐलान के साथ ही काम-धंधे बंद हो गए। कोरोना का संकट अलग गहराने लगा। ऐसे में उसे मध्य प्रदेश में अपने घर लौट जाने के अलावा कोई विकल्प नजर नहीं आया। गर्भवती पत्नी और मासूम बच्ची के साथ आगे का सफर कैसे होगा, इसकी चिंता थी मन में, पर और विकल्प ही क्या था?
मुश्किल सफर
हैदराबाद से मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में अपने गांव तक पहुंचना आसान न था। गर्भवती पत्नी, तीन साल की बच्ची और घर के छोटे-मोट सामान के साथ तकरीबन 700 किलोमीटर का सफर कैसे तय हो, इसका कोई उपाय समझ नहीं आ रहा था। पैदल चलते-चलते जब सफर मुश्किल नजर आने लगा तो उसे एक उपाय सूझा और उसने कुछ लकड़ियों को जोड़कर एक गाड़ी बनाई और इसमें पहियों का इंतजाम भी किया, जिसमें उसने सामान रखे और बच्ची को बिठाया। कई जगह जब पत्नी चलते-चलते थक जाती थी, उसने उसे भी उसमें बिठाया और खुद उसे खींचते हुए आगे का सफर तय किया।
'हमारे पास खाने को भी कुछ नहीं रह गया था'
रामू अपनी पत्नी और तीन साल की बच्ची के साथ 17 मार्च को काम की तलाश में हैदाबाद पहुंचे थे। तब उन्हें शायद ही पता था कि देश में एक सप्ताह बाद ही लॉकडाउन की घोषणा हो जाएगी और उसे एक बार फिर अपने गांव-घर इस तरह लौटना पड़ जाएगा। उसकी पत्नी धनवंता ने कुछ इस तरह अपनी हालत बयां की, 'हम 17 मार्च को हैदराबाद पहुंचे थे। कुछ ही दिनों बाद लॉकडाउन की घोषणा हो गई। हमारे पास से सारे पैसे खर्च हो गए थे। हमारे पास खाने को भी कुछ नहीं रह गया था, ऐसे में हमने अपने शहर लौट जाने का फैसला किया।'