Sawal public ka : जब विपक्षी नेताओं पर ED के एक्शन्स को लेकर राजनीतिक पारा गर्म है, ऐसे समय में सुप्रीम कोर्ट ने ED के अधिकारों पर एक बड़ा फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रिवेन्शन ऑफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट यानी PMLA के तहत ED को मिले अधिकारों पर मुहर लगा दी है। कोर्ट ने ED को पूछताछ के दौरान ही आरोपी को गिरफ्तार कर लेने, सर्च करने, संपत्ति जब्त करने जैसे तमाम अधिकारों को सही माना है। 242 याचिकाओं को ठुकराते हुए 3 जजों की बेंच ने ED की शक्तियां छीनने की मांग नामंजूर कर दी। लेकिन क्या इससे ED पर हो रही राजनीति थमेगी? क्यों अशोक गहलोत जैसे नेता ED पर कोर्ट के इस फैसले से निराश हैं? सवाल पब्लिक का है कि जब चोरी नहीं की तो ED से डरना क्या ? आखिर ED करप्शन क्लीनर है या जैसा विपक्ष का आरोप है कि ED मोदी राज का 'गब्बर' है?
कार्ति चिदंबरम, महबूबा मुफ्ती, अनिल देशमुख जैसे हाई प्रोफाइल नेताओं की याचिकाओं समेत 242 अर्जियों पर आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है। इस फैसले ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी से लेकर बंगाल के मंत्री पार्थ चटर्जी, दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन, महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री नवाब मलिक, शिवसेना नेता संजय राउत जैसे कई नेताओं के हाई प्रोफाइल केसेज में ED के हाथ मजबूत कर दिए हैं। ED के अधिकार को बरकरार रखते हुए कोर्ट ने कहा कि PMLA में गिरफ्तारी की प्रक्रिया मनमानी नहीं है।
PMLA के सेक्शन्स 5, 8(4), 15, 17 और 19 के तहत गिरफ्तार करने, सर्च करने, संपत्तियां अटैच करने और जब्त करने को कोर्ट ने संविधान के मुताबिक माना है। कोर्ट ने PMLA के सेक्शन 24 के तहत Reverse burden of proof को भी बरकरार रखा है यानी आरोपी को ही अपनी बेगुनाही साबित करनी होगी। साथ ही कोर्ट ने PMLA के सेक्शन 45 में जमानत हासिल करने की दोहरी शर्तों के प्रावधान को बरकरार रखा है। और कहा है कि संसद ने इसके लिए जो अमेंडमेंट किए थे, ये उसका अधिकार था।
सुप्रीम कोर्ट ने आज ये भी कहा कि ED अधिकारी, पुलिस के अधिकारी नहीं हैं। इसलिए उनके सामने दर्ज बयान कोर्ट में माने जाएंगे। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि Enforcement Case Information Report यानी ECIR की तुलना FIR से नहीं की जा सकती है। गिरफ्तारी के वक्त ECIR को आरोपी को मुहैया कराना जरूरी नहीं है।
आप देख ही रहे होंगे कि सोनिया गांधी से हो रही पूछताछ और इससे पहले राहुल गांधी से हुई ED की पूछताछ को लेकर कांग्रेस कैसे सड़कों पर उतरी है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल ये आरोप लगा रहे हैं कि ED सरकार का पॉलिटिकल टूल है। ऐसे में जब ED के अधिकारों के खिलाफ दायर याचिकाएं नामंजूर की गईं तो कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
कांग्रेस के बयान में कहा गया है कि ED के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला हमारे लोकतंत्र पर गहरा असर डालने वाला है, खासकर तब जब सरकार राजनीतिक बदले की भावना रखती हो। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि PML एक्ट और ED के अधिकारों पर माननीय उच्चतम न्यायालय का फैसला निराशाजनक और चिंताजनक है। देश में पिछले कुछ वर्षों से जो तानाशाही का माहौल बना हुआ है, इस फैसले के बाद केन्द्र सरकार द्वारा ED का राजनीतिक इस्तेमाल और अधिक करने की संभावना बढ़ जाएगी।
जाहिर तौर पर SC का फैसला विपक्ष को असहज करने वाला है। सुनिए विपक्ष क्या कह रहा है। जब यूपीए की सरकार थी तो CBI को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि CBI पिंजरे में बंद तोता है। 2014 में NDA की सरकार आयी तब से राजनीतिक तौर पर संवेदनशील मामलों में CBI की सक्रियता कम दिखी लेकिन ED बेहद एक्टिव है।
कल ही राज्यसभा में सरकार ने आंकड़े रखे हैं जिसके मुताबिक 2004 से 2014 के मुकाबले 2014 से 2022 के बीच ED की रेड 27 गुना बढ़ी है। यूपीए के समय में ED ने 112 रेड की थी और PMLA के तहत कोई कन्विक्ट नहीं हुआ। 114 चार्जशीट दायर की गई। 5346 करोड़ से अधिक की संपत्ति अटैच हुई। जबकि NDA के समय में 3010 रेड्स की गई और 23 कन्विक्शन्स हुईं। 888 चार्जशीट दाखिल की गई और 99 हजार 356 करोड़ की संपत्तियां अटैच की गईं।
ED की सक्रियता से कैसे बड़े-बड़े मामले खुल रहे हैं। इसकी मिसाल आज ही झारखंड के अवैध खनन मामले में सामने आयी है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करीबी पंकज मिश्रा के केस में ED ने एक inland vessel को जब्त किया है। जब्त हुए M.V.Infralink- III की कीमत 30 करोड़ है। पिछले ही हफ्ते बंगाल के मंत्री पार्थ चटर्जी के केस में ED ने 2000 और 500 के 21 करोड़ के करंसी नोट जब्त किए थे। आज भी इस मामले में कैश बरामद हुआ है, जिसकी गिनती जारी है।
ऐसे में ED पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद BJP को मौका मिला है कि वो ED को लेकर सरकार को क्लीन चिट दे सके। सुनिए बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा को। ED पर कोर्ट का आज का फैसला BJP को Suit जरूर करता है लेकिन विपक्ष की लड़ाई खत्म नहीं होने वाली। सुप्रीम कोर्ट ने PMLA में बदलाव को money bill की तरह पास कराने के मसले पर कोई राय नहीं जाहिर की है। 7 जजों की बेंच इस पर सुनवाई कर रही है।
उधर दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन को दिल्ली हाई कोर्ट से पद पर बने रहने की राहत मिली है। सत्येंद्र जैन को मंत्री पद से हटाने की BJP MLA नंद किशोर गर्ग की याचिका खारिज हो गई है।
सवाल पब्लिक का
1. PMLA के प्रावधानों से ED के हाथ मजबूत रहने पर विपक्ष को निराशा क्यों है?
2. ED का एक्शन भ्रष्टाचार के खिलाफ है या राजनीतिक बदले के आरोपों में दम है?
3. ED के लेंस में ज्यादातर विपक्ष के नेता ही कटघरे में क्यों दिख रहे हैं?