- गत तीन जुलाई को कानपुर के बिकरू गांव में पुलिस टीम पर हुआ जानलेवा हमला
- दबिश देने गई पुलिस टीम पर विकास दुबे और उसके साथियों ने किया हमला
- अलग-अलग जगहों पर हुई मुठभेड़ों में मारे गए विकास के गैंग के अपराधी
नई दिल्ली : गैंगस्टर विकास दुबे और उसके साथियों के एनकाउंटर मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित आयोग ने पाया है कि अभी तक किसी भी प्रत्यक्षदर्शी ने अपनी गवाही में पुलिस की थियरी का खंडन नहीं किया है। गत आठ जुलाई को कानपुर के पास पुलिस मुठभेड़ में विकास मारा गया था। इसके पहले उसके गैंग के कई अपराधी भी मारे गए। इन मुठभेड़ों पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई है जिसके बाद अदालत ने इन मुठभेड़ों की जांच के लिए एक आयोग गठित किया।
बिकरू गांव में पुलिस टीम पर हुआ था हमला
गत तीन जुलाई को पुलिस की एक टीम कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे को दबोचने के लिए बिकरू गांव पहुंची थी लेकिन पुलिस की इस दबिश की जानकारी विकास को पहले मिल चुकी थी। विकास ने अपने गैंग के साथियों के साथ मिलकर पुलिसकर्मियों को मारने की साजिश रची। विकास और उसके साथियों ने गांव में आठ पुलिसकर्मियों की निर्दयता पूर्वक हत्या की और इसके बाद फरार हो गए। विकास और उसके साथियों को पकड़ने के लिए यूपी पुलिस ने टीम बनाकर अलग-अलग जगहों पर छापे मारे। यूपी पुलिस का कहना है कि इस दौरान विकास के साथियों ने भागने की कोशिश की और मुठभेड़ में मारे गए।
उज्जैन से लाते समय कानपुर में पुलिस का वाहन पलटा
मध्य प्रदेश पुलिस ने विकास दुबे को उज्जैन के महाकाल मंदिर परिसर से पकड़ा। यूपी पुलिस का दावा है कि आठ जुलाई को एटीएस जब विकास को लेकर कानपुर आ रही थी तो उसके काफिले में शामिल एक वाहन पलट गया। इस वाहन में पुलिसकर्मियों के साथ विकास दुबे सवार था। मौके का फायदा उठाकर गैंगस्टर ने एक पुलिसकर्मी की पिस्टल छीनकर वहां से भागने की कोशिश की। इस दौरान उसने पुलिस पर फायरिंग की। बाद में मुठभेड़ में वह मारा गया।
मुठभेड़ों पर सवाल खड़े हुए, सुप्रीम कोर्ट में अर्जी
विकास दुबे और उसके साथियों की मुठभेड़ पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जियां लगाई गई थीं। इन अर्जियों में एक निष्पक्ष जांच की मांग की गई थी जिन पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने गत 22 जुलाई को पूर्व न्यायाधीश बीएस चौहान, इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस एसके अग्रवाल और यूपी के पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता की अगुवाई में एक आयोग का गठन किया था। कोर्ट ने इस आयोग से अपनी रिपोर्ट दो महीने के भीतर सौंपने का आदेश दिया था। हालांकि, बाद में कोर्ट ने रिपोर्ट सौंपने की अवधि एक माह और बढ़ा दी।
कोर्ट ने बनाया आयोग
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक आयोग के सदस्यों ने मुठभेड़ की सभी पांच जगहों का दौरा किया और प्रत्यक्षदर्शियों की तलाश करते हुए लोगों से बात करने की कोशिश की। रिपोर्ट के मुताबिक एक सूत्र ने कहा, ''आयोग द्वारा प्रत्यक्षदर्शियों के सामने आने और अपने बयान दर्ज कराने के लिए कई बार विज्ञापन देने के बावजूद इसमें कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी है।' उज्जैन से कानपुर लाए जाते समय मीडिया की कई टीमों ने यूपी पुलिस के काफिले का पीछा किया था और एनकाउंटर को लेकर पुलिस के दावों पर सवाल उठाए थे लेकिन इनमें से कोई भी बयान दर्ज कराने के लिए आयोग के समक्ष पेश नहीं हुआ है।
एक सूत्र ने कहा, 'यहां तक कि दुबे के रिश्तेदार भी बयान दर्ज कराने के लिए आगे नहीं आए हैं। बयान दर्ज कराने वालों में ज्यादातर पुलिस प्रत्यक्षदर्शी हैं जिन्होंने मुठभेड़ से पहले घटनाक्रम का विवरण दिया है।'