नई दिल्ली: केंद्र और राज्य सरकारों की तमाम नीतियों के बावजूद देश में किसान आत्महत्या का सिलसिला बदस्तूर जारी है। सरकारी अमले की तमाम कोशिशें आत्महत्या के मामलों में कमी लाने में नाकाम रहा है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के आखिरी समय में कई तरह के किसान आंदोलनों को बल मिला था। कुछ किसान संगठन तो दिल्ली के जंतर मंतर में भी डेरा डाले हुए थे लेकिन सरकार किसानों की स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है।
शुक्रवार को राज्यसभा में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने बताया कि साल 2018 में पूरे देश में किसान आत्महत्या के 5,763 मामले दर्ज हुए। जिसमें से 38.85 प्रतिशत मामले केवल महाराष्ट्र में दर्ज हुए हैं। किसान आत्महत्या के शर्मनाक मामले में महाराष्ट्र देश में नंबर एक पायदान पर बना हुआ है। महाराष्ट्र के बाद किसान आत्महत्या के मामले में दूसरे पायदान पर कर्नाटक(1365), तीसरे पर तेलंगाना(900), चौथे पर आंध्र प्रदेश(365), पांचवें पर मध्यप्रदेश(303) और छठे पायदान पर पंजाब(229) है।
कृषि राज्यमंत्री रुपाला ने महाराष्ट्र में किसान आत्महत्या के मामलों में कमी नहीं आने पर चिंता जाहिर करते हुए कहा, केंद्र और महाराष्ट्र सरकार द्वारा तमाम कारगर कदम उठाए जाने के बावजूद आत्महत्या के मामलों में कमी नहीं आना चिंता का विषय है। किसान कल्याण से जुड़ी महाराष्ट्र और केंद्र सरकार की योजनाएं लागू हैं। किसानों की आत्महत्या पर रोक लगाने के लिए राज्य में व्यवस्थित निगरानी तंत्र भी है। उन्होंने आगे कहा कि सर्वाधिक किसान आत्महत्या महाराष्ट्र में होना चिंता की बात है सरकार इसकी समीक्षा कर रही है और जानने की कोशिश कर रही है कि ऐसा क्यों है।
एनसीआरबी से मेल नहीं खाते सरकार के आंकड़े
जनवरी में एनसीआरबी( नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) द्वारा साल 2018 के लिए जारी आंकड़ों पर नजर डालें तो पाएंगे कि इस साल कृषि और उससे जुड़े उद्योंगों में लगे 10, 349 लोगों ने आत्महत्या की थी। ये आंकड़ा देश में हुई कुल आत्महत्या का 7.7 प्रतिशत है। साल 2016 में खेती-बाड़ी के काम से जुड़े 11, 379 लोगों ने आत्महत्या की थी। ऐसे में आत्महत्या के मामलों में कमी जरूर आई है लेकिन ये अब भी नाकाफी है।