देहरादून : उत्तराखंड में चमोली जिले के जोशीमठ इलाके में 7 फरवरी को ग्लेशियर फटने के बाद से डर का माहौल लगातार बना हुआ है। इस आपदा के बाद अब तक 37 शव बरामद किए जा चुके हैं, जबकि 200 से अधिक लोग अब भी लापता हैं। इस बीच यहां एक नई चिंता ऋषिगंगा नदी के ऊपरी क्षेत्र में बन रही झील को लेकर पैदा हो गई है।
सैटेलाइट तस्वीरों से तपोवन इलाके में रैणी गांव के ऊपर एक झील के निर्माण की पुष्टि हुई है, जिसके बाद आसपास के इलाकों में रहने वालों से सावधान रहने की अपील की गई है। तपोवन इलाके में रैणी गांव के ऊपर निर्मित इस झील की लंबाई करीब 400 मीटर बताई जा रही है, जो एक सामान्य फुटबॉल के मैदान से तीन गुना ज्यादा है।
जमा हो गया है इतना पानी
इसकी गहराई को लेकर हालांकि अभी कोई पुष्ट जानकारी सामने नहीं आई है, पर अनुमानों में इसे 10 डिग्री स्लोप के साथ 60 मीटर गहरा बताया जा रहा है। इसमें अब तक लगभग 700,000 क्यूबिक मीटिर यानी करीब 70 करोड़ लीटर पानी जमा हो चुका है। इसमें पानी दिनों-दिनों बढ़ रहा है और ऊंचाई पर यह अगर किसी भी तरह से क्षतिग्रस्त होता है तो निचले इलाकों में खतरा पैदा हो सकता है।
इस झील का निर्माण जिस जगह पर हो रहा है, वह तपोवन रेस्क्यू साइट से करीब 17 किलोमीटर दूर और ऊंचाई के उस स्थान से करीब 5 किलोमीटर दूर है, जहां ग्लेशियर फटा था। NDRF की ओर से जारी उपग्रह की तस्वीरों से ऋषिगंगा नदी के ऊपर झील बनने की जानकारी सामने आई, जिसकी पुष्टि बाद में DRDO ने की। इसके बाद चमोली में भय का माहौल बन गया है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी ऋषिगंगा नदी के ऊपर झील के बनने की पुष्टि की है। हालांकि उन्होंने कहा कि इससे घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि सावधान रहने की जरूरत है।
...तो निचले इलाकों में भर सकता है पानी
इस झील से पानी का धीरे-धीरे रिसाव भी हो रहा है, लेकिन यह अभी इतना नहीं है कि निचले इलाकों में खतरा पैदा हो सके। पानी के अधिकतम रिसाव की दर से अनुमान लगाया जा रहा है कि यह प्रति सेकंड 891 क्यूबिक मीटर यानी 8.9 लाख लीटर हो सकता है।
पानी का बहाव अगर इस रफ्तार से होता है तो निचले इलाकों में 2.5 किलोमीटर तक पहुंचने में इसे नौ मिनट लग सकते हैं और जोशीमठ पहुंचने में 53 मिनट। विशेषज्ञाें का कहना है कि फिलहाल चिंता की बात नहीं है। लेकिन झील अगर कहीं से क्षतिग्रस्त होती है तो पानी के रिसाव की रफ्तार बढ़ सकती है। ऐसे में पानी के बढ़ते स्तर पर नजर रखने के साथ-साथ बाढ़ग्रस्त इलाकों से जल निकासी की रणनीति पर भी काम हो रहा है।