पीएमएलए के संबंध में ईडी के ऐक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि ईडी की तरफ से की जाने वाली कार्रवाई विधिसम्मत है। इस फैसले के बाद राजनीतिक दलों की तरफ से भी प्रतिक्रिया आई। बीजेपी ने कहा कि अदालत का फैसला उन लोगों के मुंह पर तमाचा है जो ईडी के दुरुपयोग की बात कर रहे हैं। लेकिन विपक्ष का नजरिया जुदा है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय निराश करने वाला
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निराशा जाहिर करते हुए खास टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि फैसला निराश करने के साथ ही चिंता बढ़ाने वाला है। पिछले कुछ वर्षों से जिस तरह से देश में तानाशाही का माहौल बनाया गया है उसमें इस फैसले के बाद और इजाफा होने वाला है। इससे इस बात की संभावना ज्यादा है कि केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग और ज्यादा बढ़ जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
उच्चतम न्यायालय ने धनशोधन निवारण अधिनियम के तहत प्रवर्तन निदेशालय को मिले अधिकारों का समर्थन करते हुए बुधवार को कहा कि धारा-19 के तहत गिरफ्तारी का अधिकार मनमानी नहीं है।न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी. टी. रवि कुमार की पीठ ने पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि धारा-5 के तहत धनशोधन में संलिप्त लोगों की संपति कुर्क करना संवैधानिक रूप से वैध है।शीर्ष अदालत ने कहा कि हर मामले में ईसीआईआर (प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट) अनिवार्य नहीं है।ईडी की ईसीआईआर पुलिस की प्राथमिकी के बराबर होती है।पीठ ने कहा कि यदि ईडी गिरफ्तारी के समय उसके आधार का खुलासा करता है तो यह पर्याप्त है।
अदालत ने पीएमएलए अधिनियम 2002 की धारा 19 की संवैधानिक वैधता को दी गई चुनौती को खारिज करते हुए कहा, ‘‘ 2002 अधिनियम की धारा 19 की संवैधानिक वैधता को दी गई चुनौती भी खारिज की जाती है। धारा 19 में कड़े सुरक्षा उपाय दिए गए हैं। प्रावधान में कुछ भी मनमानी के दायरे में नहीं आता। पीठ ने कहा कि विशेष अदालत के समक्ष जब गिरफ्तार व्यक्ति को पेश किया जाता है, तो वह ईडी द्वारा प्रस्तुत प्रासंगिक रिकॉर्ड देख सकती है तथा वह ही धनशोधन के कथित अपराध के संबंध में व्यक्ति को लगातार हिरासत में रखे जाने पर फैसला करेगी।
पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘ धारा-5 संवैधानिक रूप से वैध है। यह व्यक्ति के हितों को सुरक्षित करने के लिए एक संतुलन व्यवस्था प्रदान करती है और यह भी सुनिश्चित करती है कि अपराध से अधिनियम के तहत प्रदान किए गए तरीकों से निपटा जाए।’’शीर्ष अदालत ने पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की व्याख्या से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया।सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने अधिनियम की धारा-45 के साथ-साथ दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-436ए और आरोपियों के अधिकारों को संतुलित करने पर भी जोर दिया।