मेंगलुरु : प्रख्यात संस्कृत विद्वान विद्यावाचस्पति बन्ननजे गोविंदाचार्य का 85 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वह उन्होंने उडुपी के अम्बल्पदी स्थित अपने घर में अंतिम सांस ली। 'मधवा' विचारधारा के प्रचारक गोविंदाचार्य वेद भाष्य, उपनिषद भाष्य, महाभारत, रामायाण और पुराणों के ज्ञाता थे। वर्ष 2009 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संस्कृत विद्वान विद्यावाचस्पति गोविंदाचार्य के निधन पर शोक जताते हुए साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को याद किया और उनके परिजनों के प्रति संवेदना जताई। पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा, 'विद्यावाचस्पति बन्ननजे गोविंदाचार्य जी को साहित्य में उनके महान योगदान के लिए याद किया जाएगा। संस्कृत और कन्नड़ के प्रति उनका जुनून सराहनीय था। उनकी रचनाएं आने वाली पीढ़ियों को प्रभावित करती रहेंगी। उनके निधन से पीड़ा हुई। उनके परिवार के प्रति संवेदना। ओम शांति।'
करीब 150 पुस्तकें लिखीं
विख्यात संस्कृत विद्वान के निधन की वजह उम्र संबंधी जटिलताएं बताई गई हैं। रविवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। गोविंदाचार्य ने करीब 150 पुस्तकें लिखीं और संस्कृत से कन्नड़ में भी बहुत सी अध्ययन सामग्री का अनुवाद किया। उन्होंने कई ऐतिहासिक किताबों का भी कन्नड़ में अनुवाद किया। इनमें से कुछ बाण भट्ट के उपन्यास 'बाण भट्टना कादंबरी', कालीदास की 'शकुंतला' और शूद्रका की 'मृच्छकटिका' हैं।
गोविंदाचार्य ने कई ऐतिहासिक उपन्यासों का भी कन्नड़ में अनुवाद किया था। उन्होंने हिंदू ग्रंथ उपनिषद के अध्यायों पर भी नोट लिखे। वह माधव दर्शन पर महान प्रतिपादकों में से एक थे। वे अपने प्रवचनों के लिए मशहूर रहे। उनके प्रवचन तुलुवा और कन्नडिगा के बीच बहुत लोकप्रिय रहे। गोविंदाचार्य वर्ष 1979 में अमेरिका के प्रिंसटन में आयोजित विश्व धर्म एवं शांति सम्मेलन में भारत के ब्रांड एंबेसडर रहे।