भारत-पाकिस्तान के बीच तीन दिसंबर से 16 दिसंबर तक चली इस लड़ाई में एक नए देश बांग्लादेश का जन्म हुआ। पूर्वी पाकिस्तान का अस्तित्व खत्म हुआ और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ बांग्लादेश अस्तित्व में आया। शेख मुजीबुर रहमान इस देश के पहले प्रधानमंत्री बने। पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों से मुक्ति और अपनी भाषाई अस्मिता एवं पहचान के लिए मुजीबुर की अगुवाई में मुक्त वाहिनी ने लंबी लड़ाई लड़ी। अपने राष्ट्रीय हितों के लिए भारत को इस युद्ध में दखल देना पड़ा। भारतीय सेना ने पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान दोनों मोर्चों पर लड़ते हुए अपनी वीरता, शौर्य एवं पराक्रम की अद्भुत मिसाल पेश की। इस युद्ध में सेना, नौसेना एवं वायु सेना का गजब का सहयोग एवं समन्वय देखने को मिला। इसे एक तरह से भारत के पहले थियेटर कमान का नायाब उदाहरण माना जा सकता है।
खौफ एवं दहशत में थी पाकिस्तानी फौज
1971 के युद्ध में पाकिस्तान की ऐसी हार हुई कि वह सदियों को तक नहीं भूल सकेगा। उसके दो टुकड़े हो गए। उसके 93,000 सैनिकों को भारतीय सेना के आगे समर्पण करना पड़ा। कहते हैं कि युद्ध में दुश्मन के मन में अगर आपने खौफ पैदा कर दिया तो आपने जंग एक तरह से जीत ली। भारतीय सेना ने दुश्मन पाकिस्तान के सेना में खौफ इस कदर भर दिया था कि वे लड़ाई से पहले हार मान चुके थे। संख्या में ज्यादा होने के बावजूद उन्होंने हथियार डाल दिए। उनका मनोबल टूट चुका था। उन्होंने जान बचाने के लिए सरेंडर करना ही बुद्धिमानी समझी। मराठी इंफ्रैंट्री की जंगी पलटन ने जमालपुर में पाकिस्तानी सैनिकों को इस तरह से घेरा कि वे इससे बाहर नहीं निकल पाए।
आसान नहीं था तंगैल में एयरड्राप
भारत बांग्लादेश की लड़ाई जल्द खत्म करना चाहता था। सीज विराम का अंतरराष्ट्रीय दखल भारत को आगे बढ़ने से रोक सकता था। इसलिए जल्द से जल्द ढाका को पर फतह करने की रणनीति बनाई गई। इसके लिए तंगैल के पास एयरड्राप करने का फैसला लिया गया। दिन के समय वह भी दुश्मन के इलाके में पैराड्राप कराना आसान काम नहीं था लेकिन भारत सरकार इसके लिए आगे बढ़ी। तंगैल में 2 पैरा की एक पूरी बटालियन एयरड्राप कराई गई। वायु सेना के अलग-अलग 52 विमानों के जरिए करीब 700 जवानों को पैराशूट के जरिए जमीन पर उतारा गया। इसी दौरान मीडिया में इस तरह की खबर फैलाई गई कि भारत ने बांग्लादेश में अपनी एक पूरी ब्रिगेड का पैराड्राप कराया। एक ब्रिगेड में 3000 से 5000 जवान होते हैं। इस खबर से पाकिस्तानी सेना के हाथ-पांव फूल गए। नियाजी की सेना पहले से खौफ में थी इस पैराड्राप ने उसे और तोड़ दिया।
एक नजर में 1971 का युद्ध
दिसंबर 3- पाकिस्तान वायु सेना के लड़ाकू विमानों ने अमृतसर, पठानकोट, श्रीनगर, अवंतीपुरा, अम्बाला, सिरसा, हलवाड़ा, आगरा सहित पश्चिमी सेक्टर वायु सेना के ठिकानों पर हमला किया।
दिसंबर 3 से 6 : पाकिस्तानी वायु सेना के हमले के बाद भारत ने भी जवाब हमला शुरू किया। वायु सेना के लड़ाकू विमानों ने पाकिस्तान के पश्चिमी एवं पूर्वी सेक्टर में स्थित वायु सेना के ठिकानों को निशाना बनाते हुए बमबारी की। इस दौरान पाकिस्तान ने जमीनी मोर्चा भी खोल दिया। उसकी सेना पंजाब और जम्मू एवं कश्मीर में हमले करने शुरू किए।
दिसंबर 4 - लोंगावाला में भारतीय सेना और पाकिस्तान के बीच जबर्दस्त लड़ाई हुई। पाकिस्तानी फौज जैसलमेर की तरफ बढ़ना चाहती थी लेकिन भारतीय फौज ने उनके नापाक मंसूबों को धूल-धूसरित कर दिया।
दिसंबर 6- भारत ने औपचारिक रूप से बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी। भारतीय सेना ने बांग्लादेश में जेसोर शहर को पाकिस्तान से मुक्त कराया।
दिसंबर 7 -बांग्लादेश सिल्हट और मौलवी बाजार में भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई छिड़ी।
दिसंबर 8- भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान के बंदरगाह शहर कराची पर भीषण हमला बोला।
दिसंबर 9- बांग्लादेश के कुश्तिया में भारत और पाक के बीच लड़ाई। सेना ने चांदपुर एवं दाऊदकांडी को मुक्त कराया। भारतीय वायु सेना का हेलिकॉप्टर जवानों को एयरलिफ्ट कर मेघना नदी के उस पार पहुंचाता है। इसके बाद ढाका को पाकिस्तानी सेना के हाथ से फिसलना तय हो जाता है।
दिसंबर 10- भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमानों ने चिटगांव में पाकिस्तानी एयरबेस पर हमले किए।
दिसंबर 11- तंगेल एयरड्राप ने पाकिस्तान के हार की रही कसर पूरी कर दी। इस एयरड्राप ने पाकिस्तानी सैनिकों को आगे बढ़ने से रोक दिया।
दिसंबर 12 से 16- इस दौरान भारतीय फौज ढाका में पहुंच गई। पाकिस्तान के पूर्वी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एक नियाजी ने सरेंडर के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। पाकिस्तानी जनरल ने पूर्वी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने समर्पण किया। इस समर्पण में पाकिस्तान के करीब 93,000 सैनिकों ने भारतीय फौज के सामने अपने हथियार डाले।