- संजय राउत ने सामना में लिखे एक लेख में कहा- लोग अपने परिवार बचाएं, देश संभालने के लिए मोदी हैं
- वर्ष 2020 को देश और जनता के लिए दुख पहुंचानेवाले वर्ष के रूप में लंबे समय तक याद किया जाएगा- राउत
- राज्य और केंद्र के बीच संबंध बिगड़ रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट कई मामलों में अपना कर्तव्य भूल गया- राउत
मुंबई: शिवसेना के राज्यसभा सांसद और 'सामना' के कार्यकारी संपादक संजय राउत ने नए साल खत्म होने और आने वाले साल को लेकर एक विशेष लेख लिखा है। इस लेख में उन्होंने 2020 की कई बातों, राजनीतिक घटनाओं तथा अन्य मुद्दों का जिक्र किया है। इस लेख का शीर्षक है- 'नए साल में क्या पैदा होगा?… मोदी देश संभालेंगे, लोग परिवार संभालें!' राउत ने लिखा कि 2020 का साल पूर्ण विश्व का जीवन अंधकारमय करनेवाला रहा। 'सामना' में लिखे संजय राउत के पूरे लेख को आप हू-ब-हू यहां पढ़ सकते हैं।
देश संभालने के लिए मोदी हैं
2020 खत्म होने को है। बीतता वर्ष कुछ अच्छा बो कर नहीं जा रहा है। इसलिए नए वर्ष में कौन-से फल मिलेंगे उसका भरोसा नहीं। लोग एक काम करें, अपने परिवार को कैसे बचाना है ये देखें। बाकी देश संभालने के लिए मोदी व उनके दो-चार लोग हैं। वर्ष 2020 कब खत्म होगा, ऐसा सभी को लग रहा था। ये वर्ष चार दिनों में समाप्त हो जाएगा, लेकिन इससे पहले कई लोगों ने 2020 का कैलेंडर फाड़कर फेंक दिया था। इसलिए 2020 का खत्म होना एक उपचार है। 2020 ये वर्ष शुरू होने के साथ ही अंधेरे में बीता। यह वर्ष संपूर्ण विश्व का जीवन अंधकारमय करनेवाला रहा। वर्ष 2020 को देश और जनता के लिए दुख पहुंचानेवाले वर्ष के रूप में लंबे समय तक याद किया जाएगा। दुनिया के साथ भी ऐसा ही हुआ है। `कोविड-19’ नामक वायरस ने पूरी दुनिया को जेल बना दिया। इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि नए साल में जेल के दरवाजे खुलेंगे। लोग क्रिसमस और नए साल का जश्न न मनाएं इसलिए रात्रिकालीन का कर्फ्यू शुरू किया। यह 6 जनवरी तक चलेगा। मतलब नए साल का स्वागत करते समय उत्साह पर नियंत्रण रखें, ऐसा स्पष्ट आदेश है। पूरी दुनिया मुश्किल में थी लेकिन अमेरिका ने आर्थिक संकट से जूझ रहे अपने नागरिकों को एक अच्छा पैकेज दिया। प्रत्येक अमेरिकी नागरिक के बैंक खाते में 85,000 रुपए प्रतिमाह जमा होगा, ऐसा यह पैकेज है। ब्राजील और अन्य यूरोपीय देशों में भी यही हुआ लेकिन विदा होते साल में हिंदुस्थान की जनता की झोली खाली रह गई।
तालेबंदी का देश
खत्म होते वर्ष ने क्या बोया और क्या दिया इसे पहले समझ लें। `कोविड-19’ मतलब कोरोना के कारण छह महीने से अधिक समय तक देश तालेबंदी में ही रहा। इस दौरान उद्योग बंद हो गया था। लोगों की नौकरियां चली गर्इं। लोगों का वेतन कम हो गया। स्कूल और कॉलेज बंद हैं। आज भी मॉल्स, सिनेमा थिएटर, नाटक उद्योग, होटल-रेस्तरां बंधन में हैं। नतीजतन, लाखों लोगों का रोजगार खत्म हो गया है। कोरोना अवधि के दौरान देश में विदेशी निवेश आ रहा है। इनमें से ज्यादातर निवेश सामंजस्य करार में अटके हुए हैं। महाराष्ट्र में, 25 कंपनियों ने 61 हजार 42 करोड़ रुपए के निवेश समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। इससे 2.5 लाख नए रोजगार सृजित होंगे, लेकिन इसी समय पुणे के पास तालेगांव में जनरल मोटर्स का कारखाना बंद हो रहा है और 1800 श्रमिकों के चूल्हे बुझते हुए दिखाई दे रहे हैं। यह हिंदुस्थान और चीन के बीच तनाव से पैदा हुआ संकट है। चीनी सैनिक 2020 में हिंदुस्थानी सीमा में घुसे। उन्होंने अपनी जमीन पर कब्जा कर लिया। चीनी सैनिकों को हम पीछे नहीं धकेल सकते थे, लेकिन संकट से लोगों का ध्यान हटाने के लिए राष्ट्रवाद की एक नई छड़ी का इस्तेमाल किया गया। चीनी वस्तुओं और चीनी निवेश के बहिष्कार का प्रचार किया गया। चीनी कंपनी ग्रेट वॉल मोटर्स वित्तीय संकट झेल रही जनरल मोटर्स में 5000 करोड़ रुपए का निवेश करनेवाली थी। अब ऐसा नहीं होगा। इसलिए जनरल मोटर्स बंद हो जाएगी। चीनी निवेश पर अंकुश लगाने की बजाय चीन की सेना को यदि पीछे धकेला गया होता, तो राष्ट्रवाद तीव्रता से चमकता दिखाई देता।
लोकतंत्र की आत्मा
बीतते वर्ष में देश ने जो आघात झेला है, उनमें कोरोना का हमला सबसे बड़ा है। लाखों लोगों ने अपनी जान गंवाई। इससे भी भयंकर मतलब `संसद’ लोकतंत्र की आत्मा है। वह आत्मा नष्ट हो गई। तीनों कृषि बिल जिनके खिलाफ किसानों का आंदोलन चल रहा है, बहुमत के बल पर पारित किए गए। अब उस बिल के खिलाफ किसान आज सड़कों पर उतरे हैं। अयोध्या के राम मंदिर जैसे भावनात्मक मुद्दे उठाए जाते हैं लेकिन सरकार किसानों की भावनाओं पर विचार नहीं करती है। हम मानते हैं कि हिंदुस्थान में एक लोकतांत्रिक शासन है लेकिन चार-पांच उद्योगपतियों, दो-चार राजनेताओं ने अपनी महत्वाकांक्षा, घृणा, क्रोध, लालच के लिए देश को वैâसे बंधक बनाया है, ऐसा दृश्य बीतते वर्ष में दिखाई दिया। राष्ट्रीय हित का विचार अब संकुचित हो रहा है। पार्टी हित और व्यक्ति पूजा का मतलब देश हित है। सवाल यह है कि क्या राजनीति में केवल स्वार्थ, धोखा और अंत में हिंसा ही शेष है। ऐसा सवाल पश्चिम बंगाल की वर्तमान स्थिति को देखते हुए खड़ा होता है। लोकतंत्र में राजनीतिक हार होती रहती है, लेकिन ममता बनर्जी को सत्ता से बाहर करने के लिए केंद्र सरकार की सत्ता का जिस तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है वह दुखदायक है। बड़े पैमाने पर रैलियां और रोड शो चल रहे हैं और देश के गृह मंत्री इसका नेतृत्व कर रहे हैं। उसी समय कोरोना के संदर्भ में भीड़ से बचने के लिए महाराष्ट्र जैसे राज्यों में रात्रिकालीन कर्फ्यू लगाना पड़ता है। नियमों को शासक तोड़ते हैं और भुगतान जनता को करना पड़ता है।
1000 करोड़ का क्या?
बीतते वर्ष में संसदीय लोकतंत्र का भविष्य खतरे में पड़ा। नए संसद भवन के निर्माण से स्थिति नहीं बदलेगी। 1000 करोड़ रुपए के नए संसद भवन के निर्माण की बजाय, इसे स्वास्थ्य प्रणाली पर खर्च किया जाना चाहिए, ऐसा देश के प्रमुख लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी को बताया। इसका उपयोग नहीं होगा। श्री राम मंदिर के लिए लोगों से चंदा इकट्ठा किया जाएगा। लोकतंत्र के सर्वोच्च मंदिर के निर्माण के लिए, यानी नई संसद के लिए, इस तरह लोगों से चंदा इकट्ठा करने का विचार किसी को व्यक्त करना चाहिए। इस नई संसद के लिए लोगों से एक लाख रुपए भी इकट्ठा नहीं होगा। क्योंकि लोगों के लिए यह इमारत अब सजावटी और बिना काम की होती जा रही है।
राज्य टूटेंगे
बीतते वर्ष ने महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक संकट और निराशा का बोझ आनेवाले साल पर डाल दिया है। सरकार के पास पैसा नहीं है लेकिन उसके पास चुनाव जीतने के लिए, सरकारें गिराने-बनाने के लिए पैसा है। हम ऐसी स्थिति में हैं जहां देश की राष्ट्रीय आय से अधिक ऋण है। यदि हमारे प्रधानमंत्री को इस स्थिति में रात में अच्छी नींद आ रही है, तो उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। बिहार में चुनाव हुए। वहां तेजस्वी यादव ने मोदी से टक्कर ली। बिहार के नीतीश कुमार और भाजपा की सत्ता सही तरीके से नहीं आई। भाजपा नेता विजयवर्गीय ने सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए विशेष प्रयास किया था। यदि हमारे प्रधानमंत्री राज्य सरकारों को अस्थिर करने में विशेष रुचि ले रहे हैं तो क्या होगा? प्रधानमंत्री देश का होता है। देश एक महासंघ के रूप में खड़ा है। यहां तक कि जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें नहीं हैं, वे राज्य भी राष्ट्रहित की बातें करते हैं। यह भावना मारी जा रही है। मध्य प्रदेश में, भाजपा ने कांग्रेस को तोड़ दिया और सरकार बनाई। बिहार में युवा तेजस्वी यादव ने चुनौती पेश की। कश्मीर घाटी में अस्थिरता बरकरार है। चीन ने लद्दाख में घुसपैठ की है। पंजाब के किसानों पर जोर-जबरदस्ती का प्रयोग शुरू है। केंद्र सरकार कंगना रनौत और अर्नब गोस्वामी को बचाने के लिए जमीन पर उतर गई। राजनीतिक अहंकार के लिए मुंबई की `मेट्रो’ को अवरुद्ध कर दिया। अगर केंद्र सरकार को इस बात का एहसास नहीं हुआ कि हम राजनीतिक लाभ के लिए लोगों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, तो जैसे रूस के राज्य टूटे वैसा हमारे देश में होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट अपने कर्तव्य भूला
केंद्र सरकार की क्षमता और विश्वसनीयता पर सवालिया निशान पैदा करनेवाले वर्ष 2020 की तरफ देखना होगा। राज्य और केंद्र के बीच संबंध बिगड़ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट कई मामलों में अपना कर्तव्य भूल गया। भारतीय सामाजिक जीवन की त्रासदी यह है कि देश का भविष्य उज्ज्वल करने या उसे डुबाना दो-चार लोगों के हाथों में है। यह त्रासदी वर्तमान में चल रही है। कोरोना और लॉकडाउन के बावजूद, सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार का वायरस कायम है। अंबानी और अडानी की संपत्ति बीतते वर्ष में भी बढ़ती गई लेकिन जनता ने बड़ी संख्या में नौकरियां खो दीं। तो नए साल का आगमन कर्मचारियों को क्या देगा? रात्रि कर्फ्यू के कारण `पार्टिंयां’ होटलों और नाइट क्लबों में नहीं होंगी, बस इतना ही। एक अमीर व्यापारी मिलने आए। उन्होंने कहा कि इस बार नए साल की पार्टी घर पर रखी गई है। चार-पांच दोस्तों को बुलाया। आनेवालों ने पूछा, कर्फ्यू शुरू होने पर घर वापस वैâसे जाएंगे? इस पर पार्टी के निमंत्रण को स्वीकार करनेवाले मित्र ने कहा, `इसमें क्या है? यह आसान है। ज्यादा-से-ज्यादा एक हजार रुपए का दंड भरना पड़ेगा।’ पैसा दिया कि काम तो होता है। कोई समस्या नहीं है, यह भावना देशभर में तेजी से बढ़ रही है।
आशा कि किरण
आनेवाले हर वर्ष ने आशा की किरणें दिखाई परंतु वे किरणें अंतत: निराशा के अंधेरे में गुम हो गई। अब नए साल की शुभकामनाएं देते हुए, आम लोगों को एक ही अनुरोध करना होगा, जो हुआ वह पर्याप्त है। मानसिक अस्थिरता और उथल-पुथल से भरा वर्ष 2020 बहुत तेजी से समाप्त हो गया है और बीतते वर्ष ने कुछ अच्छा न बोकर रखने के कारण वर्ष 2021 वर्ष वैसे बीतेगा, इसका कोई भरोसा नहीं। लोगों को अपने परिवार को बचाने की कोशिश करनी चाहिए। बाकी संसार तो चलता ही रहेगा!