- 2012 में बनी आम आदमी पार्टी ने 2013 में पहला चुनाव लड़ा। सरकार भी बनाई
- 2014 लोकसभा चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन रहा। 400 सीटों पर चुनाव लड़ा, 4 पर जीत मिली
- 2015 दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत मिली। 2017 दिल्ली नगर निगम और 2019 लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन
नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (AAP) एक बार फिर से दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने जा रही है। केजरीवाल लगातार तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। आम आदमी पार्टी के गठन को अभी सिर्फ 7 साल हुए हैं, इतने कम समय में आप दिल्ली में तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। आप का गठन नवंबर 2012 में हुआ था।
भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े हुए अन्ना आंदोलन से निकलकर आप का गठन हुआ। अरविंद केजरीवाल, वकील और कार्यकर्ता शांति भूषण, प्रशांत भूषण, राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव, कवि कुमार विश्वास ने मिलकर राजनीतिक दल बनाने का फैसला किया। अन्ना हजारे और आंदोलन से जुड़े कुछ लोगों का मानना था कि राजनीति में नहीं आना चाहिए, लेकिन इन लोगों की राय अलग थी और ये राजनीति में आकर राजनीति बदलने की बात बोलकर आगे बढ़ गए।
1 साल बाद ही 2013 में आम आदमी पार्टी ने पहला चुनाव लड़ा। 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में आप दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। उसे 28 सीटें मिलीं। कांग्रेस ने उसे बाहर से समर्थन दिया और दिल्ली में केजरीवाल की सरकार बन गई। हालांकि 49 दिन बाद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया।
ले डूबा अति आत्मविश्वास
2014 लोकसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़े हो गए, कुमार विश्वास अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़े। इसके नतीजे अच्छे नहीं रहे। आप के हाथ कुछ नहीं लगा। दिल्ली में भी एक भी सीट नहीं मिली। आप देशभर में 400 सीटों पर चुनाव लड़ी और सिर्फ 4 पर जीत दर्ज कर सकी। ये चारों सीटें पंजाब से मिलीं।
बड़े-बड़े नेताओं को किया बाहर
इसके बाद आप ने सिर्फ दिल्ली पर फोकस किया और 2015 विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल की। आप को 70 में से 67 सीटें मिलीं। इसके बाद पार्टी में अंतर्कलह सामने आने लगा। अप्रैल 2015 में योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और आनंद कुमार को AAP से निष्कासित कर दिया गया। यादव और भूषण ने कहा कि वे नीति निर्माण, प्रशासन और टिकट वितरण में केजरीवाल के तानाशाही तरीकों का विरोध कर रहे थे। काम करने के तरीके को लेकर दिल्ली सरकार का लगातार उपराज्यपाल और केंद्र सरकार के साथ विरोध बना रहा। केजरीवाल लगातार केंद्र सरकार और मोदी पर हमला बोलते रहे।
अप्रैल 2017 में भाजपा ने दिल्ली नगर निगम पर लगातार तीसरी बार कब्जा किया। AAP के 271 में से सिर्फ 47 पार्षद जीत सके।
पंजाब में अच्छा प्रदर्शन
केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच विरोध गहराता रहा। इसका केजरीवाल को नुकसान भी हुआ। इस दौरान आप के अन्य नेता भी उनसे दूर हुए। धीरे-धीरे केजरीवाल का पहचान सिर्फ मोदी विरोध की बनने लगी। 2017 में आप ने पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ा और 20 सीटें हासिल कीं।
2019 लोकसभा में हार के बाद बदले AAP
इसके बाद 2019 में फिर से आप को झटका लगा और बीजेपी फिर से सातों सीटें जीत गई। इस चुनाव के बाद आप ने अपनी रणनीति में बदलाव किया। केजरीवाल ने मोदी विरोध लगभग खत्म कर दिया और सिर्फ अपने काम का जिक्र करना शुरू कर दिया। आप ने विधानसभा चुनाव 2020 के लिए नारा दिया- दिल्ली में तो केजरीवाल। अब केजरीवाल हर मुद्दे पर नहीं बोलते हैं, कई मुद्दों पर मोदी सरकार का समर्थन कर देते हैं। पूरा चुनाव उन्होंने सिर्फ अपने काम पर लड़ा और कहीं भी मोदी के नाम का जिक्र नहीं किया।
अब आए दिल्ली चुनाव के नतीजों से कहा जा सकता है कि केजरीवाल को इस रणनीति का फायदा हुआ है वो फिर से दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।