नई दिल्ली : किसान आंदोलन के बीच लाल किला चर्चा है। कृषि कानूनों के खिलाफ बीते दो महीनों से भी अधिक समय से धरना दे रहे किसानों ने 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च का आह्वान किया था, जब कुछ अराजक तत्व लाल किला जा पहुंचे तो उन्होंने वहां 'निशान साहिब' का झंडा भी फहराया था। सुरक्षा कारणों से लाल किला को अब 31 जनवरी तक पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में स्थित यह ऐतिहासिक इमारत सदियों से सत्ता व ताकत का केंद्र रही है।
लाल किले का निर्माण 1649 में तत्कालीन मुगल शासक शाहजहां ने करवाया था। यह लाल बलुआ पत्थर से बना है और इसलिए इस किले को लाल किला कहा गया। बताया जाता है कि इसमें जो लाल पत्थर लगाया गया, उसे यमुना नदी के रास्ते फतेहपुर सीकरी के पास लाल पत्थर की खान से दिल्ली लाया गया था। इसे मुगलिया सल्तनत के स्वर्णिम दिनों की यादगार के रूप में गिना जाता है। इसमें इस्लामिक, फारसी और हिंदू स्थापत्य कला की झलक मिलती है, जिसकी तर्ज पर आगे चलकर राजस्थान, आगरा और दिल्ली में कई अन्य इमारतों का निर्माण भी करवाया गया, जिनमें बाग-बगीचे भी देखने को मिलते हैं।
ऐसा है लाल किला
यहां दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास आज भी पर्यटकों के लिए खास आकर्षण हैं तो इसकी ऊंची दीवारें और हरे-भरे बाग-बगीचे आंखों को सुकून देते हैं। दीवान-ए-आम लाल किले का वह हिस्सा है, जहां बादशाह आम लोगों से मिलकर उनके दुख-दर्द सुना करते थे, जबकि दीवान-ए-खास में वह अपने मंत्रियों और अधिकारियों से मिलकर राजकाज के मुद्दों पर चर्चा व मशविरे किया करते थे। बादशाह हर सुबह यहां झरोखा-ए-दर्शन भी दिया करते थे, जिसमें वह अपनी सलामती के बारे में अवाम को बताते थे। बहुत से लोग उनके दर्शन के बाद ही अपना काम शुरू करते थे।
शाहजहां की मृत्यु के बाद दिल्ली की सल्तनत पर औरंगजेब का कब्जा था। लेकिन उसकी मृत्यु के बाद मुगलिया सल्तनत का पतन होना शुरू हो गया। इसके बाद ईरान के नादिर शाह से लेकर अफगान और अंग्रेजों ने भी दिल्ली पर हमला किया और यहां से बेशकीमती हीरे-जवाहरात और अन्य चीजें लूट ले गए। इस दौरान मुगलिया सल्तनत में सत्ता के लिए संघर्ष चरम पर था।
कई घटनाओं का गवाह रही ये ऐतिहासिक इमारत
भारत में दौर जब अंग्रेजी शासन का आया तो एक बार फिर सत्ता का केंद्र बना। 1857 की क्रांति भी इस ऐतिहासिक इमारत ने देखी। मंगल पांडेय ने बंगाल की बैरकपुर छावनी में ब्रिटिश राज के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका, जो उस वक्त एक ब्रिटिश सैनिक थे। ब्रिटिश शासन के खिलाफ आक्रोश की यह लहर मेरठ होते हुए दिल्ली पहुंच गई थी। हालांकि तब ब्रिटिश राज ने उस क्रांति को कुचल दिया था और एक बार फिर लाल किले पर कब्जा कर लिया था।
इस तरह 17वीं सदी में बनी इस इमारत ने मुगलिया काल का स्वर्णिम युग देखा तो उसकी सल्तनत को डूबते हुए भी देखा। इस इमारत ने कई हमले झेले तो आजादी के आंदोलन में 1857 की क्रांति की गवाह भी रही। इस लाल किले के लिए कई राजनीतिक षड्यंत्र रचे गए तो इसकी स्थापत्य कला आज भी आकर्षण का एक प्रमुख केंद्र है। ब्रिटिश शासन से भारत की आजादी के बाद भी यह सत्ता का केंद्र बना हुआ है। स्वतंत्रता दिवस पर हर साल इसी लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री राष्ट्रध्वज फहराते हैं और राष्ट्र की जनता को संबोधित भी करते हैं।