- बीते 5 वर्षों से हिमालय की पहाड़ियों को जन्नत में तब्दील करने का अभियान चला रहे हैं प्रदीप सांगवान
- प्रदीप सांगवान ने 2016 किया था हीलिंग हिमालयाज का गठन
- हिमालय की वादियों से 700 टन से ज्यादा कचरे को कर चुके हैं साफ
नई दिल्ली: कुछ कर गुजर जाने का जुनून लोगों को इतना सफल बना देता है कि बड़े से बड़े लोग भी उनका अभिवादन करने के लिए नतमस्तक रहते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ है हरियाणा के रहने वाले प्रदीप सांगवान के साथ, जिनका जिक्र खुद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में किया है। देश को संबोधित करते समय नरेंद्र मोदी ने एक ऐसे शख्स से पूरे भारत को रूबरू कराया है जो अपने काम से कई बुलंदियों को छू रहे हैं। तो कौन है प्रदीप सांगवान चलिए जानते हैं?
पहाड़ों में रमता था है सांगवान का दिल
प्रदीप सांगवान हरियाणा के एक छोटे से गांव चरखी दादरी के रहने वाले हैं जिनका मन बचपन से ही पहाड़ों में रमता था। सेना में कार्यरत पिता प्रदीप को सेना की वर्दी पहने हुए देखना चाहते थे लेकिन प्रदीप हिमालय की वादियों के ही रंग में खुद को रंगना चाहते थे। अपनी शुरुआती पढ़ाई और स्नातक की डिग्री लेकर वह हिमाचल प्रदेश के मनाली में रहने चले गए। परिवार में उनके इस निर्णय से नाराजगी तो थी लेकिन प्रदीप के मन में पहाड़ों के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा था। अपने इस राह में प्रदीप को केई दिक्कतों का सामना करना पड़ा था लेकिन बाद में वह पहाड़ों में जीवन व्यतीत करने के तौर तरीके को सीख गए थे। मनाली में रहते-रहते पर्यटन व्यवसाय के बारे में वह हर एक बारीकियां सीख चुके थे।
इस तरह की घटनाओं ने किया प्रभावित
प्रदीप सांगवान ने देखा कि लोग पहाड़ों की सुंदरता को अपने कैमरे में कैप्चर तो कर लेते हैं लेकिन जाते-जाते पहाड़ों को अपने कचरों से भर देते थे। पर्यटक पहाड़ और उसकी शीतलता का लुफ्त तो उठाते हैं लेकिन लौटते वक्त पहाड़ों की सुंदरता को धूमिल कर देते हैं। प्रदीप सांगवान को कहीं ना कहीं इस चीजों से बहुत आहत पहुंची और उन्होंने अकेले ही कचरा साफ करने का बीड़ा उठा लिया।
अपने साथ उठा लाते हैं कूड़ा
वह पर्यटकों के साथ मिलकर ट्रैकिंग पर जाते थे और वहां जमा हुए कूड़े-करकट को इकट्ठा करके अपने साथ ले आते थे। धीरे-धीरे करके स्थानीय लोगों ने प्रदीप का साथ देना शुरू कर दिया जिसके बाद अन्य पर्यटकों ने भी प्रदीप का हाथ बढ़ा कर उनके इस कार्य में अपना योगदान दिया। वह अपने मंजिल की तरफ धीरे-धीरे पहुंच ही रहे थे तभी कुछ लोगों ने उन्हें रीसाइक्लिंग संयंत्रों के बारे में बताया। बहुत से लोगों ने प्रदीप सांगवान के इस काम की सराहना की वहीं कुछ लोग ऐसे थे जो उन्हें हतोत्साहित भी करते थे। प्रदीप ने उन सब की बातों पर ध्यान नहीं दिया और वह अपने काम में निरंतर वृद्धि करने लगे। इस राह में कई लोग प्रदीप से जुड़े और वर्ष 2016 में प्रदीप ने द हीलिंग हिमालय फाउंडेशन नाम के एक संस्थान का गठन किया। सोशल मीडिया के सहारे उन्होंने अपने फाउंडेशन का प्रचार किया और कई स्वयंसेवक उनके इस कार्य से प्रभावित होकर उनका साथ देने लगे।
निस्वार्थ भाव से दे रहे हैं योगदान
द हीलिंग हिमालय फाउंडेशन में आज कई स्वयंसेवी निस्वार्थ भाव से अपना योगदान दे रहे हैं और बीते 5 वर्षों में प्रदीप सांगवान ने अपनी टीम के साथ मिलकर कई पहाड़ी इलाकों में 1 हजार से ज्यादा कैंपेन आयोजित किया है। गर्व की बात यह है कि, प्रदीप सांगवान और उनकी टीम ने 10 हजार किलोमीटर ट्रैक करके 700 टन नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा हिमालय की वादियों से इकट्ठा किया है और उसे रीसाइक्लिंग संयंत्रों तक पहुंचाया है। एकत्रित किए हुए कचरों से जो बिजली बनाई जाती है वह गांव-गांव तक पहुंचाई जा रही है। इस पहल ने ना ही सिर्फ हिमालय का कायाकल्प किया है बल्कि कई गांवों को रोशन भी किया है। निस्वार्थ भाव से काम करने वाले प्रदीप सांगवान और उनकी टीम को सैल्यूट तो बनता है।