- राफेल लड़ाकू विमानों की डील का मसला एक बार फिर चर्चा में है
- फ्रांस में इसकी जांच के लिए विशेष जज की नियुक्ति की रिपोर्ट है
- इसके बाद भारत में भी इस मसले पर सियासी पारा उफान पर है
नई दिल्ली : राफेल लड़ाकू विमानों की कई खेप अब तक भारत पहुंच चुकी है और अप्रैल 2022 तक सभी राफेल लड़ाकू विमान भारत में होंगे। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन में तनाव के बीच इन इलाकों में राफेल फाइटर जेट का दमखम भी हम देख चुके हैं, जिसने चीन और पाकिस्तान के लिए नई टेंशन पैदा की है। इस बीच राफेल डील का मसला एक बार फिर सुर्खियों में है।
यहां यह भी गौर करने वाली बात है कि 2019 के आम चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया था। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है, लेकिन कोर्ट के फैसले और चुनाव के नतीजों के बाद यह ठंडे बस्ते में चला गया। हालांकि राफेल डील अब एक बार फिर चर्चा में है। कांग्रेस इसे लेकर आक्रामक तेवर अपनाए हुए है तो बीजेपी भी पलटवार करने में कोई मौका नहीं चूक रही है।
फ्रांस के किस कदम से भारत में चढ़ा सियासी पारा?
आखिर वह कौन सी बात है, जिसकी वजह से यह मसला एक बार फिर फ्रांस के साथ-साथ भारत की राजनीति में भी सुर्खियां बटोर रहा है। दअरसल, फ्रांसीसी मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, फ्रांस के राष्ट्रीय वित्तीय अभियोजक कार्यालय (PNF) ने भारत के साथ हुई राफेल डील की 'आपराधिक जांच' करने को लेकर एक जज की नियुक्ति की है, जिसके बाद भारत में सियासी पारा उफान पर है और कांग्रेस-बीजेपी के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है।
कांग्रेस ने 'राफेल डील का सच बाहर आएगा' कहकर बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार पर निशाना साधा है तो बीजेपी ने कांग्रेस के आरोपों पर जवाबी हमला करते हुए उस पर झूठ और भ्रम फैलाने की कोशिश का आरोप लगाया है। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, रणदीप सुरजेवाला सहित कई कांग्रेस नेताओं के ट्वीट बताते हैं कि वे एक बार फिर इस मुद्दे को उठाने और बीजेपी पर निशाना साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
पीएनएफ ने कभी किया था जांच से इनकार
यहां गौरतलब है कि फ्रांस और भारत के बीच 36 राफेल फाइटर जेट को लेकर साल 2016 में डील हुई थी। इसके तहत राफेल फाइटर जेट फ्रांस की विमान निर्माता कंपनी दासो एविएशन से खरीदे जाने थे। लेकिन यह डील अरसे से विवादों में रही और इसमें भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे। भारत के साथ-साथ फ्रांस में भी इसकी जांच का मसला उठता रहा है।
फ्रांस के राष्ट्रीय वित्तीय अभियोजक कार्यालय 'पीएनएफ' ने शुरुआत में हालांकि इस डील की जांच से इनकार किया था, लेकिन फ्रांस की एक खोजी वेबसाइट 'मीडियापार्ट' की पड़ताल के बाद आखिरकार पीएनएफ ने इस डील में 'आपराधिक जांच' के लिए जज की नियुक्ति की है। इसी साल अप्रैल में आई रिपोर्ट में वेबसाइट ने दावा किया था कि राफेल डील में बिचौलियों को करोड़ों रुपये का गुप्त कमीशन दिया गया था।
दासो एविएशन ने किया था आरोपों से इनकार
दासो एविएशन ने हालांकि 'मीडियापार्ट' की रिपोर्ट में किए गए दावों से इनकार किया था और कहा था कि उसकी ऑडिट में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई है। साथ ही उसने यह भी कहा कि यह डील तय मानकों के अनुसार ही हुआ था और इसमें अनुबंध की शर्तों का कोई उल्लंघन नहीं किया गया। वेबसाइट ने पीएनएफ पर डील की खामियों को छिपाने का आरोप भी लगाया था।
क्या है राफेल डील और इससे जुड़ा विवाद?
यहां उल्लेखनीय है कि भारत ने राफेल फाइटर जेट को लेकर साल 2012 में ही फ्रांस की कंपनी दासो एविएशन के साथ डील की थी, जिसके तहत 126 लड़ाकू विमानों की आपूर्ति भारत को की जानी थी। इसके लिए दासो ने भारत में अपने पार्टनर के तौर पर हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को चुना था। 2015 तक यह डील लगभग फाइनल मानी जा रही थी। लेकिन फिर इसमें बदलाव आ गया।
दासो एविएशन के साथ वर्ष 2016 में 36 लड़ाकू विमानों को लेकर डील फाइनल की गई और भारतीय पार्टनर के तौर पर फ्रांसीसी कंपनी ने रिलायंस ग्रुप को चुना। भारत में विपक्षी पार्टियों ने इसे बड़ा मसला बनाया और चुनाव के दौरान इसे खूब भुनाने की कोशिश की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह मसला खटाई में पड़ गया, जिसने डील की प्रक्रिया में गड़बड़ी की सभी दलीलों को नवंबर 2019 में खारिज कर दिया।