कांग्रेस पार्टी का कहना है कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कोख़ से जन्मी ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ असीम संघर्ष, त्याग और बलिदान की बुनियाद पर खड़ी है। करोड़ों देशवासियों ने कांग्रेस के नेतृत्व में जिस क्रांति का आगाज़ किया था, वह ब्रितानवी हुकूमत से आज़ादी लेकर अपना शासन और अपने संविधान के लिए तो था ही, उस संघर्ष के मूल में चौतरफा असमानता, भेदभाव, कट्टरता, रूढ़िवादिता, छुआछूत और संकीर्णता को खत्म करने की कवायद भी थी। देश-प्रेम व बलिदान की भावना से ओत-प्रोत आज़ादी के आंदोलन का आधार था - ‘सबके लिए न्याय’। करोड़ों कांग्रेसजनों ने स्वतंत्रता संग्राम में जेल की अमानवीय यातनाएं सहीं व भारत मां की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। साल 1885 से 1947 तक के 62 वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद स्वतंत्रता आंदोलन की यह क्रांति भारत की आज़ादी के रूप में परिणित हुई।
न्याय, संघर्ष, त्याग और बलिदान की इस परिपाटी ने आज़ादी के बाद अगले 70 वर्षों तक भारत की एकता, अखंडता, प्रगति व उन्नति का रास्ता प्रशस्त किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस व उसके नेतृत्व ने कट्टरवाद, नक्सलवाद, उग्रवाद व हिंसा का रास्ता अपनाकर भारत के बहुलतावादी व समावेशी सिद्धांतों को चुनौती देने वाली हर ताकत से लोहा लिया। भारतीय मूल्यों की रक्षा के इस संघर्ष में महात्मा गांधी, श्रीमती इंदिरा गांधी, श्री राजीव गांधी व असंख्य कांग्रेसजनों ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया।
सन 1947 में भारत को राजनीतिक आज़ादी तो हासिल हो गई, पर देश के सामने अनगिनत चुनौतियां थीं। न पर्याप्त अनाज पैदा होता था, न उद्योग-धंधे थे, न सुई तक बनाने के कारखाने थे, न स्वास्थ्य सुविधाएं थीं, न शैक्षणिक संस्थान थे, न सिंचाई की सुविधा थी, न पर्याप्त बिजली का उत्पादन था, न यातायात और संचार के साधन थे, न देश की सुरक्षा का पूर्ण इंतजाम। देश को सैकड़ों रियासतों की सामंतशाही से मुक्त करा एक सूत्र में पिरोना ही अपने आप में एक बड़ी जिम्मेदारी थी। अर्थात् भारत की आज़ादी के साथ उस समय के अविकसित भारत में चुनौतियों का अंबार भी हमें मिला, जिसे कांग्रेस नेतृत्व के दृढ़ संकल्प ने अवसर में तब्दील कर दिया। एक मज़बूत, शांतिप्रिय, समावेशी और प्रगतिशील भारत की नींव रखी।
भारत के पहले प्रधानमंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल व उनके सहयोगियों ने न केवल देश को एक सूत्र में पिरोया, बल्कि योजना आयोग तथा पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से खाद्यान्न, बांध एवं सिंचाई, बिजलीघर, परमाणु ऊर्जा, सड़क, रेल, संचार, सुरक्षा, शिक्षण संस्थान, शोध संस्थान, कारखाने व ढांचागत विकास की बुनियाद खड़ी की। पंडित नेहरू ने सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू), आईआईटी, आईआईएम, विश्वविद्यालयों, बड़े सिंचाई बांधों व परियोजनाओं, बड़ी स्टील फैक्ट्रियों, अंतरिक्ष परियोजनाओं, एटॉमिक एनर्जी कमीशन, डीआरडीओ की स्थापना की व उन्हें आधुनिक भारत के मंदिरों की संज्ञा दी।
1960 और 1970 के दशक में कांग्रेस ने देश में हरित क्रांति का सूत्रपात किया। देश को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाया। बैंकों के राष्ट्रीयकरण से देश के साधारण जनमानस के लिए बैंकिंग व्यवस्था के दरवाजे खोले। भारत की संप्रभुता को चुनौती देने वाली ताकतों के दांत खट्टे किए तथा बांग्लादेश के निर्माण में एक निर्णायक भूमिका निभाई।
980 के दशक में एक बार फिर कांग्रेस ने 21वीं सदी के भारत की नींव रखी। एक तरफ दूरसंचार क्रांति का उदय हुआ, तो दूसरी तरफ पंचायती राज और शहरी स्थानीय निकाय संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा देकर सत्ता का विकेंद्रीयकरण किया। कंप्यूटर व सूचना प्रौद्योगिकी की क्रांति ने आधुनिक भारत के निर्माण में सबसे अहम भूमिका निभाई, जिसके सुखद परिणाम आज भी देखने को मिल रहे हैं।
1990 के दशक में, जब विपक्षी सरकारों ने भारत का सोना तक गिरवी रख अर्थव्यवस्था को जीर्ण-शीर्ण कर दिया था, तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक बार फिर देश को आर्थिक उदारीकरण व वैश्वीकरण से जोड़कर भारत की तरक्की व अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी।
2004 से 2014 का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का कार्यकाल देश में सदैव समावेशी विकास, अभूतपूर्व आर्थिक प्रगति, अधिकार संपन्न भारत व आम नागरिकों के सशक्तीकरण के मील पत्थर स्थापित करने के लिए जाना जाएगा। एक तरफ सत्ता त्याग देने की श्रीमती सोनिया गांधी की साहसिक कुर्बानी, तो दूसरी ओर डॉ. मनमोहन सिंह की आर्थिक विद्वता ने देश को नई ऊँचाईयों पर ला खड़ा किया। श्रीमती सोनिया गांधी, डॉ. मनमोहन सिंह, श्री राहुल गांधी के सामूहिक नेतृत्व व दूरदर्शिता ने एक अधिकार संपन्न भारत की संरचना की, जिसमें हर नागरिक को मनरेगा के तहत ‘काम का अधिकार’, ‘भोजन का अधिकार’, ‘शिक्षा का अधिकार’, आदिवासी भाईयों को ‘जल-जंगल-जमीन का अधिकार’, किसानों को भूमि के ‘उचित मुआवज़े का अधिकार’, नागरिकों को सरकार की जवाबदेही के लिए ‘सूचना का अधिकार’ मिले।
एक तरफ देश ने पहली बार ‘‘डबल डिजिट ग्रोथ’’ को पार कर लिया, तो दूसरी तरफ 14 करोड़ लोग गरीबी रेखा से उबर पाए व देश में एक सशक्त व प्रगतिशील ‘‘मध्यम वर्ग’’ तबके का उभार हुआ। देशवासियों ने आकांक्षाओं व तरक्की की नई बुलंदियां छुईं। चारों तरफ सामाजिक सौहार्द्र भी था, शांति व भाईचारा भी था, प्रगति व तरक्की भी थी, और आगे बढ़ते रहने की नई अभिलाषा भी।
कई प्रकार की षडयंत्रकारी ताकतों को अधिकार संपन्न भारत, सामाजिक सौहार्द्र व समावेशी विकास रास नहीं आया तथा दुष्प्रचार का एक कुचक्र रचकर नियोजित रूप से सत्ता अर्जित कर ली। पर पिछले 8 वर्षों में जैसे देश की तरक्की, प्रगति, सामाजिक सौहार्द्र, आकांक्षाओं व अपेक्षाओं को जानबूझकर गहरे अंधकार में धकेल दिया गया। कभी नोटबंदी के नाम पर देश के रोजगार व व्यवसाय पर हमला बोला गया, तो कभी मनमानी जीएसटी से छोटे-छोटे और मंझले उद्योगों को तालाबंदी के कगार पर ला खड़ा किया। कभी मनमाने लॉकडाऊन से लाखों-करोड़ों देशवासियों को सड़कों पर दर-बदर की ठोकरें खाने को मजबूर किया, तो कभी कोरोना की विभीषिका में सरकार की नाकामी के चलते लाखों लोगों को तिल-तिल कर दम तोड़ने पर मजबूर कर दिया। अहंकार की पराकाष्ठा तो यह कि लाशों से पटी पड़ी गंगा मैया और उसके तट भी अहंकारी शासकों को नजर नहीं आए।
यही नहीं, बीते 8 वर्षों में देश का नौजवान असहनीय बेरोजगारी का दंश झेल रहा है। महंगाई की आग ने तो हर व्यक्ति व परिवार को झुलसाकर रख दिया है। घर के लिए एक गैस सिलेंडर खरीदना भी सपना हो गया है। पेट्रोल, डीज़ल, आटा, खाने का तेल, दाल, सब्जी, रोजमर्रा के इस्तेमाल की सभी चीजों की आसमान छूती कीमतों ने देशवासियों की जिंदगी दूभर कर दी है। बेरोजगारी और महंगाई अब देश के नागरिकों के लिए अभिशाप बन गए हैं।
समाज का कोई वर्ग सत्तासीन सरकार की बेरुखी से अछूता नहीं रहा। जब तीन खेती विरोधी काले कानूनों के खिलाफ लाखों किसान सड़कों पर उतरे, तो सरकार ने उन्हें बर्बरता से मारा, उनकी राह में कील और कांटे बिछाए तथा उन्हें ‘आतंकी’ तक घोषित कर डाला। दूसरी तरफ देश भयंकर आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है। उद्योग धंधे चौपट पड़े हैं और सरकार बेपरवाह है। 75 साल में पहली बार देश का रुपया बेदम और बेजार दिखाई पड़ता है। यहां तक कि एक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत ₹77.50 पार कर गई है। अब तो 70 साल में बनाई देश की हर संपत्ति को मौजूदा सरकार द्वारा मनमाने तरीके से बेचा जा रहा है। ऐसा लगता है कि सरकार ने ‘इंडिया ऑन सेल’ का बोर्ड लगा रखा हो।
अपनी अक्षम्य नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए मौजूदा भाजपा सरकार देश में सांप्रदायिक वैमनस्यता का वातावरण निर्मित कर रही है। अल्पसंख्यकों, दलितों व गरीबों को निशाना बनाया जा रहा है। भाजपा द्वारा धर्म व जाति के आधार पर नफरत के बीज बोकर सत्ता की भूख मिटाई जा रही है। भारत के बहुलतावाद, भाईचारे व समावेशी मूल्यों पर हमला बोला जा रहा है। भारत को जाँत-पाँत, धर्म, खान-पान, पहनावे, भाषा, क्षेत्रवाद, और रंग के आधार पर विभाजित करने का कुत्सित षडयंत्र हो रहा है। केंद्र की सत्तासीन सरकार व उसकी विचारधारा के कट्टरवाद व रूढ़िवादिता ने देश की अर्थव्यवस्था को हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया है। यह सब देश के वर्तमान और भविष्य के लिए गंभीर खतरे की घंटी है।
इन विषम परिस्थितियों व चुनौतियों के मद्देनजर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ‘नवसंकल्प शिविर’ का आयोजन किया है। मौजूदा विभाजनकारी वातावरण में आम जनमानस को धार्मिक व जातीय बंटवारे के जाल में उलझाकर चुनावी हित साधने की राजनीति गहन चिंतन का विषय है। पार्टी ने छः विषयों पर छः समूहों का गठन किया। हर समूह में खुले मन से सभी साथियों ने प्रभावशाली सुझाव व विचार व्यक्त किए। सभी समूहों ने अपने मंथन की विस्तृत रिपोर्ट आज कांग्रेस अध्यक्षा को सौंप दी। हाल में हुए चुनावों में अपेक्षाकृत परिणाम न आना व संगठन की खामियों तथा उसे जरूरी तब्दीलियां करने व जमीनी जुड़ाव को मजबूत करने पर गहन मंथन किया गया। खुले मन से त्रुटियों पर चर्चा हुई, भिन्न-भिन्न विचारों पर मंथन हुआ, वैचारिक और नीतिगत मतभेद पर सभी दृष्टिकोण गहनता से देखे गए और बेहतरी के अनेकों सुझाव दिए गए। कांग्रेस के सब साथियों ने मिलकर आत्मचिंतन, आत्ममंथन व आत्मावलोकन किया। एक नव संकल्प के साथ दृढ़ता से देश प्रेम व राष्ट्र निर्माण के पथ पर चलने, न्याय की परिपाटी पर हर हाल में खरे उतरने और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समक्ष उत्पन्न मौजूदा चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से जूझने व जीतने की प्रतिबद्धता प्रदर्शित की। छः विषयों पर समूहों की चर्चा से भविष्य के रास्ते के कई महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकलकर सामने आए।