- सेना में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन के फैसले पर राहुल गांधी ने मोदी सरकार को घेरा
- सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देकर मोदी सरकार को महिला विरोधी बताया
- दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को मनमोहन सिंह सरकार ने दी थी चुनौती
नई दिल्ली। क्या कांग्रेस सांसद राहुल गांधी किसी विषय पर जब बोलते हैं तो होमवर्क नहीं करते। या वो सिर्फ मोदी सरकार को घेरने के लिए बयान देते हैं, ट्वीट करते हैं और खुद के साथ साथ पार्टी की किरकिरी करा लेते हैं। ताजा मामला सेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन देने के संबंध मे है। इस सिलसिले में राहुल गांधी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साफ है कि मोदी सरकार महिलाओं का सम्मान नहीं करती है। सेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन देने के मामले में जो फैसला आया है उसे पता चलता है कि बीजेपी सरकार गलत साबित हुई है।
महिलाओं को स्थाई कमीशन देने के खिलाफ मनमोहन सरकार की थी अर्जी
अब यह जानना जरूरी है कि राहुल गांधी जिस विषय पर मोदी सरकार पर निशना साध रहे थे उस विषय में यूपीए-2 सरकार का क्या नजरिया था।मनमोहन सिंह सरकार के समय 6 जुलाई 2010 को दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिसमें महिला अफसरों को स्थायी कमीशन दिए जाने का फैसला सुनाया था। तत्कालीन केंद्र सरकार यानि मनमोहन सरकार ने जुलाई 2010 में दिल्ली हाई कोर्ट के 12 मार्च 2010 के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
स्मृति ईरानी ने कसा तंज
सेना में महिलाओं के स्थाई कमीशन देने के सुप्रीम फैसले पर जहां राहुल गांधी ने मोदी सरकार की नाकामी बताया तो स्मृति ईरानी ने तंज कसा। उन्होंने कहा कि अच्छा यह होता कि राहुल गांधी अपनी टीम से कहते कि पहले फैक्ट चेक करें। यह तो कुछ वैसे ही हुआ आदरणीय बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाने। राहुल गांधी को पता होना चाहिए कि सेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन देने का फैसला मोदी सरकार ने ही लिया था।
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ यूपीए-2 गई थी सुप्रीम कोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में सेना को अपनी सभी महिला अफसरों को स्थायी कमीशन देने का आदेश दिया था। शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत सेना में आने वाली महिलाओं को सेवा में 14 साल पूरे करने पर पुरुषों की तरह स्थायी कमीशन देने का फैसला सुनाया गया था। उस समय केंद्र सरकार की दलील थी कि भारतीय सेना में यूनिट पूरी तरह पुरुषों की है और पुरुष सैनिक महिला अधिकारियों को स्वीकार नहीं कर पाएंगे। कहीं न कहीं स्थाई कमीशन न दिए जाने के संबंध में पुरुष मानसिकता का जिक्र था।
केंद्र सरकार की दलील थी कि सेना में ज्यादातर ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले जवान महिला अधिकारियों से कमांड लेने को लेकर बहुत सहज नजर नहीं आते हैं। महिलाओं की शारीरिक स्थिति परिवारिक दायित्व जैसी बहुत सी बातें उन्हें कमांडिंग अफसर बनाने में बाधक हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया युद्धक क्षेत्र को छोड़कर सेना महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन दे सकती है।