- राज्य सभा और एमएलसी चुनाव में भाजपा की चौंकाने वाली जीत में देवेंद्र फडणवीस की अहम भूमिका रही है।
- अगर उद्धव सरकार गिरती है तो शरद पवार के लिए बड़ा झटका होगा।
- महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार का पिछले 50 साल से दबदबा बना हुआ है।
Devendra Fadnavis Politics:महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra Political Crisis) में इस समय भूचाल आया हुआ है, शिंदे और उसके बागी विधायकों ने ठाकरे परिवार के पैरों के नीचे से जमीन खिसका दी है। हालत यह है कि उद्धव ठाकरे के हाथ से पूरी शिव सेना एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के हाथ में पहुंचने की संभावनाएं बन रही है। इस सियासी उलटफेर में एक चेहरा ऐसा है जो महाराष्ट्र की राजनीति में नए क्षत्रप के रूप में उभर रहा है। सूत्रों के अनुसार एकनाथ शिंदे की बगावत को हवा देने और उद्धव के सियासी जमीन हिला देने के सूत्रधार भाजपा नेता और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) हैं। जिनकी टीम ने बेहद शांति से शिव सेना के असंतुष्ट नेताओं को हवा दी और अब वह बागियों को एकजुट बनाए रखने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
देवेंद्र फडणवीस का यह दांव, अभी तक महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य शरद पवार (Sharad Pawar) पर भारी पड़ता दिख रहा है। महाविकास अघाड़ी (MVA) सरकार का रिमोट कंट्रोल पवार के पास ही रहा है, और वह राज्य की राजनीति में ऐसे क्षत्रप के रूप में जाने जाते रहे हैं, जिन्होंने बड़ा उलटफेर करते हुए 37 साल की उम्र में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पद हासिल कर लिया था। और पिछले 50 साल से राज्य की राजनीति उनके इर्द-गिर्द ही घूमती रही है।
फडणवीस ने सत्ता संभालते ही तोड़ा था मराठों का वर्चस्व
महाराष्ट्र की राजनीति में शुरू से ही मराठों का वर्चस्व रहा है। लेकिन 2014 में जब भाजपा और शिव सेना गठबंधन की सरकार बनी तो पार्टी ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया, तो उनका चयन इस बात का संकेत था, कि महाराष्ट्र की राजनीति बदलने वाली है। पहले तो वह ब्राह्मण समाज से मुख्यमंत्री बने दूसरी अहम बात यह था कि वह विदर्भ क्षेत्र से आते थे। और अगले 5 साल बाद जब 2019 में चुनाव हुए तो उस वक्त महाराष्ट्र के ऐसे पहले मुख्यमंत्री बने , जिसने पिछले 40 साल में अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया था।
लेकिन 2019 में जब भाजपा-शिव सेना गठबंधन की सरकार बनीं तो मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर दोनों दलों में खींचतान शुरू हुई। और उसके बाद उद्धव ठाकरे ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया। इस बीच रातों-रात एनसीपी नेता और शरद पवार के भतीजे अजीत पवार के साथ मिलकर देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। हालांकि फडणवीस का यह दांव, शरद पवार ने फेल कर दिया और 4-5 दिनों बाद ही फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ा।
बदली रणनीति
सूत्रों के अनुसार इसी के बाद से देवेंद्र फडणवीस ने अपनी रणनीति बदल दी, अब वह अपनी उस छवि को मजबूत नहीं होने देना चाहते थे , जो कि अजीत पवार के साथ आनन-फानन में शपथ लेने की बनी थी। वह यही नहीं चाहते थे कि जनता के बीच ऐसा संदेश जाए कि फडणवीस सत्ता के लिए भाग रहे हैं। इसलिए उन्होंने एकनाथ शिंदे से अपने मजबूत रिश्तों और उद्धव ठाकरे से शिंदे की नाराजगी को हवा देनी शुरू की। इस बीच ठाकरे का बीमारी और पार्टी के नेताओं से कम मिलने का फायदा शिंदे ने उठाया। शिंदे ने नाराज विधायकों का भरोसा जीत लिया। इसके अलावा पिछले ढाई साल में फडणवीस और एनसीपी नेता नवाब मलिक की खींचतान भी काफी चर्चा भी रही है।
इसके बाद राज्य सभा और MLC चुनाव में जिस तरह फडणवीस ने शिव सेना में फूट डालवाई, उससे भी साफ हो गया है कि इस बार वह अजीत पवार के समय हुई गलती से सबक सीख चुके हैं। और इसके बाद सूरत और गुवाहाटी में शिंदे और उनके गुट के नेताओं को मैनेज करने में भी देवेंद्र फडणवीस के करीबी डॉ संजय कुटे , मोहित कंबोज , गिरीश महाजन जैसे नेताओं का अहम हाथ रहा है। और अब जैसे-जैसे यह लगने लगा है कि उद्धव ठाकरे सरकार कभी भी गिर सकती है, तो भाजपा और उनके समर्थक दलों के नेताओं के तरफ से एक बार फिर फडणवीस के जल्द मुख्यमंत्री बनने के बयान आने लगे हैं।
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शरद पवार के इर्द-गिर्द घूमती रही है राजनीति
अगर देवेंद्र फडणवीस दोबारा मुख्यमंत्री बन जाते हैं, तो यह शरद पवार के लिए बड़ा झटका साबित होगा। क्योंकि पिछले 50 साल का रिकॉर्ड देखा जाय तो शरद पवार राज्य की राजनीति की धुरी रहे हैं। चाहे 1978 में कांग्रेस के एक धड़े को तोड़कर सबसे कम उम्र (37 साल) में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने का सफल दांव रहा हो या फिर सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्धे पर एनसीपी पार्टी बनाने का मामला हो। पवार के अधिकतम दांव राजनीति में सफल रहे हैं। उनकी राजनीति का ही नतीजा था कि एनसीपी और कांग्रेस 15 साल तक महाराष्ट्र में सरकार भी चला चुके हैं। यही नहीं महाविकास अघाड़ी सरकार को मूर्त रूप देने और शिव सेना-कांग्रेस को एक साथ लाने में भी पवार ने ही अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन एकनाथ शिंदे की मजबूत बगावत से अब उनकी महाराष्ट्र का राजनीति में उनकी पकड़ पर भी सवाल उठने लगे है। वहीं दूसरी तरह देवेंद्र फडणवीस का उभार नए सियासी संकेत भी दे रहा है।