- एयर इंडिया की फ्लाइट IC 814 को पाकिस्तानी आतंकियों ने अगवा कर लिया था
- वे इसे अफगानिस्तान के कंधार ले गए थे, जहां तालिबान लड़ाकों ने विमान को घेर लिया था
- तालिबान तब भारत सरकार और पाक आतंकियों के बीच मध्यस्थ की भूमिका में था
नई दिल्ली : अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद एक नया नैरेटिव गढ़ने की कोशिश हो रही है, जिसमें बताया जा रहा है कि अफगानिस्तान को आज जिस तालिबान ने अपने नियंत्रण में लिया है, वह उस पुराने तालिबान से अलग है, जिसने 1996 से 2001 के बीच अफगानिस्तान पर शासन किया था और वहां महिलाओं और पुरुषों पर कई सख्त पाबंदियां लगाने के साथ-साथ गलतियों के लिए क्रूर सजा का भी प्रावधान किया था।
पुराना तालिबान VS नया तालिबान
अफगानिस्तान में तब तालिबान का ही राज था, जब यात्रियों से भरे एक भारतीय विमान को पाकिस्तानी आतंकियों ने अगवा कर लिया था और वे इसे अफगानिस्तान के कंधार लेकर चले गए थे। वहां तालिबान ने ही भारत सरकार और पाकिस्तानी आतंकियों के बीच मध्यस्थता की भूमिका निभाई थी, जिसमें यात्रियों की सुरक्षित वापसी के बदले पाकिस्तान के खूंखार आतंकियों की रिहाई की शर्त भारत को कबूल करनी पड़ी थी।
यह सबकुछ तकरीबन छह दिनों तक चला था, जब एक-एक पल न केवल विमान यात्रियों, बल्कि उनके घरवालों और देश की अवाम पर भी भारी पड़ रहा था, जो सांसें थामे हर अगले पल के सुरक्षित गुरजने की प्रार्थना में जुटे थे। एयर इंडिया की जिस IC 814 उड़ान संख्या को 24 दिसंबर, 1999 को अगवा किया था, उसमें तब पायलट कैप्टन देवी शरण (57) थे, जिन्होंने अपने तब के उस भयावह अनुभव को बयां करते हुए आज के तालिबान को भी परखा है।
कैप्टन ने बयां किया अनुभव
तो क्या अफगानिस्तान में तब के दौरान का तालिबान और आज के दौर के तालिबान में कोई फर्क है? कैप्टन शरण कहते हैं, 'मुझे नहीं लगता। मुझे पुराने तालिबान और आज के तालिबान में कोई फर्क नजर नहीं आता। वे आज भी उसी तरह खुली जीप में रॉकेट लॉन्चर्स के साथ काबुल की सड़कों पर घूम रहे हैं, जैसा कि उन्होंने तब किया था, जब उन्होंने कंधार में हमारे विमान को घेर रखा था।'
उन्होंने कहा, 'तब के तालिबान और आज के तालिबान में अगर कोई अंतर हो सकता है तो वह शिक्षा का संभव है, वह भी मामूली। संभव है कि आज का तालिबान थोड़ा-बहुत शिक्षित हो। जिन लोगों ने 1999 में हमारे विमानों को घेर रखा था, वे बहुत सभ्य नहीं थे।'
जख्म, जो आज भी सालता है
विमान यात्रियों की रिहाई तब सुनिश्चित हो सकी, जब केंद्र सरकार तीन पाकिस्तानी आतंकियों- मौलाना मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुश्ताक अहमद जरगर को छोड़ने पर तैयार हुई और उसे ले जाकर कंधार में तालिबान को सौंपा। अपहरणकर्ताओं ने इस दौरान एक यात्री की हत्या कर दी थी, जबकि कई अन्य को घायल कर दिया था। वह जख्म आज भी भारत को सालता है।