- हमलावर पाकिस्तान से आए थे और उनके नियंत्रक पाकिस्तान में थे
- आतंकी अजमल कसाब जिंदा पकड़ा गया था
- इस हमले में 166 मासूम लोगों की मौत हो गई
2008 Mumbai attacks: 26 नवंबर 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले को आज 13 साल पूरे हो गए हैं। 4 दिनों तक चला ये आतंकी हमला 26 नवंबर को शुरू हुआ और 29 नवंबर 2008 तक चला। इसमें नौ हमलावरों सहित कुल 175 लोग मारे गए, और 300 से अधिक घायल हुए। इस हमले के दौरान कई ऐसे लोग रहे जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना लोगों की जान बचाने का काम किया। लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकियों ने मुंबई पर हमला किया था। इसी में से एक नाम है मल्लिका जागड। मल्लिका जागड 26/11 के समय 24 साल की थीं और ताज होटल में सहायक बैंक्वेट मैनेजर थीं। उस समय उन्होंने लगभग 60 मेहमानों की सुरक्षा सुनिश्चित की। अन्य कर्मचारियों के साथ मल्लिका ने बैंक्वेट के दरवाजे बंद कर दिए, लाइट बंद कर दी और मेहमानों को तब तक चुप रहने के लिए कहा, जब तक कि दमकल कर्मी उन्हें देख नहीं लेते और खिड़की से भागने में मदद नहीं करते।
हमले का नहीं था अंदाजा
रात के करीब साढ़े नौ बजे थे जब मल्लिका ने गोलियों की आवाज सुनी। वह ताज होटल के हेरिटेज विंग में 60 से अधिक मेहमानों के साथ मौजूद थीं। हालांकि पहले उसने सोचा था कि आवाज कुछ आतिशबाजी की है, फिर उसने महसूस किया कि ये गोलियों की आवाज थी। उस दिन जो हुआ बाद में उसे शेयर करते हुए मल्लिका ने कहा कि मुझे इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि वह एक छोटी बंदूक वाला अकेला आदमी था या स्वचालित मशीनगन वाला आतंकवादी था। लेकिन मुझे अभी यह अपडेट मिला कि वह होटल में वीआईपी मेहमानों को निशाना बनाने जा रहा है, जिनमें से ज्यादातर मेरे साथ बैंक्वेट हॉल में थे। मुझे तुरंत पता चल गया था कि मुझे और मेरी टीम को आखिरी सांस तक उनकी रक्षा करनी है। जल्द ही मेहमानों को उनके परिवारों के फोन आने लगे, जो यह जानकर घबरा गए कि होटल में हमला हुआ है।
सभी को देखते ही गोली मार रहे थे आतंकवादी
जब मल्लिका और उनकी टीम को पता चला कि मेहमान खतरे में हैं, तो उन्होंने सभी दरवाजे बंद कर दिए और सभी लाइटें बंद कर दीं। फिर मेहमानों को चुपचाप फर्श पर बैठने को कहा गया। हालांकि, वे सभी इस बात से अनजान थे कि आगे क्या होगा और वे सवाल पूछते रहे। मल्लिका ने उन्हें शांत करने की कोशिश की। एक साक्षात्कार में उसने याद किया कि मैं होटल के अधिकारियों को फोन करती रही लेकिन शायद ही किसी के पास हमारे सवालों का कोई स्पष्ट जवाब था। दरअसल, पहले कुछ घंटों तक हमें पता ही नहीं चला कि बंदूकधारी आतंकवादी हैं। एक समय लोग बेचैन हो रहे थे। कुछ ने हॉल से बाहर निकलने और भागने की कोशिश करने का सुझाव भी दिया। मुझे पता था कि अगर एक भी व्यक्ति भागते समय पकड़ा जाता है, तो बाकी सभी का जीवन उसी क्षण खतरे में पड़ जाएगा। इसलिए हम करीब 60-65 लोगों की भीड़ को काबू करने की पूरी कोशिश की। जल्द ही मल्लिका को पता चल गया कि आतंकवादी सभी को देखते ही गोली मार रहे हैं और किसी को नहीं बख्श रहे हैं। वे दरवाजे खटखटा रहे थे और सभी मेहमानों को गोली मार रहे थे। धमाकों की आवाज आई जिसने मेहमानों को अधीर कर दिया और फिर मल्लिका ने उन्हें पूरी स्थिति समझाई।
बैंक्वेट में कुछ धुंआ निकलने लगा और मेहमान मदद के लिए रोने-चिल्लाने लगे। मल्लिका शांत रही और फिर उसे पता चला कि सेना आ गई है। उसने बताया कि मुझे हमेशा से भारतीय सशस्त्र बलों में जबरदस्त विश्वास रहा है। इसलिए सुबह-सुबह जब मुझे पता चला कि सेना आ गई है, तो मैंने राहत की सांस ली। मुझे पक्का विश्वास था कि हम आखिरकार सुरक्षित हैं।