- घाटी में पुश्तैनी 800 हिंदू और कश्मीरी पंडितों के परिवार हैं। इसके अलावा यहां काम करने वाले 3565 हिंदू हैं। जबकि 4000 लोग 2009 के पैकेज के जरिए घाटी में आए थे।
- कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अनुसार 15 मार्च 1989 से लेकर अब तक 730 कश्मीरी पंडितों की हत्या हो चुकी है।
- इसके पहले 2003 में आतंकवादियों ने बेरहमी से 24 कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी थी।
नई दिल्ली: कश्मीर घाटी में मंगलवार को आतंकवादियों ने 3 लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी। इसमें से सबसे चौंकाने वाला जान लेवा हमला श्रीनगर के इकबाल पार्क इलाके के प्रतिष्ठित केमिस्ट माखनलाल बिंद्रू पर किया गया। उन्हें, मेडिकल शॉप में घुसकर आतंकियों ने मार डाला। 68 साल के बिंद्रू उन चुनिंदा लोगों में थे, जिन्होंने 90 के दशक में भी कश्मीरी पंडितों पर हमले होने के बाद भी कश्मीर को नहीं छोड़ा था। श्रीनगर में कई वर्षों से यह बात मशहूर है कि जो दवा कहीं नहीं मिलेगी, बिंद्रू की दुकान पर मिलेगी। लोगों को उन पर इतना भरोसा था, कि वे लोग दुकान के आगे घंटों लाइन लगाकर खड़े रहते थे। क्योंकि स्थानीय लोग को मानना था कि, बिंद्रू के यहां कभी नकली दवा नहीं मिलेगी। साथ ही उनकी प्रतिष्ठा हिंदू-मुस्लिम, युवाओं और बुजुर्गों में एक समान थी।
बिंद्रू की शख्सियत कैसी थी, यह उनकी मौत पर जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेस के नेता उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट से समझी जा सकती है। उन्होंने लिखा 'क्या भयावह खबर है! वह बहुत दयालु आदमी थे। मुझे बताया गया है कि उग्रवाद के चरम के दौरान भी वह छोड़ कर नहीं गए और अपनी दुकान खुली रखते थे। मैं इस हत्या की कड़े शब्दों में निंदा करता हूं और उनके परिवार के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करता हूं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।'
बिंद्रू की हत्या को कश्मीरी पंडित, किस नजर से देखते हैं, इस पर टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल ने कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के प्रेसिडेंट संजय टिक्कू से खास बातचीत की है। कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अनुसार 15 मार्च 1989 से लेकर अब तक 730 कश्मीरी पंडितों की हत्या हो चुकी है।
2003 के नरसंहार के बाद पहला हमला
करीब 18 साल पहले कश्मीर के शोपिया जिले (उस वक्त पुलवामा जिला) नंदीमार्ग गांव में आतंकवादियों ने 24 कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी थी। संजय टिक्कू कहते हैं देखिए 2003 में जब कश्मीरी पंडितों का नरसंहार हुआ था। उसके बाद से बिंद्रू साहब की हत्या से पहले ऐसी कोई घटना नहीं घटी थी। यह बहुत बड़ा संदेश है। साल 2018 के बाद से अब तक जो परिस्थितियां बदली है, उसके आधार पर हमें इस हमले को देखना चाहिए। यह भी सच है कि लोग नहीं चाहते हैं कि कश्मीरी पंडितों का फिर से कश्मीर में पुर्नवास हो। दूसरी बात यह है कि यहां पर लोगों के मन में पिछले कुछ महीनों से ऐसा भय बना हुआ है कि कश्मीर में अक्टूबर में कुछ होने वाला है। भले ही वह अफवाह हो लेकिन यह डर तो बना हुआ है। मेरा मानना है कि अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद से जो स्थिति बनी है, उसके बाद की यह प्रतिक्रिया है।
1989-1990 में भी ऐसे हुआ था। उस वक्त टीका लाल टपलू जी का हत्या की गई थी। और अब बिंद्रू साहब की हत्या कर दी गई। उनका परिवार कई पीढ़ी से दवाइयों का बिजनेस करता आ रहा है। उनकी दुकान श्रीनगर के मेन बाजार लाल चौक के पास है। वह बेहद प्यार और इज्जत से बात करते थे। लोग दवायों के लिए उनके यहां घंटो लाइन लगाकर खड़े रहते थे। कश्मीरी पंडितों के लेकर एक बात प्रसिद्ध है कि वह डुप्लीकेट या एक्सपायरी दवा नहीं बेचेंगे। बिंद्रू साहब को लेकर, सबका यही भरोसा था। 90 के दशक के पहले दवाइयों का 90 फीसदी बिजनेस कश्मीरी पंडित करते थे। अभी कश्मीर में 11-12 फॉर्मेसी हैं, जिसे कश्मीरी पंडित चला रहे है।
क्या संदेश देना चाहते हैं आतंकवादी
देखिए आतंकवादी एक प्रतिष्ठित आदमी की हत्या कर, उसके जरिए खौफ फैलाना चाहते हैं। इस बार बिंद्रू साहेब की हत्या कर दहशत फैलाने की कोशिश की गई है। जब बिंद्रू साहब की हाई सिक्योरिटी जोन में हत्या हो सकती है, तो वह कल मेरी भी हत्या कर सकते हैं। बिंद्रू साहब की जहां दुकान थी, वहां करीब में ही एसएसपी ऑफिस है, जम्मू-कश्मीर लाइट इंफेट्री का ऑफिस है। श्रीनगर एयरपोर्ट रास्ते में होने से वीआईपी मूवमेंट हमेशा रहता है। ऐसे में 2 आदमी का काउंटर पर जाकर बिंद्रू साहब की हत्या करना सोचने वाली बात है। उसमें भी अहम बात यह है कि उनकी दुकान पर हमेशा भीड़ रहती है। ऐसे में हमलावरों ने केवल बिंद्रू साहब को क्यों मारा, उन्होंने बाकी खड़े लोगों को को क्यों नहीं मारा। संदेश साफ है कि आतंकवादी कश्मीरी पंडितों, हिंदुओं में खौफ फैलाना चाहते हैं। लगता है कि आने वाला समय हमारे लिए अच्छा नहीं है।
इस समय 10 हजार कश्मीर में हिंदू और कश्मीरी पंडित
इस समय कश्मीर घाटी में पुश्तैनी 800 हिंदू और कश्मीरी पंडितों के परिवार हैं। इसके अलावा बाहर से आकर यहां काम करने वाले 3565 हिंदू हैं। यूपीए सरकार के समय 2009 में दिए गए पैकेज के जरिए 4000 लोग घाटी में आए थे। कुल मिलाकर करीब 10 हजार हिंदू और कश्मीरी पंडित हैं। इसके अलावा अभी 77 हजार परिवार यानी करीब 3 लाख लोग बाहर है। यानी वह कश्मीर छोड़कर जा चुके हैं।
अब तक 730 कश्मीरी पंडितों की हत्या
15 मार्च 1989 से लेकर अब तक 730 कश्मीरी पंडितों की हत्या हो चुकी है। कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति अभी तक इतने आंकड़े जुटा पाई है। जहां तक कश्मीरी पंडित के पुर्नवास का सवाल है तो पिछले 7 साल से भाजपा की केंद्र में सरकार है और 3 साल में यूटी (केंद्र शासिस प्रदेश) के तहत सरकार है। लेकिन अभी तक किसका पुर्नवास हुआ ? अगर सही मायने में लोगों का पुर्नवास करना है तो एक साथ करना होगा। स्थानीय कश्मीरी पंडितों के 500 बच्चों को अभी तक नौकरी नहीं मिल पाई है। जबकि 1990 से पहले 60-70 फीसदी, कश्मीरी पंडित सरकारी नौकरी में थे।
हाल ही में केंद्र सरकार ने वेबपोर्टल के जरिए विस्थापित कश्मीरी पंडितों के प्रॉपर्टी के लिए डिटेल मांगनी शुरू की है। मुझे लगता है कि दहशतगर्दों को हमले के लिए इसके जरिए एक बहाना मिल गया है। क्योंकि स्थानीय लोगों को लगता है कि अगर कश्मीर छोड़कर जा चुके, कश्मीरी पंडित वापस आएंगे, तो उन्हें नुकसान उठाना पड़ेगा। देखिए मेरा मानना है कि जब तक कश्मीर का मुद्दा राजनीतिक रुप से हल नहीं हो जाता है, तब तक यहां आना उनके लिए खतरा है।