नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के तीन फोटो पत्रकारों को इस साल पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। एसोसिएट प्रेस (AP) के तीन फोटो पत्रकार मुख्तार खान, यासीन डार और चन्नी आनंद को पिछले साल अगस्त में राज्य से हटाए गए आर्टिकल 370 के बाद क्षेत्र में जारी बंद के दौरान काम करने के लिए ये सम्मान दिया गया है। इस पुलित्जर सम्मान को लेकर विवाद भी हुआ है। इसे लेकर कहा गया है कि इससे भारत की छवि को खराब करने की कोशिश की गई है।
अब भारतीय विश्वविद्यालयों के लगभग 16 कुलपतियों, सेवानिवृत्त रक्षा कर्मियों, पूर्व वरिष्ठ नौकरशाहों, ओलंपियन और पांच पद्म श्री पुरस्कार विजेताओं समेत 132 लोगों ने उस ओपन लेटर पर हस्ताक्षर किए हैं, जो कि पुलित्जर पुरस्कार 2020 के प्रशासक, बोर्ड और ज्यूरी को लिखा गया है। इन्होंने जम्मू-कश्मीर के फोटो जर्नलिस्ट्स को दिए गए पुलित्जर और उनके पुरस्कारों के साथ आए प्रशस्ति पत्र पर आपत्ति जताई है। लेटर में लिखा गया है कि यह आतंक और फेक न्यूज को बढ़ावा दे रहा है।
इस ओपन लेटर में खुले पत्र में हस्ताक्षर करने वालों में पद्म श्री पुरस्कार प्राप्तकर्ताडॉ. केके अग्रवाल, जवाहर कौल, कंवल सिंह, दर्शनलाल जैन और डॉ. केएन पंडिता हैं। इनके अलावा सेवानिवृत्त रक्षा कर्मियों जैसे लेफ्टिनेंट कमांडर हरिंदर सिक्का और मेजर जनरल ध्रुव कटोच हैं। चंडीगढ़ से भाजपा सांसद किरण खेर के अलावा पहलवान गीता फोगाट और योगेश्वर दत्त ने भी पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।
ओपन लेटर में कहा गया है कि ये पुरस्कार फेक न्यूज को बढ़ावा देता है, क्योंकि इसमें तथ्यों को गलत पेश किया गया है। पत्र में 'कंटेस्टेट टेरेटरी ऑफ कश्मीर' के इस्तेमाल पर आपत्ति जताई गई है। इसमें कहा गया है कि यह भारत की संप्रभुता पर हमला है और भारतीय संविधान का अपमान है। पत्र में कहा गया है कि आपने जम्मू-कश्मीर से संबंधित ऐतिहासिक तथ्यों और ज्ञान के बारे में अपनी खराब जानकारी को दिखाते हुए खुद को उजागर किया। जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इसे लेकर कोई विवाद नहीं है।
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खुले खत में लिखा गया, 'पुलित्जर पुरस्कार का उद्देश्य फ्री जर्नलिज्म को प्रोत्साहित करना है। विडंबना यह है कि डार यासीन और मुख्तार खान जैसे फोटोग्राफरों को पुरस्कार देकर आप झूठ की पत्रकारिता और फोटोग्राफी को बढ़ावा दे रहे हैं, तथ्यों और अलगाववाद की गलत व्याख्या कर रहे हैं। हमने यहां चन्नी आनंद का नाम शामिल नहीं किया है क्योंकि उनकी तस्वीर भारत को बदनाम नहीं करती हैं और अन्य दो फोटो जर्नलिस्टों के विपरीत ये 'भारतीय नियंत्रित कश्मीर' शब्द का उपयोग नहीं करते हैं।'