- पांच दिन चली थी निजाम की सेना के साथ लड़ाई
- चाह कर भी मदद नहीं कर पाया था पाकिस्तान
- हैदराबाद पर कब्जे के बाद वहां के नेताओं को पटेल ने भेज दिया था पाकिस्तान
Operation Polo: भारत जब आजाद हुआ तो 565 रियासतों में बंटा हुआ था। इसमें से तीन (कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद) को छोड़कर बाकी सभी भारत में स्वेच्छा से शामिल हो गए थे। इन्हीं तीन में से एक हैदराबाद के खिलाफ भारत ने पुलिस कार्रवाई की थी, जिसे ऑपरेशन पोलो का नाम दिया गया था।
निजाम का सपना
हैदराबाद पर उस समय निजाम उस्मान अली खान आसफजाह सातवें का राज था। इनका सपना था कि वो स्वतंत्र रहे। हैदराबाद रियासत के निजाम उस दौर में सबसे अमीर थे। यह रियासत था तो हिंदू बहुल लेकिन शासन के सभी पदों पर मुस्लिम ही थे। शासकों का मन था कि इसे इस्लामिक राष्ट्र बनाया जाए। इसके लिए अलग से सेना तैयार की गई, जिसे रजाकार कहते थे। इसका नेतृत्व कट्टरपंथी कासिम राजवी कर रहे थे। वो अपने यहां लगातार सभा करके हैदराबाद को आजाद करने की मुहिम चला रहे थे।
क्या हुआ था समझौता
निजाम ने खुद को स्वतंत्र रखने के लिए अंग्रेजों के सामने भी हाथ फैलाए थे, लेकिन तब माउंटबेटन ने इसके लिए उन्हें मना कर दिया था। उन्होंने कहा था कि वो अपनी सत्ता बरकरार रख सकते हैं, लेकिन विदेश और रक्षा भारत सरकार ही देखेगी। निजाम तैयार नहीं हुए और उनके लोगों ने हैदराबाद में उत्पात मचाना शुरू कर दिया। हिंदूओं को मारा जाने लगा था।
नहीं मिली मदद
निजाम की गलतियों को नेहरू देख तो रहे थे, लेकिन वो चाहते थे कि शांति से ये सुधार हो जाए, जबकि पटेल का कहना था कि हैदराबाद, भारत में पेट के कैंसर के समान है, इसलिए इसे भारत में मिलाना जरूरी है। निजाम को जब लगा कि भारत कभी भी हमला कर सकता है, तो उन्होंने यूरोप से हथियार खरीदने के लिए अपने आदमी भेजे, लेकिन सफल नहीं हुए। अमेरिका से भी मदद मांगी, लेकिन अमेरिका ने उन्हें मदद नहीं भेजी।
पटेल का प्लान
बीबीसी के अनुसार तब के गृहमंत्री सरदार पटेल इस हमले की योजना बना चुके थे। उन्होंने हमले से पहले जनरल करियप्पा को दिल्ली बुलाया और उनसे सिर्फ एक सवाल पूछा था कि अगर हैदराबाद पर हमला किया जाता है और पाकिस्तान भारत पर हमला कर देता है, तो क्या वो बिना अतिरिक्त मदद के उसे संभाल लेंगे? करियप्पा ने इसका हां में जवाब दिया था।
निजाम को जब लगा कि पटेल उन्हें छोड़ने वाले नहीं हैं तो उन्होंने अनुरोध किया कि हमला न किया जाए, शांति से इसपर बात हो। नेहरू समेत तब कई नेता इसके पक्ष में थे। तब के सेनाध्यक्ष जनरल रॉबर्ट बूचर को आशंका थी कि इस हमले के जवाब में पाकिस्तान भारत पर बम गिरा सकता था। इधर निजाम से बातचीत की बात सोची जा रही थी, तभी 13 सितंबर को पटेल ने घोषणा कर दी कि हैदराबाद में सेना घुस गई है, अब कुछ नहीं हो सकता है। 18 सितंबर को हैदराबाद पर कब्जा कर लिया गया और वहां के नेताओं को पाकिस्तान भेज दिया गया।
चाह कर भी मदद नहीं कर पाया पाकिस्तान
पाकिस्तान निजाम के साथ मिलकर लंबा प्लान बना रहा था। तब गोवा पूर्तगाल के कब्जे में था। पाकिस्तान का प्लान पूर्तगाल के साथ हैदराबाद का समझौता कराने में था। ताकि जरूरत पड़ने पर भारत को वो घेर सके। भारत ने जब हमला कर दिया तो पाकिस्तान हक्का बक्का रह गया। जिन्ना पहले ही हैदराबाद को मदद देने से इनकार कर चुके थे, हालांकि इस हमले से पहले ही उनकी मौत हो गई थी। हमले के बाद तब के पाक प्रधानमंत्री लियाकत खां ने दिल्ली पर बम गिराने के लिए कहा, लेकिन पाकिस्तान के एयरफोर्स ने मना कर दिया। कारण था कि तब पाकिस्तान के पास चार बम वर्षक विमान थे, उनमें से दो खराब थे और दो के सहारे भारत पर बम गिराया नहीं जा सकता था। अगर बम गिरा भी दिया जाता तो वो विमान वापस लौट नहीं पाते। दूसरी ओर भारतीय वायुसेना भी इसका इंतजार कर रही थी कि जैसे ही पाकिस्तानी विमान भारत में घुसेगा, मार कर गिरा दिया जाएगा।
ऑपरेशन पोलो क्यों पड़ा था नाम
पटेल एक चतुर रणनीतिकार थे। उन्होंने इस हमले को पुलिस कार्रवाई कहा, अगर सैन्य कार्रवाई कहते तो बाहरी देश इसमें दखल दे सकते थे या विरोध हो सकता था, लेकिन पुलिस कार्रवाई पर बाहरी देश प्रतिक्रिया नहीं दे सकते थे। इस ऑपरेशन का नाम पोलो इसलिए पड़ा क्योंकि तब हैदराबाद में विश्व के सबसे ज्यादा पोलो के मैदान थे। तब हैदराबाद में 17 पोलो के मैदान थे।
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