- 13 अखाड़े शैव, वैरागी और उदासीन संपद्राय में बंटे हुए हैं। सबसे ज्यादा 7 अखाड़े शैव संपद्राय के हैं।
- किसी भी अखाड़े में महामंडलेश्वर का पद सबसे प्रभावशाली होता है। इसको लेकर पिछले कुछ समय पहले विवाद भी सामने आए थे।
- नरेंद्र गिरी के नेतृत्व में 2019 में प्रयागराज में अर्ध कुंभ और 2021 में हरिद्वार में कुंभ का आयोजन किया गया था।
नई दिल्ली। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और प्रयागराज स्थित श्री लेटे हनुमान जी और बाघम्बरी गद्दी मठ के महंत नरेंद्र गिरी की सोमवार को उनके आवास पर संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है। उनका शव प्रयागराज के अल्लापुर स्थित बाघम्बरी गद्दी मठ के एक कमरे में पंखे से लटका हुआ मिला। शुरूआती जांच में पुलिस को यह आत्महत्या का मामला लग रहा है। वहीं नरेंद्र गिरी के शिष्य अमर गिरी पवन महाराज द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर में नरेंद्र गिरी के शिष्य आनंद गिरी पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। उनके निधन पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव कई प्रमुख राजनीतिक हस्तियों ने शोक जताया है। यही नहीं उनके अंतिम दर्शन के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद प्रयागराज पहुंचे।
जिस तरह से महेंद्र नरेंद्र गिरी की असामायिक मृत्यु के बाद उन्हें श्रद्धांजलि मिल रही है, उससे जाहिर है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के रुप में महंत नरेंद्र गिरी एक प्रमुख हस्ती थे। नरेंद्र गिरी के नेतृत्व में 2019 में प्रयागराज में अर्ध कुंभ और 2021 में हरिद्वार में कुंभ का आयोजन किया गया था। महंत नरेंद्र गिरी साल 2015-16 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष चुने गए थे।
क्या है अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद
हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि आदि गुरू शंकराचार्य ने बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी में चारधाम की स्थापना की है। यही चारधाम बाद में मठ कहलाने लगे। इन्हीं मठों को बाद में अखाड़ा कहा जाने लगा है। कुंभ और अर्ध कुंभ में इन अखाड़ों को काफी अहमियत दी जाती है। इसकी वजह से आपस में वर्चस्व को लेकर भी इनमें कई बार संघर्ष भी हो चुका है। इसे देखते हुए 1954 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का गठन किया गया। जिससे 13 अखाड़े जुड़े हुए हैं। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ही कुंभ और अर्ध कुंभ में शाही स्नान का वक्त तय करती है।
तीन संप्रदायों में बंटे हैं अखाड़े
हिंदू धर्म के ये सभी 13 अखाड़े तीन मतों में बंटे हुए हैं। पहला शैव संप्रदाय है। इसे मानने वाले लोग शिव और उनके अवतारों को मानते हैं। शैव में शाक्त, नाथ, दशनामी, नाग जैसे उप संप्रदाय हैं। और इसके तहत 7 अखाड़े आते हैं। ऐसा माना जाता है इस संप्रदाय में 5 लाख के करीब साधु-संत हैं।
वैरागी संप्रदाय भगवान विष्णु को मानते हैं। जिसमें 3 अखाड़े आते हैं। जो कि गुजरात, यूपी में स्थित हैं।
तीसरा संप्रदाय उदासीन संप्रदाय हैं। ये सिख-साधुओं का संप्रदाय है जिसकी कई शिक्षाएं सिख धर्म से भी ली गई हैं। इसके तहत 3 अखाड़े हैं जो कि उत्तराखंड,यूपी में स्थित है।
प्रमुख अखाड़े
निरंजनी अखाड़ा, अटल अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, ,जूना अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा , पंचाग्नि अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा,उदासीन नया अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और आनंद अखाड़ा है।
महामंडलेश्वर प्रभावशाली पद
किसी भी अखाड़े में महामंडलेश्वर का पद सबसे प्रभावशाली होता है। महामंडलेश्वर पद शैव संप्रदाय के संन्यासियों ने ईजाद किया था। महामंडलेश्वर ऐसे व्यक्ति को बनाया जाता है, जो साधु चरित्र और पांडित्य दोनों में उत्कृष्ट हो। महामंडलेश्वर बनने के लिए व्यक्ति को संन्यासी होना चाहिए, संस्कृत, वेद-पुराणों का ज्ञान जरूरी, कोई व्यक्ति या तो बचपन में अथवा जीवन के तीने चरण में महामंडलेश्वर बन सकता है। इसके अलावा महामंडलेश्वर बनाने के लिए परीक्षा भी पास करना जरूरी होता है।
अखाड़ों से जुड़े विवाद
उज्जैन में हुए कुंभ के दौरान अखाड़ों के महामंडलेश्वर से जुड़े मामले सामने आए थे। पहला मामला विवादों में घिरी राधे मां का था जिन्हें जूना अखाड़े ने महामंडलेश्वर नियुक्त किया था। बाद में उन पर दहेज प्रताड़ना का आरोप लगा था। दूसरा मामला सचिन दत्ता का था। जिन पर आरोप लगा कि वह गाजियाबाद बीयर बार चलाने और जमीन की खरीद-बिक्री का कारोबार करते खे।बाद में विवाद बढ़ता देख उन्हें हटा दिया गया।
इसी तरह सिंहस्थ कुंभ के दौरान त्रिकाल भवंता ने परी अखाड़े का गठन किया और खुद को उसका महामंडलेश्वर घोषित कर दिया था। हालांकि अखाड़ा परिषद ने परी अखाड़े को मान्यता नहीं दी। सिंहस्थ कुंभ के दौरान किन्नर अखाड़ा नाम से एक अखाड़ा बनाया गया। परी अखाड़े के तहत हालांकि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इस अखाड़े को भी मान्यता नहीं दी थी।
बढ़ते विवाद को देखते 2017 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद संत और महामंडलेश्वर के चयन की नई प्रक्रिया भी तय की। उसके अनुसार किसी को संत की उपाधि देने से पहले उसकी पूरी पड़ताल की जाएगी। ये भी देखा जाएगा कि संत के पास नकदी या उसके नाम पर कोई संपत्ति तो नहीं है अगर किसी के पास संपत्ति है, तो पहले उसे न्यास को दान करना होगा। इसके अलावा उसने फर्जी बाबाओं की लिस्ट भी जारी की थी।