- पीएम मोदी ने कहा कि मैं इस पुरस्कार को सभी देशवासियों के लिए समर्पित करता हूं।
- पीएम ने कहा कि लता जी ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की मधुर प्रस्तुति की तरह थीं।
- पीएम मोदी ने कहा कि संगीत से आप में वीररस भरता है, संगीत मातृत्व और ममता की अनुभूति करवा सकता है।
मुंबई: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुंबई में पहले लता दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार में शामिल हुए। वहां पीएम मोदी को पहला लता दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस मौके पर पीएम मोदी ने कहा कि मैं संगीत जैसे गहन विषय का जानकार तो नहीं हूं, लेकिन सांस्कृतिक बोध से मैं ये महसूस करता हूं कि संगीत एक साधना भी है, और भावना भी। जो अव्यक्त को व्यक्त कर दे- वो शब्द है। जो व्यक्त में ऊर्जा का, चेतना का संचार कर दे- वो नाद है। और जो चेतन में भाव और भावना भर दे, उसे सृष्टि और संवेदना की पराकाष्ठा तक पहुंचा दे- वो संगीत है।
पीएम मोदी ने कहा कि संगीत से आपमें वीररस भरता है। संगीत मातृत्व और ममता की अनुभूति करवा सकता है। संगीत आपको राष्ट्रभक्ति और कर्तव्यबोध के शिखर पर पहुंचा सकता है। हम सब सौभाग्यशाली हैं कि हमने संगीत की इस सामर्थ्य को, इस शक्ति को लता दीदी के रूप में साक्षात् देखा है। मेरे लिए लता दीदी सुर साम्राज्ञी के साथ साथ मेरी बड़ी बहन भी थीं। पीढ़ियों को प्रेम और भावना का उपहार देने वाली लता दीदी से अपनी बहन जैसा प्रेम मिला हो, इससे बड़ा सौभाग्य और क्या होगा। पुरस्कार जब लता दीदी जैसी बड़ी बहन के नाम से हो, तो मेरे लिए उनके अपनत्व और प्यार का ही एक प्रतीक है। इसलिए, मन करना मेरे लिए मुमकिन ही नहीं है। मैं इस पुरस्कार को सभी देशवासियों के लिए समर्पित करता हूं।
पीएम ने कहा कि वीर सावरकर ने ये गीत अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देते हुए लिखा था। ये साह, ये देशभक्ति, दीनानाथ जी ने अपने परिवार को विरासत में दी थी। संगीत के साथ साथ राष्ट्रभक्ति की जो चेतना लता दीदी के भीतर थी, उसका स्रोत उनके पिताजी ही थे। आजादी की लड़ाई के दौरान शिमला में ब्रिटिश वायसराय के कार्यक्रम में दीनानाथ जी ने वीर सावरकर का लिखा गीत गया था। उसकी थीम पर प्रदर्शन किया था।
पीएम ने कहा कि लता जी ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की मधुर प्रस्तुति की तरह थीं। आप देखिए, उन्होंने देश की 30 से ज्यादा भाषाओं में हजारों गीत गाये। हिन्दी हो मराठी, संस्कृत हो या दूसरी भारतीय भाषाएं, लताजी का स्वर वैसा ही हर भाषा में घुला हुआ है। संस्कृति से लेकर आस्था तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक, लता जी के सुरों के पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का काम किया। दुनिया में भी, वो हमारे भारत की सांस्कृतिक राजदूत थीं।