- कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों का विरोध जारी
- 6 फरवरी को किसानों ने देशव्यापी चक्काजाम का किया है फैसला
- किसानों के विरोध के मद्देनजर दिल्ली सीमा पर सुरक्षी की गई कड़ी
नई दिल्ली। कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 70 दिन से किसानों का आंदोलन जारी है। इन 70 दिनों में 26 जनवरी का दिन इसलिए खास है क्योंकि उस दिन दिल्ली के आईटीओ पर हिंसा हुई और लालकिले को घंटों तक बंधक बनाए रखा गया। दिल्ली पुलिस का कहना है कि किसानों ने ट्रैक्टर परेड के संबंध में जो वादे किये थे उसे निभाने में नाकाम रहे। किसानों का कहना है कि वो उत्पात के लिए जिम्मेदार नहीं है। लेकिन इन सबके बीच जो जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक प्रतिबंधित संगठन CPI(Maoist) ने अपने फ्रंटल संगठनों से किसानों के आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की अपील की थी।
सनसनीखेज जानकारी
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक सीपीआई माओवादी की तरफ से कई दफा आधिकारिक बयान जारी किए गए थे। इस संगठन ने नए कृषि कानूनों को ब्रिटिश काल के रौलेट एक्ट की तरह बताया था। 30 जनवरी को इस संगठन के केंद्रीय प्रवक्ता ने बयान जारी किया जिसमें इस बात का जिक्र था कि किस तरह से केंद्र सरकार कृषि कानूनों और किसानों के आंदोलन पर देर करने की रणनीति पर काम कर रही है। यही नहीं सरकार की तरफ से किसान संगठनों में फूट डालने की कोशिश भी हो रही है। महिला विंग से जुड़ी रनिता हिमाछी ने भी इसी तरह का स्टेटमेंट जारी किया था।
पिछले 70 दिन से किसानों का आंदोलन जारी
हालांकि किसान आंदोलन में प्रतिबंधित संगठन सीपीआई माओवादी की तरफ से जो बयान आए हैं उसकी प्रामणिकता की जांच जारी है। लेकिन जिस तरह से अल्ट्रा लेफ्ट संगठनों के इस आंदोलन से जुड़ने की खबर है उसके बाद सुरक्षा और खुफिया एजेंसी दोनों सतर्क हो गई हैं। इसके लिए दोनों एजेंसियां पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी और रिवाल्युशनरी पीपल्स कमेटी के क्रियाकलापों पर नजर रख रही हैं। बता दें कि किसान संगठनों का कहना है कि उनके आंदोलन में कोई और तत्व शामिल नहीं हैं। लेकिन कुछ लोग आंदोलन को अलग अलग रंग देकर बदनाम करने की साजिश कर रहे हैं जिसकी जांच होनी चाहिए।