- 10 प्रतिशत जैव-जेट स्वदेशी ईंधन मिलाकर वायुसेना विमान की पहली ऑपरेशनल उड़ान
- कार्बन उत्सर्जन और भारत के कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता पर दिखेगा असर
- छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों से खरीदे 'ट्री बोर्न ऑयल्स' से बनता है खास स्वदेशी ईंधन
लेह/ नई दिल्ली: भारतीय वायु सेना (IAF) के AN-32 विमान ने शुक्रवार को लेह में कुशोक बकुला रिम्पोछे हवाई अड्डे से भारतीय जैव-जेट ईंधन के 10 प्रतिशत मिश्रण के साथ पहली बार उड़ान भरी। यह पहली बार है कि विमान के दोनों इंजन जैव-जेट स्वदेशी ईंधन द्वारा संचालित किए गए। भारतीय वायुसेना ने एक बयान में कहा, 'लेह के लिए ऑपरेशन उड़ान शुरू करने से पहले चंडीगढ़ एयरबेस पर भारतीय वायुसेना के AN-32 विमान का परीक्षण करके इसके प्रदर्शन को परखा गया था।'
24 जनवरी को, IAF ने लेह में 10-प्रतिशत जैव-जेट ईंधन के साथ एक -32 विमान को उतारा। लेह एयरफील्ड की ऊंचाई और चीनी सीमा से इसकी निकटता उस उड़ान को और भी खास बनाती है। समुद्र तल से 10,682 फीट की ऊंचाई पर मौजूद लेह दुनिया के सबसे कठिन ऑपरेशनल एयरफील्ड्स में से एक है।
लेह में अशांत मौसम की स्थिति न सिर्फ विशेष रूप से संचालित इंजनों के लिए बल्कि पारंपरिक रूप से संचालित इंजनों के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। हाल ही में इस उड़ान का एक वीडियो सामने आया है जिसे आप नीचे देख सकते हैं।
31 जनवरी को रक्षा मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा था, 'जैव-जेट ईंधन के प्रदर्शन को परखना ऑपरेशन की नजर से महत्वपूर्ण है। यह उड़ान चरम परिस्थितियों में जैव-जेट ईंधन के साथ एयरो-इंजन को चलाने की क्षमता साबित करती है। इस प्रयोग को एक टीम ने अंजाम दिया, जिसमें विमान और सिस्टम परीक्षण प्रतिष्ठान, बेंगलुरु और ऑपरेशन स्क्वाड्रनों के पायलट शामिल हैं।'
क्यों खास है ये सफलता: इस नई सफलता से उड़ान में नई तकनीकों को सफलतापूर्वक प्रयोग करने की IAF की क्षमता और संशोधनों को शामिल करके चुनौतीपूर्ण ऑपरेशन स्थितियों के अनुकूल काम करने की काबिलियत भी दिखती है। रक्षा मंत्रालय के बयान में आगे कहा गया है कि बायो-जेट ईंधन गैर-खाद्य 'ट्री बोर्न ऑयल्स’ से पैदा होता है, जो छत्तीसगढ़ राज्य के आदिवासी इलाकों से खरीदा जाता है। IAF के प्रयासों से कार्बन उत्सर्जन और भारत के कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।