- अधीर रंजन को जवाब देते हुए वित्त मंत्री ने कहा- मैं निर्बला नहीं सबला हूं। हमारी पार्टी में हर महिला सबला है
- अगर कोई सरकार है जो सुनती है, तो वह पीएम मोदी की सरकार है- निर्मला सीतारमण
- 11 करोड़ लोगों के घर में शौचालय बनाया गया, वे लोग जीजा हैं क्या- वित्त मंत्री
नई दिल्ली: लोकसभा में सोमवार को काफी गरमागरम बहस देखने को मिलीं। एक तरफ कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने वित्त मंत्री को 'निर्बला' कह दिया तो वहीं भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने तो जीडीपी लेकर अजीबोगरीबी बयान देते हुए कहा कि केवल जीडीपी को रामायण, बाइबिल और महाभारत मान लेना ही सत्या नहीं हैं। इस बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकार का पक्ष रखा।
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी की टिप्पणी का जवाब देते हुए वित्त मंत्री ने कहा, 'मोदी सरकार की कैबिनेट में दो महिलाएं मंत्री रह चुकी हैं। मैं निर्मला हूं और रहूंगी। मैं निर्बला नहीं सबला हूं। हमारी पार्टी में हर महिला सबला है।' इस दौरान उन्होंने कहा, 'मुझे बताया गया है कि मैं सबसे खराब वित्त मंत्री हूं, वे मेरा कार्यकाल खत्म होने का इंतजार भी नहीं कर रहे हैं। मैंने उनसे कहा कि कृपया मुझे और सुझाव दें, हम इस पर काम करेंगे। अगर कोई सरकार है जो सुनती है, तो वह पीएम मोदी की सरकार है।'
कांग्रेस पर निशाना साधते हुए वित्त मंत्री ने कहा, '11 करोड़ लोगों के घर में शौचालय बनाया गया, वे लोग जीजा हैं क्या? हमारे पार्टी में जीजा नहीं होते, सभी लोग यहां कार्यकर्ता हैं। हमारी सरकार की योजनाओं को आम आदमी के लिए चलाया गया है और इसे उन्हें लाभ मिल रहा है।'
विपक्ष को निशाने पर लेते हुए वित्त मंत्री ने कहा, 'हमें बार-बार सूट-बूट की सरकार कहा जाता है। हमें कहा गया है कि कॉर्पोरेट कर कम करने से केवल अमीर को मदद मिलती है। मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि कॉर्पोरेट कर कटौती कंपनी अधिनियम के अनुसार पंजीकृत सभी छोटे और बड़े व्यवसायों को मदद करती है।'
वित्त मंत्री ने कहा, 'मुझे संसद में कई नामों से बुलाया जाता है। अगर किसी के डीएनए में सवाल पूछना और जवाब सुनने से पहले भाग जाना है, तो यह किसी और पार्टी का है न कि हमारी पार्टी का। हर बार हम नाम उछालने के बजाय जवाब देने आते हैं।'
वित्त मंत्री ने कहा, 'हम एक ऐसी सरकार हैं जो सबकी सुनती है, चाहे वह आलोचना हो या इनपुट। जब गृह मंत्री ने एक उद्योगपति को जवाब दिया, तो यह स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ था कि हम आलोचना सुनने या लेने के लिए तैयार हैं।'