नई दिल्ली: चुनावी रणनीतिकार और जनता दल (यूनाइटेड) के नेता प्रशांत किशोर ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) पर 'चुप्पी' पर सवाल उठाया है। पीके ने कहा, 'यदि कांग्रेस अध्यक्ष एनआरसी पर एक बयान देतीं हैं, तो यह स्पष्टता लाएगा। धरने, प्रदर्शनों में भाग लेना, यह सब वैध और मान्य है, लेकिन इस मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष की ओर से एक भी आधिकारिक बयान क्यों नहीं आया है, यह मेरी समझ से परे है।'
प्रशांत किशोर ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष या कांग्रेस कार्य समिति (CWC) को कांग्रेस शासित राज्यों के सभी मुख्यमंत्रियों को यह घोषित करने के लिए कहना चाहिए कि वे अपने राज्यों में एनआरसी लागू नहीं होने देंगे।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के एक मुख्यमंत्री समेत 10 से अधिक मुख्यमंत्रियों ने कहा है कि वे अपने राज्यों में एनआरसी लागू करने की अनुमति नहीं देंगे। नीतीश कुमार, नवीन बाबू, ममता दीदी और जगन मोहन रेड्डी मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ अपनी पार्टियों के प्रमुख भी हैं। कांग्रेस के मामले में मुख्यमंत्री अंतिम निर्णय लेने वाले नहीं हैं, और CWC निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है।
पीके ने आगे कहा, 'मेरा सवाल और चिंता का विषय यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष ने आधिकारिक रूप से यह क्यों नहीं कहा कि कांग्रेस शासित राज्यों में एनआरसी की अनुमति नहीं होगी?'
जेडीयू उपाध्यक्ष ने ये भी कहा कि यूपीए सरकार ने कानून में संशोधन नहीं किया, जब इसका अवसर था। सीएए 2003 में वापस बनाया गया था। 2004 से 2014 तक कांग्रेस सरकार सत्ता में थी। यदि कानून इतना असंवैधानिक था, जो कि एक तथ्य है, तो कांग्रेस को इसमें संशोधन करने का अवसर मिला था।
किशोर ने गृह मंत्री अमित शाह के उस स्पष्टीकरण से असहमति जताई जिसमें उन्होंने कहा कि एनपीआर और एनआरसी के बीच कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा, 'किसी को भी एनपीए और एनआरसी के बीच लिंक साबित करने की जरूरत नहीं है। दस्तावेज खुद बोलते हैं कि एनपीआर एनआरसी के लिए पहला कदम है। यह एक व्यक्ति का मामला नहीं है। यह राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा था। एनआरसी और एनपीआर की पूरी बहस 2003 के नागरिकता (संशोधन) विधेयक से जुड़ी है, जिसके दौरान पहली बार यह परिभाषित किया गया था कि एनपीआर के बाद, यदि सरकार चाहती है, तो वे एनआरसी कर सकते हैं।'