- रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि कृषि कानूनों पर पीएम मोदी की नीयत पर शक का औचित्य नहीं
- किसानों को सलाह देते हुे राजनाथ सिंह बोले उन्हें सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के सामने जाना चाहिए
- केंद्र सरकार की तरफ से कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाने के लिए 18 महीने का प्रस्ताव दिया गया है।
नई दिल्ली। नए कृषि कानूनों पर किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच शुक्रवार को हुई बातचीत में नतीजा नहीं निकला। किसान संगठनों ने कहा कि जिस तरह से कृषि मंत्री ने सिर्फ 15 मिनट का समय दिया वो अपमान जनक था। इन सबके बीच कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार की तरफ से उत्तम प्रस्ताव दिया गया और अब किसानों को ही विचार करना है। इन सबके बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने Times Now की ग्रुप एडिटर नविका कुमार से कई मुद्दों पर खास बातचीत की जिसमें किसान आंदोलन का विषय भी था। एक सवाल के जवाब में रक्षा मंत्री ने कहा कि कृषि कानूनों के मुद्दे पर पीएम नरेंद्र मोदी नीयत पर शक करने का कोई औचित्य नहीं है।
संसद में बहस के बाद कानून हुआ था पारित
क्या सरकार संसद में विधेयकों को पारित करने की हकदार नहीं है? संसद में बहस हुई। सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं? ये बिल निश्चित रूप से किसानों के पक्ष में हैं।हमने किसानों के साथ 10 दौर की बातचीत की है। हमने हमेशा कहा है कि हम 3 कृषि कानूनों पर एक खंड-वार चर्चा के लिए तैयार हैं।
कई किसान यूनियम कानून के समर्थन में
कई किसान यूनियनें हैं जो कृषि कानूनों का समर्थन कर रही हैं। मेरा मानना है कि कानूनों पर चर्चा की आवश्यकता है।सरकार ने किसानों को समय दिया है, जिसके दौरान कानूनों को रखा जाएगा और बातचीत चलेगी। हमने किसानों के दृष्टिकोण को समझने की लगातार कोशिश की है।
समिति के पास किसानों को जाने की सलाह
प्रदर्शनकारी किसानों को मेरी सलाह है कि उन्हें SC द्वारा गठित समिति के समक्ष जाना चाहिए।हमने किसानों को यह प्रस्ताव दिया है कि हम 18 महीने के लिए कृषि कानूनों पर रोक लगाने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि किसान संगठनों को अड़ियल रवैया नहीं अपनाना चाहिए। किसानों का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जिसे कानूनों से ऐतराज नहीं है। वैसी सूरत में सरकार को सबके हित को सोचना होगा। आप हर संवैधानिक व्यवस्था को शक के नजरिए से नहीं देख सकते हैं।
शुक्रवार को जब किसानों और सरकार के बीच बातचीत होने वाली थी उससे एक दिन पहले जिस तरह से किसान संगठनों ने केंद्र सरकार के प्रस्ताव को सिरे से ठुकरा दिया उसके बाद से ही वार्ता का अंजाम क्या होगा उसके बारे में तस्वीर साफ हो चुकी थी। केंद्र सरकार के व्यवहार के बारे में किसान संगठनों से जब कहा कि बातचीत सिर्फ 15 मिनट हुई और कृषि मंत्री साढ़े तीन घंटे तक इंतजार कराते रह गए तो अंदाजा लगाना आसान हो गया कि वार्ता किस रास्ते पर जा रही है।