- ज्योतिबेन ने फैसला किया कि वह खेतों में हानिकारक रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं करेंगी।
- बायोगैस, जीवामृत और वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से फसलों के बीच अच्छे बैक्टीरिया को विकसित करने में मदद मिलती है
- ज्योतिबेन के खेत की फसलों और उनके समूह के लोगों की फसलों की गुणवत्ता उच्च पोषण वाली होती है ।
Amazing Indians Awards 2022: ज्योतिबेन आज जिस मुकाम पर पहुंची है,उसके लिए उन्होंने कई सांचों को तोड़ा हैं। उन्होंने अपने खेत में ट्रैक्टर चलाने के लिए किसी पुरूष का इंतजार नहीं किया। वह खुद ट्रैक्टर लेकर खेत में उतर गईं। मुंद्रा के मंगरा गांव के ज्योतिबेन टांक के ट्रैक्टर चलाने का आत्मविश्वास देखते बनता है। उन्होंने प्राकृतिक खेती (जैविक) के जरिए रास्ता दिखाया है कि फसलों को बीमारी से बचाने के लिए रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है।अपने खेतों में वह जैविक लौकी के खेत को दिखते हुए गर्व से झूम उठती हैं। ज्योतिबेन ने सभी चुनौतियों से उबरते हुए अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
पति की मौत के बाद आ गई बड़ी जिम्मेदारी
वह कहती है वह परिस्थितियों के कारण किसान बनीं। जब उनके पति श्री जितेंद्रभाई टांक जीवित थे, उस वक्त वह एक गृहिणी के रूप में घर पर रहकर खुश थीं। लेकिन जब 20 साल पहले उनके पति की कैंसर से मौत हुई तो ज्योतिबेन के ऊपर अपने बच्चों और खेतों की देखभाल करने की जिम्मेदारी आ गई।
इसके बाद उन्होंने सबसे पहले यही फैसला किया कि वह खेतों में रासायनिक उर्वरकों के असंतुलित इस्तेमाल से हो रहे नुकसान को देखते रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं करेंगी। क्योंकि यह किसानों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर डाल रहा है। उसके बाद उन्होंने मुंद्रा में कृषि विज्ञान केंद्र और अदानी फाउंडेशन से संपर्क किया, जहां उन्होंने जैविक खेती का कोर्स किया, केंचुओं और गाय के गोबर से खाद तैयार करना सीखा। और इसके बाद अपनी चार एकड़ जमीन पर जैविक खाद से खेती करना शुरू किया, जिसे उन्होंने खुद तैयार किया था।
फाउंडेशन ने उन्हें काम शुरू करने के लिए जरूरी उपकरण दिए, जिसमें ड्रिप सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर भी शामिल थे। वह ATMA (कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी), एक सरकारी योजना के माध्यम से एक 'किसान हित समूह' (FIG) में शामिल हुईं। हाल ही में, ज्योतिबेन और अन्य साथी किसानों ने एक प्राकृतिक किसान समूह बनाया है । उनकी मंडली का नाम 'श्रीराज शक्ति प्राकृतिक खेती सहकारी मंडली लिमिटेड', मंगड़ा, कच्छ है। इस समूह में 30 किसान हैं। यह कच्छ की पहली पंजीकृत 'सहकारी मंडली' है, जो प्राकृतिक कृषि तकनीकों का उपयोग करके उच्च गुणवत्ता वाले फलों और सब्जियों की खेती कर रही है।
खेती में दिखाई नई राह
दूसरे परिवार के लोग रासायनिक आधारित खेती को छोड़, प्राकृतिक खेती अपनाएं इसका प्रयास ज्योतिबेन ने शुरू किया। इससे वह अन्य साथियों के परिवारों और अपने परिवार के सदस्यों को खतरनाक रासायनिक-आधारित खेती के जोखिम से बचाने में सक्षम रही है। अल्प अवधि में इस प्रयास का असर कम दिखता है क्योंकि प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ने पर फसल अपने आप को उसके अनुसार अनुकूल करने में समय लेती है। लेकिन लंबी अवधि इसके बहुत सकारात्मक परिणाम मिलते हैं। बायोगैस, जीवामृत और वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से फसलों के बीच अच्छे बैक्टीरिया को विकसित करने में मदद मिलती है और उन्हें उनकी अधिकतम क्षमता तक विकसित करने में भी सहयोग मिलता है। ज्योतिबेन के खेती के तरीके में कम पानी की आवश्यकता होती है । क्योंकि ड्रिप सिंचाई से पानी के संरक्षण में मदद मिलती है। वह फसल के लिए प्राकृतिक खाद के घोल का उपयोग करती है।
यह कहने की जरूरत नहीं है कि ज्योतिबेन के खेत की फसलों और उनके समूह के लोगों की फसलों की गुणवत्ता उच्च पोषण वाली होती है । और उसमें रसायन की मात्रा जीरो होती है। इस कारण उनके उत्पादों की कीमत भी ज्यादा होती है। सही मार्केटिंग रणनीति से ज्योतिबेन, रसायनों का इस्तेमाल करने वाले अन्य किसानों की तुलना में अपने उत्पादों को अधिक कीमतों पर बेचती हैं। इसके अलावा वह अपने उत्पादों को बाजार में समय से सुबह-सुबह पहुंचाकर ऊंची कीमत हासिल कर पाती हैं। उनकी सफलता को देखते हुए दूसरे किसान भी अब प्राकृतिक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। ज्योतिबेन का कहना है कि प्राकृतिक खेती में धैर्य रखने की जरूरत है। यह धीरे-धीरे आगे बढ़ती है और मिट्टी को पूरी तरह से रसायन मुक्त होने में 2 साल का समय लग जाता है।