- अपने मुखपत्र सामना के जरिए शिवसेना ने फिर की सावरकर की तारीफ
- सावरकर ने माफी मांगी और रिहा हो गए, ऐसा कहना पूरी तरह गलत है- शिवसेना
- सामना में लिखे लेख में सावरकर को बताया गया महान क्रांतिकारी
नई दिल्ली: वीर सावरकर (Veer Savarkar) को लेकर इन दिनों एक बहस सी चल पड़ी है। इस बीच शिवसेना ने सावरकर (Shivsena on Veer Savarkar) को लेकर सामना में एक लेख लिखा है जिसमें सावरकर की जमकर तारीफ की गई है। सामना में लिखे इस लेख में हा गया है कि गुलाम हिंदुस्थान के नायक रहे सावरकर को खलनायक ठहराने के पीछे एक सुनियोजित साजिश थी। उस साजिश के तहत प्रयास आज भी जारी ही हैं।
मुकुट रत्न थे सावरकर
सामना में सावरकर की तारीफ करते हुए कहा गया है, 'विनायक दामोदर सावरकर स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों के मुकुट रत्न थे। आजादी से पहले उन्हें विदेशियों ने प्रताड़ित किया था और आज अपने ही लोग उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं। सावरकर का महान क्रांतिकारी कार्य, देश के लिए दिए गए उनके बलिदान को भूलकर कुछ लोग सावरकर को माफी मांगकर छूटनेवाला ‘वीर’ ऐसा मानते हैं। (यह एक साजिश है।) सावरकर की माफी के बारे में दंत-कथाएं हैं, वे आधी-अधूरी हैं।'
सावरकर को क्रांतिकारी बताते हुए इस लेख में कहा गया है, 'कुछ लोगों को लगता है। जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई के लिए अपने जिस्म पर एक खरोंच भी नहीं लगवाई, ऐसे लोग सावरकर का उल्लेख माफीवीर के रूप में कर रहे हैं। सावरकर जैसे क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ क्रांतिकारियों की एक फौज ही खड़ी कर दी थी। सावरकर के प्रति यह सम्मान दुनियाभर के इतिहासकारों में है ही। उन्होंने सावरकर का त्याग, शौर्य और क्रांतिकारी कार्यों को देखा।'
तो 50 लगते रिहा होने में
सावरकर की तारीफ करते हुए कहा गया है, 'सावरकर को दोहरी उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। वह काला पानी ही था। यदि सावरकर ने अपनी सजा पूरी काटी होती तो उनकी रिहाई पचास साल पूरे होने पर अर्थात 23 दिसंबर, 1960 को हुई होती। अंडमान की अंधेरी गुफाओं में यातना सहते हुए मरने की बजाय ‘युक्ति’ से बाहर निकलकर देश की सेवा में लगे रहना चाहिए, ऐसा सावरकर ने सोचा था। 4 जुलाई, 1911 को सावरकर अंडमान की सेलुलर जेल में दाखिल हुए थे। 30 अगस्त को उन्हें छह महीने के लिए एकांतवास में रखा गया था। (आज का अंडा सेल।) उसी दौरान, सावरकर ने जेल प्रशासन से अनुरोध करना शुरू कर दिया। सावरकर को हथकड़ी, पैर में बेड़ी डाली गई थीं। उन्हें उसी अवस्था में मोटा रस्सा घुमाने का काम दिया गया। सावरकर को जेल में कोई विशेष सुविधा नहीं थी।'
नायक थे सावरकर
सावरकर की तारीफ करते हुए लिखा गया है, 'गुलामी के दौरान सावरकर सभी के नायक थे। आजादी के बाद से ही उन्हें खलनायक साबित करने के प्रयास शुरू हुए, जो कि आज भी जारी ही हैं। स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव में भी आज सावरकर देश की राजनीति के केंद्र में हैं। सावरकर के प्रति द्वेष और विष फैलाने के बाद भी वे लोगों के मन में स्थाई तौर पर बसे हुए हैं। पूरे इतिहास में, भविष्य में सावरकर का स्थान एक नायक के रूप में न रहे, इसके लिए एक विशिष्ट वर्ग उन्हें लगातार माफीवीर के रूप में अपमानित करता रहा है।'