- लोकसभा चुनावों में ममता बनर्जी को झटका देने के बाद BJP को उम्मीद थी कि विधानसभा चुनावों में वह दीदी को सत्ता से बेदखल कर देगी।
- दिलीप घोष और सुकांत मजूमदार के बीच की अनबन का असर पार्टी में दिखा है।
- पुराने कैडर और तृणमूल कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं को लेकर भी मतभेद हैं।
Trouble in BJP Bengal: बीते 5 मई को जब भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह करीब एक साल बाद पश्चिम बंगाल पहुंचे थे। तो उस वक्त लगा था कि भाजपा के चाणक्य, बंगाल में भाजपा में मची भगदड़ को रोक पाएंगे। लेकिन अभी 20 दिन भी नहीं हुए कि पार्टी के एक और वरिष्ठ नेता ने भाजपा का दामन छोड़ दिया है। इस बार बैरकपुर से भाजपा सांसद अर्जुन सिंह ने पार्टी से किनारा कर दोबारा तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया है। मई 2021 में ममता बनर्जी की सत्ता में तीसरी बार वापसी ने राज्य की राजनीति में फिर से नए समीकरण बनाने शुरू कर दिए हैं। और उसमें निशाने पर वह नेता सबसे पहले हैं, जिन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव और 2021 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा था। पिछले एक साल में भाजपा विधायकों की संख्या न केवल 77 से घटकर 70 आ गई है। बल्कि बाबुल सुप्रियो, अर्जुन सिंह जैसे सांसदों ने पार्टी छोड़ दी है।
इन प्रमुख नेताओं ने छोड़ा पार्टी का साथ
2019 के लोकसभा चुनावों में ममता बनर्जी को झटका देने के बाद भारतीय जनता पार्टी को उम्मीद थी कि विधानसभा चुनावों में वह तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर देगी। इस आत्मविश्वास में भाजपा ने इस बार विधानसभा चुनावों के लिए नारा दिया था ' 2 मई दीदी गई'। लेकिन जब नतीजे आए तो भाजपा तृणमूल कांग्रेस की हैट्रिक पर ब्रेक नहीं लगा पाई। और वह अच्छा प्रदर्शन करने के बाद, 77 सीटें ही जीत पाई। मजबूत विपक्ष बनने के बावजूद एक साल में ही भाजपा बिखरने लगी है। और पिछले एक साल में राजीव बनर्जी, मुकुल रॉय, तन्मय घोष, विश्वजीत दास,सौमेन रॉय, आसनसोल के सांसद बाबुल सुप्रियो और अब बैरकपुर के सांसद अर्जुन सिंह ने भाजपा से किनारा कर लिया है। इसी तरह अमित शाह के दौरे के ठीक पहले उत्तर 24 परगना के15 नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था।
राज्य के नेताओं में मतभेद बढ़ा
असल में 2021 के विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा ने लगातार कई प्रयोग किए हैं। पहले उसने तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष को उनके पद से हटा दिया। और उसके बाद सुकांत मजूमदार को कमान सौंपी गई । लेकिन उनके अध्यक्ष बनने के बाद से पार्टी का उप चुनावों में प्रदर्शन फीका रहा है। अप्रैल में आसनसोल लोकसभा उप चुनाव और बालीगंज विधानसभा उप चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। आसनसोन से जहां तृणमूल नेता शत्रुघ्न सिन्हा ने बीजेपी की अग्निमित्रा पॉल को हराया। वहीं बालीगंज विधानसभा उपचुनाव में भी बीजेपी छोड़कर तृणमूल का दामन थाम चुके बाबुल सुप्रियो ने भाजपा नेता को शिकस्त दी।
इसके अलावा पार्टी में पुराने कैडर और तृणमूल कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं को लेकर भी मतभेद हैं। जिसका असर भी पार्टी की एकजुटता पर दिखा है। इसीलिए मई में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ हुई बैठक में अमित शाह ने नेताओं से साफ कर दिया था कि आपस में मतभेद भुलाकर सब साथ मिलकर एक टीम की तरह टीएमसी के खिलाफ लड़ाई लड़े। उन्होंने यह भी कहा है कि चुनाव हारने के ये मतलब नही की जनता से संपर्क न हो।
West Bengal: टीएमसी में हुई BJP सांसद अर्जुन सिंह की वापसी, 2019 में छोड़ी थी ममता बनर्जी की पार्टी
आरएसएस आएगा काम
सूत्रों के अनुसार भाजपा, बंगाल में पार्टी को मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से उम्मीद लगाए बैठा है। उसे उम्मीद है कि जिस तरह 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भाजपा के लिए जमीनी स्तर पर माहौल बनाया था। और पार्टी को पहली बार 18 सीटें मिली थी। और उसे 40.64 फीसदी वोट हासिल किए थे। उसी तरह एक बार फिर पार्टी का आधार तैयार होगा। लेकिन जिस तरह ममता बनर्जी, लगातार भाजपा में सेंध लगा रही है, ऐसे में अमित शाह और मोदी को नए सिरे से रणनीति पर काम करना होगा
सीएएन बनेगा सहारा
हालांकि बंगाल दौरे पर अमित शाह ने जिस तरह ममता बनर्जी पर निशाना साधते हुए कहा कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) कोविड स्थितियां सामान्य होने के बाद लागू किया जाएगा । वह यही नहीं रूके कि उन्होंने ममता बनर्जी सरकार को बंग्लादेशी घुसपैठ को लेकर घेरते हुए कहा कि ममता दीदी, आप तो यही चाहती हो कि घुसपैठ चलती रहे। जाहिर है आने वाले दिनों में इस मुद्दे के जरिए बंगाल में भाजपा अपने नेताओं को एकजुट कर नया जोश भरने की कोशिश करेगी।