पंजाब की राजनीति में मचे घमासान के बीच अचानक एक शख्स सुर्खियों में आ गया। ये है सुखजिंदर सिंह रंधावा। पंजाब के बाहर के लोगों ने अभी तक सुखजिंदर सिंह रंधावा का नाम भी नहीं सुना था, लेकिन पंजाब के लोग जानते हैं कि सुखजिंदर सिंह रंधावा कभी अमरिंदर के खास सिपाहसालार रहे थे और उनकी दोस्ती को कुछ लोग ‘जय-वीरु’ की दोस्ती भी कहते थे। कैप्टन अमरिंदर के पीछे सुखजिंदर सिंह रंधावा हमेशा खड़े रहे। कैप्टन अमरिंदर सिंह की सुखजिंदर के पिता संतोख सिंह से भी अच्छी बनती थी, जो पंजाब कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष रहे। लेकिन, सुखजिंदर के साथ उनका ऐसा नाता बना कि कैप्टन जब मुख्यमंत्री नहीं थे, तब भी सुखजिंदर उनके पीछे खड़े रहे। आलम ये कि 2012 में जब कांग्रेस आलाकमान ने प्रताप सिंह बाजवा को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया तो सुखजिंदर सिंह रंधावा प्रताप सिंह के खिलाफ कई जगह छोटी रैली करते दिखे। इतना ही नहीं, सतलज-यमुना कैनाल लिंक मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद अमरिंदर सिंह 42 विधायकों के साथ विधानसभा से इस्तीफा देने स्पीकर के पास पहुंचे तो सुखजिंदर सिंह रंधावा उनमें सबसे आगे थे।
नहीं होती थी रंधावा के निर्देशों की सुनवाई
तो फिर ऐसा क्या हुआ कि सुखजिंदर सिंह रंधावा की अमरिंदर सिंह से दुश्मनी हो गई? दरअसल, कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद सुखजिंदर सिंह रंधावा को उम्मीद थी कि कैप्टन के दोस्त और खास साथी होने के नाते उन्हें कोई शानदार पद मिलेगा। लेकिन, हुआ बिलकुल उल्टा। सुखजिंदर सिंह रंधावा को कैबिनेट में जगह ही नहीं मिली, जबकि उनके एक और साथी तृप्त रजिंदर सिंह बाजवा को कैप्टन ने कैबिनेट में जगह दे दी। उस वक्त कहा यह गया कि कैप्टन ने किसी लॉबी के दबाव में सुखजिंदर सिंह को कैबिनेट में जगह नहीं दी। सुखजिंदर इस बात से भी आहत थे कि उनके गृहनगर गुरुदासपुर में अधिकारी उनकी नहीं सुनते। तृप्त रजिंदर सिंह बाजवा भी गुरुदासपुर के ही हैं और अधिकारियों की दिक्कत ये थी कि वो किसकी सुनें। बाजवा कैबिनेट मंत्री बन चुके थे, जबकि रंधावा सिर्फ कैप्टन के करीबी थे। अधिकारियों की उपेक्षा से आहत रंधावा ने कैप्टन से शिकायत की, लेकिन अमरिंदर इस समस्या का हल निकालने में भी नाकाम रहे।
रंधावा को नहीं पसंद आया मंत्रालय
अमरिंदर सिंह ने 2018 में उन्हें जेल और सहकारिता विभाग का प्रभार दिया। यह पोर्टफोलियो रंधावा को कुछ खास पसंद नहीं आया। इसके बाद रंधावा ने मोर्चा खोल दिया। खासकर, कोटकपुरा फायरिंग में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई ना होने, राज्य में नशीले पदार्थों की बढ़ती लत और शिरोमणि अकाली दल नेता बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ एक्शन नहीं लिए जाने को लेकर रंधावा ने आक्रामक रुख अपना लिया। कैप्टन को यह बात नागवार गुजरी। वो इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे कि सुखजिंदर सिंह ऐसा काम कर सकते थे, लिहाजा बीच-बीच में यह खबरें भी आईं कि विजिलेंस विभाग सुखजिंदर सिंह रंधावा के खिलाफ जांच कर रहा है। इतना ही नहीं, सुखजिंदर सिंह रंधावा ने आपस के लोगों से अपनी जान को खतरा बताया। इस कड़ी में उन्होंने गृह मंत्रालय से आतंकवादियों से खतरा बताते हुए सुरक्षा की मांग भी की, लेकिन गृह मंत्रालय ने जवाब दिया कि उनकी जान को किसी तरह के खतरे की आशंका के बाबत उसे कोई सूचना नहीं है, लिहाजा सुरक्षा नहीं दी जा सकती और पंजाब सरकार ही सुखजिंदर की सुरक्षा को लेकर फैसला करे।
...जब सिद्धू से भी हुई कहा-सुनी
इस बीच, नवजोत सिंह सिद्धू का पंजाब की राजनीति में उभार हुआ। राहुल-प्रियंका से मिले समर्थन के बीच सुखजिंदर सिंह को नवजोत सिंह का साथ देना मुफीद लगा। हालांकि, सिद्धू से रंधावा की दोस्ती हाल के कुछ दिनों की है क्योंकि 2020 अक्टूबर में जब मोगा में राहुल गांधी ने रैली की थी, तब नवजोत सिंह सिद्धू और सुखजिंदर के बीच कहा-सुनी की खबरें भी आई थीं। दरअसल, सुखजिंदर सिंह मंच का संचालन कर रहे थे और नवजोत सिंह सिद्धू का भाषण लंबा होता जा रहा था। रंघावा ने उन्हें बीच में कई बार टोका, जिससे नवजोत सिंह सिद्धू हत्थे से उखड़ गए।
लेकिन, राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। पंजाब में ऐसा खूब दिख रहा है। सिद्धू और रंधावा दोस्त हैं और अमरिंदर और रंधावा दुश्मन। 2002 में पहली बार विधायक बने सुखजिंदर सिंह रंधावा ने साबित किया कि उन्हें राजनीति के दांवपेंच आते हैं, क्योंकि घर में ही उनके विरोधी हैं और पिछले विधानसभा चुनाव में वह महज एक हजार वोट से जीत पाए थे।