नई दिल्ली: देशभर में 25 मार्च से लागू लॉकडाउन की वजह से फंसे प्रवासी मजदूरों को अब स्पेशल ट्रेनें चलाकर उनकी गृह राज्य पहुंचाया जा रहा है। इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखा जा रहा है, जबकि जिस स्टेशन से वो चढ़ते हैं और जिस स्टेशन पर उतरते हैं वहां भी इसके पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं। उत्तर प्रदेश के 800 से अधिक मजदरों को लेकर महाराष्ट्र के नासिक से चली पहली विशेष ट्रेन रविवार सुबह छह बजे लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पहुंची। यह मजदूर नासिक में फंसे हुए थे।
महाराष्ट्र के भिवंडी से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के लिए लगभग 1200 प्रवासियों को लेकर एक 'श्रमिक स्पेशल ट्रेन' रात को लगभग 1:23 बजे रवाना हुई। झारखंड के लगभग 1100 छात्रों को राजस्थान के कोटा से लेकर विशेष ट्रेन शनिवार को शाम 7 बजकर पांच मिनट पर हटिया स्टेशन पहुंची। इन छात्रों का रांची के उपायुक्त और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने अन्य अधिकारियों के साथ फूलों स्वागत किया और खाने के पैकेट दिए।
जयपुर से फंसे हुए 1187 प्रवासी मजदूरों को लेकर पहली श्रमिक विशेष ट्रेन 16 घंटे के सफर के बाद शनिवार दोपहर को पटना के बाहरी इलाके दानापुर रेलवे स्टेशन पर पहुंची। ज्यादातर ट्रेनें केरल, महाराष्ट्र और गुजरात से रवाना हुईं। रेलवे ने शनिवार को आठ राज्यों से लगभग 10,000 प्रवासी मजदूरों को उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार में उनके घर तक पहुंचाने के लिए 10 ट्रेनें चलाईं। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, केरल, राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात से ये विशेष ट्रेनें चलाई गईं।
वहीं गुजरात के सूरत से उत्तर प्रदेश जा रही प्रवासी मजदूरों की बसों को प्रशासनिक कारणों से शनिवार को गुजरात सीमा पर आगे जाने से रोक दिया गया जिससे भड़के प्रवासी मजदूरों ने गुजरात पुलिस पर पथराव किया। बसों को वड़ोदरा में वाघोडिया के पास हलोल चेक पोस्ट पर रोका गया क्योंकि उनके पास आगे जाने की अनुमति नहीं थी। इससे उत्तेजित मजदूर पुलिस से भिड़ गए और पथराव करने लगे।
मजदूरों पर टूटा दुखों का पहाड़
लॉकडाउन के चलते प्रवासी मजदूरों पर दुखों का पहाड़ टूटा है, ना उनके पास काम बचा और ना ही पैसा, ना उनके पास रहने का इंतजाम था और ना खाने का। सरकारों ने अपने-अपने स्तर पर कई इंतजाम किए, लेकिन कई जगह वो पर्याप्त नहीं रहे। संकट के इस समय ये मजदूर बस किसी भी तरह से वापस घर लौटना चाहते थे। अब जाकर इन्हें ट्रेनों से घर पहुंचाया जा रहा है। पहले हजारों की संख्या में मजदूर पैदल ही हजारों किलोमीटर की यात्रा करने निकल पड़े।